मानव जीवन एक यात्रा है | Swami Satyamitranand Ji Maharaj | Bhagwad Geeta | Pravachan

स्वामी सत्यामित्रानंद गिरि जी महाराज जी कहते हैं कि भारतीय संस्कृति का प्रचार उन महान तत्वदर्शियों ने किया है, जिन्होंने न केवल बाहरी दिखावे को, बल्कि जीवन के गहरे तत्वों को समझा और समाज में उनका पालन करने की प्रेरणा दी। जो केवल व्यक्ति की पूजा करते हैं, या जो सिर्फ भौतिक जगत की सामग्री में खोए रहते हैं, वे इतिहास में अपनी जगह नहीं बना सकते।

संस्कृति का वास्तविक प्रचार तब होता है जब कोई व्यक्ति जीवन में तत्वों का अनुसरण करता है, और यही तत्व उसे एक दिव्य स्थिति में ले जाते हैं। तत्व के माध्यम से व्यक्तित्व मिटता नहीं, बल्कि वह समय के पार जाकर स्थायी रूप से जीवित रहता है।

महापुरुषों के जीवन से तत्वज्ञान

अनेक महापुरुषों ने इस तत्व का पालन किया और समाज को दिखाया कि वे केवल व्यक्तिगत या सांसारिक लक्ष्यों से नहीं बंधे थे, बल्कि उन्होंने जीवन के सत्य को समझकर, उसे समाज के बीच फैलाया। चाहे वह भगवान श्रीराम, महात्मा गांधी, या विनोबा भावे हों—इन्होने समाज को बताया कि तत्व से जुड़ने से ही जीवन में वास्तविक संतोष मिलता है।

गीता का ज्ञान और ब्रह्म का महत्व

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट किया कि जो कोई भी अपने कर्मों को ब्रह्म के लिए अर्पित करता है, वह कर्म ब्रह्म तक पहुंचता है। कर्म और ध्यान के माध्यम से व्यक्ति ब्रह्म की ओर अग्रसर होता है।

ध्यान और समाधि की साधना का उद्देश्य यही है कि आत्मा की दिव्यता को पहचाना जाए और व्यक्ति अपने बाहरी रूपों से परे अपने शुद्ध आत्मस्वरूप में स्थिर हो सके। इस प्रक्रिया में, किसी व्यक्ति को न अपने सामाजिक रूप, न जाति, न धर्म, और न ही किसी भौतिक बदलाव की आवश्यकता होती है।

स्वाध्याय और ज्ञान यज्ञ का महत्व

जहां तक ज्ञान यज्ञ की बात है, यह केवल शास्त्रों के अध्ययन तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह अपने अंतरतम को समझने और अपने विचारों और कर्मों का पुनः मूल्यांकन करने की प्रक्रिया है।

जो व्यक्ति अपने कर्मों को आत्मज्ञान के साथ जोड़ता है, वह जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझ सकता है।

ध्रुव की तपस्या और तत्वज्ञान

कभी-कभी जीवन में परिस्थितियां ऐसी आती हैं, जब हम दुनिया के बड़े सवालों से जूझते हैं। जैसे ध्रुव का उदाहरण लें—जो एक छोटे से बालक के रूप में जंगल में भगवान के दर्शन के लिए निकला। उसकी श्रद्धा और तपस्या के परिणामस्वरूप, भगवान ने उसे दर्शन दिए और उसे ऐसी शक्ति दी कि वह आज भी दुनिया के सबसे चमकते तारे की तरह पहचाना जाता है।

संस्कृति का प्रचार और तत्वज्ञान

इस प्रकार, हमारी संस्कृति का वास्तविक प्रचार तभी होता है, जब हम बाहरी भव्यता से परे, अपने आंतरिक जीवन में संतुलन, ध्यान और समाधि के माध्यम से ब्रह्म के साथ जुड़ने का प्रयास करते हैं।