जाने ब्रम्हांड के उन आठ अमर महारथी के बारे में जो आज भी जीवित हैं

प्राचीन हिन्दू इतिहास और पुराणों के अनुसार ऐसे आठ व्यक्ति है , जो चिरंजीवी है। प्राचीन ग्रंथो के अनुसार इनका प्रायः स्मरण करने से मनुष्य दीर्घायु और निरोगी रहता है। यह सब किसी न किसी वचन , नियम या श्राप से बंधे हुऐ है । अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥ सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।। अर्थात इन आठ लोगो ( अश्वथामा , दैत्यराज बलि , वेद व्यास ,हनुमान जी ,विभीषण ,कृपाचार्य , परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि ) का स्मरण सुबह – सुबह करने से सारी बीमारिया समाप्त होती है और मनुष्य शतायु होता है। अश्वत्थामा – ग्रंथो में भगवान शंकर का एक ऐसा अवतार भी है जो आज पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। द्वापर युग में महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था। उस समय अश्वथामा ने ब्रह्माश्त्र छोड़ दिया था और उसे वापस नहीं ले सके। इस वजह से श्री कृष्ण ने उन्हें पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था। राजा बलि – राजा बलि भक्त प्रह्लाद के वंशज थे। बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इस कारण श्री विष्णु राजा बलि से अति प्रसन्न होकर उनके द्वारपाल बन गए और राजा बलि को अमरता प्रदान की। हनुमान जी – कलियुग में हनुमान जी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने गए है। सीता माता ने हनुमान जी को लंका की असुर वाटिका में राम जी का सन्देश सुनने के बाद उन्हें आशीर्वाद दिया था कि वे अजर – अमर रहेंगे और उन्हें कभी बुढ़ापा नहीं आएगा। इसी कारण भगवान हनुमान को अक्षय शक्ति का स्रोत और चिरयुवा माना गया है। विभीषण – रावण के छोटे भाई विभीषण भी राम के अनन्य भक्त थे। जब रावण ने माता सीता को हरण किया था , तब विभीषण ने रावण को भी राम से शत्रुता न करने के लिया बहुत समझाया था। इस बात पे रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया था और विभीषण श्री राम की सेवा में चले गए और श्री राम ने उन्हें अजर अमर लंकापति बना दिया। मुनि कृपाचार्य – कृपाचार्य ऋषि गौतम के पुत्र और कौरव – पांडवो के कुलगुरु थे। वे परम तपस्वी ऋषि है , उन्हें अपने तप के बल से चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है। परशुराम – भगवान विष्णु के छठें अवतार परशुराम ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने इन्हे फरसा भेंट दिया था जिससे ये परशुराम नाम से विख्यात हुए। इनका जन्म सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। अपनी तप के बल से इन्हें चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त हुआ। ऋषि वेद व्यास – ऋषि पराशर और सव्यवती के पुत्र वेद व्यास जी चिरंजीवी है जिन्हीने चारो वेद ( ऋग्वेद , अर्थवेद ,सामवेद और यजुर्वेद ) का सम्पादन किया और 18 पुराणों की भी रचना की। महाभारत और श्री मद भगवत गीता की रचना भी वेद व्यास द्रारा की गयी। ऋषि मार्कन्डेय – ऋषि मार्कण्डेय अल्पायु थे। उन्होंने महामृतुन्जय मन्त्र की रचना की और कठोर तप कर के शिवजी को प्रसन्न किया और चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त किया। अत्यन्त दीर्घालु होना , कभी वरदान तो कभी अभिशापसा प्रतीत होता है। परन्तु तप और साधना से प्राप्त वरदान से चिरंजीवी होना ,आत्मा की दिव्यता और परमेश्वर की कृपा को दर्शाता है। भारत समन्वय परिवार की और से इन चिरंजीवी और अलैकिक शत्कियो और चेतनाओं को शत शत नमन। हमारा निरंतर प्रयास है कि हम अपनी पुरातन धरोहर के इन अंशों को जन जन तक पहुंचाकर अपनी संस्कृति के इस सन्देश को ‘’ जो सत्य है और सदा के लिए है ‘’ सदा प्रवहमान रखें

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