जाने ब्रम्हांड के उन आठ अमर महारथी के बारे में जो आज भी जीवित हैं | Bharat Mata

आठ चिरंजीवी व्यक्तित्व: प्राचीन हिन्दू इतिहास और पुराणों से

प्राचीन हिन्दू इतिहास और पुराणों के अनुसार आठ ऐसे व्यक्ति हैं जो चिरंजीवी हैं। इनका प्रायः स्मरण करने से मनुष्य दीर्घायु और निरोगी रहता है। ये सभी किसी न किसी वचन, नियम या श्राप से बंधे हुए हैं।

आठ चिरंजीवी व्यक्तित्व कौन हैं?

अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय - ये आठ चिरंजीवी व्यक्तित्व हैं, जिनका स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियाँ समाप्त हो जाती हैं और मनुष्य शतायु होता है।

1. अश्वत्थामा

ग्रंथों में भगवान शंकर का एक ऐसा अवतार भी है, जो आज पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। द्वापर युग में महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था। उस समय अश्वथामा ने ब्रह्माश्त्र छोड़ दिया था, जिसे वापस नहीं लिया जा सका। इस वजह से श्री कृष्ण ने उन्हें पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था।

2. राजा बलि

राजा बलि भक्त प्रह्लाद के वंशज थे। बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इस कारण श्री विष्णु राजा बलि से अति प्रसन्न होकर उनके द्वारपाल बन गए और राजा बलि को अमरता प्रदान की।

3. हनुमान जी

कलियुग में हनुमान जी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं। सीता माता ने हनुमान जी को लंका की असुर वाटिका में राम जी का संदेश सुनने के बाद उन्हें आशीर्वाद दिया था कि वे अजर-अमर रहेंगे और उन्हें कभी बुढ़ापा नहीं आएगा।

4. विभीषण

रावण के छोटे भाई विभीषण भी राम के अनन्य भक्त थे। जब रावण ने माता सीता को हरण किया था, तब विभीषण ने रावण को भी राम से शत्रुता न करने के लिए बहुत समझाया था। इस बात पर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया था और विभीषण श्री राम की सेवा में चले गए।

5. मुनि कृपाचार्य

कृपाचार्य ऋषि गौतम के पुत्र और कौरव-पांडवों के कुलगुरु थे। वे परम तपस्वी ऋषि हैं, जिन्हें अपने तप के बल से चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है।

6. परशुराम

भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने इन्हे फरसा भेंट दिया था। इनका जन्म सतयुग और त्रेता के संधिकाल माना जाता है।

7. ऋषि वेद व्यास

ऋषि पराशर और सव्यवती के पुत्र वेद व्यास जी चिरंजीवी हैं, जिन्होंने चारों वेद (ऋग्वेद, अर्थवेद, सामवेद और यजुर्वेद) का सम्पादन किया और 18 पुराणों की भी रचना की।

8. ऋषि मार्कण्डेय

ऋषि मार्कण्डेय अल्पायु थे। उन्होंने महामृतुंजय मंत्र की रचना की और कठोर तप करके शिव जी को प्रसन्न किया और चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त किया।

चिरंजीवी होने का महत्व

अत्यन्त दीर्घायु होना कभी वरदान तो कभी अभिशाप सा प्रतीत होता है। परंतु तप और साधना से प्राप्त वरदान से चिरंजीवी होना आत्मा की दिव्यता और परमेश्वर की कृपा को दर्शाता है।

भारत समन्वय परिवार की श्रद्धांजलि

Bharat Mata Channel की ओर से इन चिरंजीवी और अलौकिक शत्कियो और चेतनाओं को शत-शत नमन। हमारा निरंतर प्रयास है कि हम अपनी पुरातन धरोहर के इन अंशों को जन-जन तक पहुंचाकर अपनी संस्कृति के इस संदेश को "जो सत्य है और सदा के लिए है" सदा प्रवहमान रखें।

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