श्री नीब करौरी बाबा का सबसे बड़ा चमत्कार | हनुमान जी के अवतार - Neem Karori Baba
भारत माता आदि काल से ही ऋषि मुनियों, सिद्ध संतों, और आध्यात्म की भूमि रही है। इस धरा पर ऐसे अनगिनत महानआत्माओं का अवतरण हुआ, जिनके जन-कल्याण के कार्य सदा अमर रहेंगे।
ऐसे ही एक संत थे नीम करौली बाबा। आपको यह बता दें की कुछ लोग इन्हे चमत्कारिक बाबा कहते हैं, वहीं कुछ इन्हे हनुमान जी का अवतार कहते हैं। बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। इनका जन्म 1900 के आस पास, उत्तर प्रदेश के अकबरपुर नामक स्थान पर हुआ था। कहते हैं की बाबा का विवाह मात्र 11 वर्ष की आयु मे ही हो गया था, लेकिन विवाह के कुछ समय पश्चात ही उनका सांसारिक मोह-भंग हो गया, और 17 वर्ष की आयु मे उन्हे ज्ञान की प्राप्ति हुई। वे उत्तर भारत के अन्य साधुओं की भांति ही विचरण करने लगे थे।
वर्तमान समय मे बाबा जी के अनगिनत शिष्य हैं जो देश विदेश से उनके द्वारा निर्मित आश्रमों मे आशीर्वाद प्राप्ति के लिए आते हैं। बाबा जी ने देश के विभिन्न स्थलों का भ्रमण किया इसलिए लोग उन्हे चमत्कारिक बाबा, तलैया बाबा, लक्ष्मण दास और नीम करौली बाबा जैसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं।
भारत माता चैनल से जुड़े प्रत्येक श्रद्धालु को आज हम नीम करौली बाबा जी की चमत्कारिक कथाएं सुनाएंगे।
नीम करोली बाबा क्यों प्रसिद्ध है?
ये उस समय की बात है जब देश मे कुछ लोग ही ट्रेन मे सफर किया करते थे। तभी एक बार बाबा जी ट्रेन मे सफर कर रहे थे परंतु उनके पास टिकट का होने के कारण जांच के दौरान उन्हे ट्रेन से उतार दिया गया। उस समय ट्रेन एक घने जंगल से गुज़र रही थी। बाबा जी के उतरने के पश्चात ट्रेन को फिर से चलाने का आदेश दिया गया, परंतु आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की अंगद के पाँव के भांति ट्रेन अपनी जगह से तनिक भी नहीं हिली। यात्रा कर रहे अनेक लोगों मे एक बाबा जी का भक्त था, उसी ने सबको सूचित किया और कहा “बाबा जी के साथ दुर्व्यवहार कर के आप सब ने अच्छा नहीं किया, मेरी सलाह माने तो बाबा जी को सम्मान सहित वापस बिठा लें।” उस यात्री की बात मान कर रेल कर्मचारी बाबा जी से क्षमा मांगकर उनसे ट्रेन मे बैठने को कहते हैं, तब बाबा जी उनसे कहते हैं की वो एक शर्त पर ही वापस बैठेंगे और वो शर्त यह थी की उस घने जंगल मे एक रेल्वे स्टेशन की स्थापना कारवाई जाए। रेल कर्मचारी बाबा जी को आश्वासन देते हैं की उनकी आज्ञानुसार स्टेशन बनवाया जाएगा। फिर बाबा जी ट्रेन मे बैठ जाते हैं और ट्रेन चल पड़ती है। बाबा जी की इच्छानुसार बनवाया गया, वो स्टेशन आज भी नीब करौरी नाम से प्रसिद्ध है।
नीम करोली बाबा (Hindu saint and guru) के चमत्कार
बाबा जी (Hindu saint and guru) के चमत्कारों के ऐसे सैकड़ों किस्से हैं। उन्ही मे से एक किस्सा यह है की एक दिन बाबा जी अचानक एक बुजुर्ग दंपति के घर पर पहुंच गए। उन्होंने कहा की आज वे उन्ही के घर पर विश्राम करेंगे। बाबा की बात सुनकर बुजुर्ग दंपति भक्त को बहुत खुशी हुई। उन्होंने अपनी तथानुसार बाबा जी का सत्कार किया और सोने के लिए एक चारपाई और ओढ़ने के लिए कंबल दीया, जिसे ओढ़कर बाबा जी सो गए।
इसके बाद बुजुर्ग दंपत्ति भी बाबा के चारपाई के पास ही सो गए। बाबा कंबल ओढ़कर सो रहे थे और ऐसे कराह रहे थे जैसे उन्हें कोई पीड़ा हो। दंपति सोचने लगे कि बाबा को आखिर क्या हो गया। जैसे-तैसे रात बीती और सुबह हो गई। बाबा ने सुबह कंबल लपेटकर बजुर्ग दंपति को दे दिया और गंगा मे प्रवाहित करने का आदेश दिया। बाबा जी ने दम्पत्ति को विश्वास दिलाया की उनका पुत्र जो द्वितीय विश्व युद्ध मे लड़ रहा है, एक माह के भीतर ही सही सलामत वापस अजाएगा।
चादर लेकर जाते समय दंपति को ऐसा महसूस हो रहा था कि चादर में कुछ भारी सामान है। लेकिन बाबा ने चादर खोलने को मना किया था, इसलिए दंपति ने बिना उसे खोले वैसे ही नदी में प्रवाहित कर दिया। बाबा के कहेनुसार एक महीने बाद बुजुर्ग दंपति का बेटा भी बर्मा फ्रंट से घर लौट आया। बेटे को घर पर देख बुजुर्ग दंपति की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन बेटे ने अपने माता-पिता को ऐसी घटना के बारे में बताया, जिसे सुनकर वो चकित रह गए।
बेटे ने कहा कि, लगभग एक महीने पहले एक दिन वह दुश्मन फौजों के बीच घिर गया और रातभर गोलीबारी होती रही. इस युद्ध में उसके सारे साथी भी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया. बेटे ने कहा कि मैं कैसे बच गया यह मुझे भी मालूम नहीं। उसने कहा कि उस पर खूब गोलीबारी हुई परंतु एक भी गोली उसे नहीं लगी।
दरअसल यह वही रात थी, जिस रात नीम करोली बाबा बुजुर्ग दंपति के घर रुके थे। बुजुर्ग दंपति की आंखे भर आई कि उनका बेटा सकुशल घर वापस आ गया। साथ ही दंपति बाबा के चमत्कार को भी समझ गए। यही कारण है कि अपनी किताब ‘मिरेकल ऑफ लव’ में रिचर्ड एलपर्ट ने इस कंबल को बुलेटप्रूफ कंबल कहा है। आज भी कैंची धाम स्थित मंदिर में बाबा के भक्त कंबल चढ़ाते हैं। बाबा खुद भी हमेशा कंबल ओढ़ा करते थे।
एक बार की बात है कुम्भ के मेले के समय एक ब्रह्मचारी बाबा ने साथ बैठे हुए भक्तों से कहा की इस ठंड मे गरमा-गरम चाय हो जाती तो कितना अच्छा होता। परंतु उस समय वहाँ पर दूध नहीं था। यह संवाद बाबा जी ने सुन लिया था, और उसी क्षण पूछा “कोई चाय पिएगा?” फिर उन्होंने अपने एक शिष्य से कहा की बाल्टी लेकर गंगा मैया के पास जाओ और उनसे कहना की दूध लेकर जा रहे हैं सुबह लौटा देंगे। वह शिष्य चुपचाप गंगा मैया के पास गया, और बाबा जी ने जैसा कहा था वैसा ही किया। चाय बनाने की प्रक्रिया आरंभ हुई और बाल्टी से ढक्कन हटाया गया तो उसमे दूध था। प्रसन्नता से सभी ने चाय पी और अगली सुबह दूध आते ही एक बाल्टी दूध गंगा मैया मे प्रवाहित करवा दिया।
नीब करोली बाबा आश्रम कैंची धाम
ऐसी ही एक और घाटना है जब बाबा जी जुगल किशोर बिरला के घर जाते हैं, वहाँ उनकी भेंट पुजारी नारायणदास जी से होती है। नारायणदास को देखते ही बाबा जी कहते हैं की “हनुमान जी के साथ तुम्हारे पिताजी ने छल किया है।” अचंभित नारायणदास यह चर्चा अपने पिता से करते है और उनके पिता पन्नालाल उन्हे बताते हैं की “वे कोई संत नहीं स्वयं हनुमान जी हैं”। उन्होंने अपने पुत्र को बताया की जब उन्हे कोई संतान नहीं हो रही थी तो उन्होंने महंदीपुर बालाजी मे मन्नत मानी थी की जब भी उन्हे संतान प्राप्ति होगी वे उसे हनुमान जी की सेवा मे समर्पित कर देंगे। परंतु संतान मोह के कारण उन्होंने ऐसा नहीं किया और यह बात मात्र पन्नालाल जी और हनुमान जी ही जानते थे। यह सुनकर नारायणदास ने स्वयं को हनुमान मंदिर मे समर्पित कर दिया था।
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