Kakabhushundi: पितृपक्ष और काकभुशुण्डि का सम्बन्ध क्या है? | Pitru Paksha
हम सब जानते हैं की पितृ पक्ष मे कौओं को खाना खिलाया जाता है। लेकिन क्यूँ खिलाया जाता है? कहते हैं इन कौओं को काकभुशुण्डि का रूप माना जाता है।
काकभुशुण्डि कौन है? क्या है पितृ पक्ष और काकभुशुण्डि का संबंध?
हिंदू धर्म ग्रंथों और पुराणों में बहुत से लोगों की कथाएं प्रचलित है जिन्हें किसी न किसी श्राप के कारण अपने असली रूप को खोना पड़ा। ऐसा ही एक रामायण का एक पात्र काक भुशुण्डि हैं जो एक ऋषि के द्वारा दिए गए श्राप के कारण कौआ बन गए।
काकभुशुण्डि की रामचरितमानस में भूमिका
शास्त्रों में काकभुशुण्डि को परमज्ञानी और राम भक्त बताया गया है. रामचरितमानस के अनुसार, प्रभु श्री राम और रावण के युद्ध में जब रावण पुत्र मेघनाद ने श्री राम और लक्ष्मण को नागपाश से बांध दिया था तब नारद मुनि के कहने पर गरुड़ जी ने श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्ति दिलाई थी। श्रीराम के इस तरह नागपाश में बंध जाने से गरुड़ जी को उनके अवतारी होने पर संदेह हो गया था. तब काकभुशुण्डि ने श्रीराम का चरित्र गरुड़जी के सुनाकर उनका संदेह दूर किया.
काकभुशुण्डि के कौआ बनने की कथा
गरुड़ जी का संदेह दूर करने के बाद काकभुशुण्डि ने उन्हें अपने कौआ बनने की कथा सुनाई थी। जिसके अनुसार, काकभुशुण्डि जी का प्रथम जन्म अयोध्या पुरी में एक शूद्र के घर में हुआ उस जन्म में वह भगवान शिव के भक्त थे, लेकिन अहंकार के वशीभूत होकर वो अन्य देवताओं की निंदा करते थे। एक बार अयोध्या में अकाल पड़ जाने पर वह उज्जैन चले गये। उन्होंने एक दयालु ब्राह्मण की सेवा की और उन्हीं के साथ रहने लगे। वह ब्राह्मण भी शिवभक्त थे लेकिन अन्य देवताओं की निंदा नहीं करते थे.
काकभुशुण्डि का पहला जन्म और भगवान शिव का श्राप
एक बार काकभुशुण्डि से परेशान होकर गुरु ने उन्हें राम भक्ति का उपदेश देना शुरू किया. घमंड में चूर काकभुशुण्डि ने अपने गुरु का ही अपमान कर दिया, जिससे भगवान शिव नाराज हो गए और श्राप दिया कि तूने अपने गुरु का अपमान किया है. इसलिए तूझे 1000 बार सर्प योनि में जन्म लेना पड़ेगा. लेकिन ब्राह्मण ने भगवान शिव से काकभुशुण्डि को क्षमा करने का निवेदन किया, लेकिन भगवान शिव ने कहा कि इसे अपने पापों का प्रायश्चित करना होगा.
समय के साथ उनमें श्री राम के प्रति भक्ति उत्पन्न हो गई और अंत में ब्राह्मण का शरीर प्राप्त किया. वह ज्ञान प्राप्ति के लिए लोमश ऋषि के पास गए. जब लोमश ऋषि उन्हे ज्ञान देते थे तो वह उनसे अनेक प्रकार के तर्क-वितर्क करते थे. उनके इस व्यवहार से कुपित होकर लोमश ऋषि ने उसे शाप दे दिया कि जा तू चाण्डाल पक्षी यानी कौआ बन जा. वह तत्काल कौआ बनकर उड़ गया. श्राप देने के बाद ऋषि को पछतावा हुआ और उन्होंने उस कौए को वापस बुला कर राममंत्र दिया और साथ में इच्छामृत्यु का वरदान भी दिया, उसे यह भी वरदान मिला की वह कभी भी समय के भूत भविष्य मे जाकर सब कुछ देख सकता था. राममंत्र मिलने के कारण उसको उस कौए के शरीर से भी प्रेम हो गया और बाद में वह काकभुशुण्डि के नाम से प्रसिद्ध हुआ। काकभुशुण्डि ने रामायण को 11 बार और महाभारत को 16 बार देखा है। इसीलिए वो गरुड देव के संदेह को दूर कर पाए थे। अब जब आपको इस तथ्य की जानकारी हो गई है की काकभुशुण्डि कौन थे, तो अब आपको बताते हैं की पितृ पक्ष और काकभुशुण्डि मे क्या संबंध है।
काकभुशुण्डि और कौवे का धार्मिक महत्व
काकभुशुण्डि समय मे आगे पीछे जा सकते हैं और शास्त्रों मे भी कौओं को काकभुशुण्डि का रूप माना गया है, इसीलिए लोग कौओं को उनका स्वरूप मानकर खाना खिलाते हैं। ताकि वो भूत मे जाकर उनके पूर्वजों को शांति और वर्तमान मे उनके परिवार को समृद्धि प्रदान करें।
एक और मान्यता प्रचलित है कहा जाता है कि एक बार कौवे ने माता सीता के पैरों में चोंच मार दी थी। इसे देखकर श्री राम ने अपने बाण से उसकी आंखों पर वार कर दिया और कौए की आंख फूट गई। कौवे को जब इसका पछतावा हुआ तो उसने श्रीराम से क्षमा मांगी तब भगवान राम ने आशीर्वाद स्वरुप कहा जो कौवे को भोजन कराएगा वह अन्न उसके पितरों को तृप्त करेगा।
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