चन्द्रमा : जन्म ,श्राप ,कलंक | चन्द्रमा को क्यों और किसने दिया श्राप?

प्रकृति की सुंदरतम रचना और ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ सौन्दर्य कला कृति के रूप में  चंद्रमा युगों से मानव रोमांच और रहस्य का केंद्र रहा है। अपने कलंक को सदा अपने पास रखकर आकाश और पृथ्वी को चन्द्र-प्रभा की शीतलता से सिंचित करने वाला चन्द्र एक संवेदनशील आध्यात्मिक संदेशवाहक भी है। 

चंद्रमा को मन कारक और सभी 22 नक्षत्रों का स्वामी होने की मान्यता प्राप्त है। आज हम पौराणिक धर्म ग्रंथो के झरोखे से चंद्रमा के जन्म , श्राप और कलंक के रहस्यों को समझने का प्रयास करेंगे। पौराणिक मान्यताओं का वैज्ञानिक धारणाओ से मतभेद तो हो सकता है परंतु इन मान्यताओं मे निहित संदेश मानव कल्याण की भावना से प्रेरित होते हैं और यह कालजयी शब्द सर्व सर्वदा के लिए मनुष्य के मार्गदर्शक बन जाते है । अग्नि पुराण के अनुसार सृष्टि रचना की प्रक्रिया मे ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्रों कि रचना कि थी।  उनमें एक आत्रि ऋषि भी थे । आत्रि ऋषि का विवाह सती अनुसुइया जी से हुआ था । आत्रि ऋषि के तीन पुत्र हुये दत्तात्रेय, दुर्वासा और सोम अर्थात चंद्रमा। ब्रह्मा जी द्वारा चंद्रमा को नक्षत्रो , वनस्पतियों तथा तप का स्वामी नियत किया गया ।
एक पौराणिक धर्म ग्रंथ "पद्म पुराण" में भी चन्द्र जन्म की कथा वर्णित है । इसके अनुसार ब्रह्मा जी ने जब अपने मानस पुत्र आत्रि से सृष्टि रचना पर विचार करने को कहा तो ऋषि आत्रि ने कठोर तप प्रारम्भ किया। तप करते समय ऋषि की आंखो से जल की कुछ बूंदे टपकी जिन्हे दिशाओ ने स्त्री रूप में प्रगट होकर ग्रहण कर लिया लेकिन वह इसे अधिक देर तक धारण नहीं कर सकी और उसे त्याग दिया तब इस जल को ब्रह्मा ने पुरुष रूप में चंद्रमा बना दिया ।   
चन्द्र के जन्म की एक कथा स्कंद पुराण के परिपेक्ष्य से भी है । 
असुरों और देवों द्वारा जब समुद्र मंथन किया गया तो उन्हे 14 रत्नो की प्राप्ति हुयी थी । इन्ही प्राप्त 14 रत्नो मे से एक चंद्रमा भी थे जिन्हे भगवान शिव द्वारा अपने मस्तक पर धारण किया गया । मंथन से प्राप्त विष को लेकर जब हाहाकार मचा और सृष्टि विचलित होने लगी तब शिव जी ने पूरा विष स्वयं पीकर अपने कंठ मे धारण किया था । भगवान शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए ही चंद्रमा ने उनके  मस्तक पर स्थान प्राप्त किया । 
चंद्रमा के श्राप से संबन्धित मान्यताओ के अनुसार चन्द्र की 27 पत्नियाँ थी वह सभी दक्ष प्रजापति की पुत्रियाँ थी । दक्ष प्रजापति की इन 27 पुत्रियों को 27 नक्षत्रों का प्रतीक भी माना गया हैं । इन 27 पत्नियों मे चन्द्र को रोहिणी अत्यधिक प्रिय थी । बुद्ध गृह को चंद्रमा और रोहिणी की संतान माना जाता हैं । रोहिणी से सर्वाधिक प्रेम ही उनके जीवन की समस्या बन गया और इस कारण से उन्हे भीषण श्राप का सामना करना पड़ा । ऐसी मान्यता है की चंद्रमा अपनी पत्नी रोहिणी से इतना अधिक प्रेम करने लगे कि उनकी अन्य 26 पत्नियाँ उनकी उपेक्षा से दुखी हो गयी और उन्होने अपने पिता दक्ष प्रजापति से चंद्र की शिकायत की । बेटियों का दुख सुनकर दक्ष क्रोधित हुये और उन्होने चन्द्र को श्राप दे दिया । इस श्राप से ग्रसित होने के कारण चंद्रमा का तेज़ क्षीण पड़ने लगा और पृथ्वी की वनस्पतियों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ने लगा । 
संकट की इस स्थिति में श्री हरी विष्णु ने मधस्यता की और उनके हस्तक्षेप से दक्ष प्रजापति का क्रोध कम हुआ और उन्होने चंद्रमा को इस शर्त के साथ फिर से चमकने का वरदान दिया कि चन्द्र का प्रकाश कृष्ण पक्ष में क्षीण होता जाएग तथा पूर्णमासी मे चंद्रमा का तेज़ पूर्ण रूप से दिखेगा । 
चाँद का तेज़ पहले पूर्ण रूप से धवल था, उसमे कोई दाग अथवा कलंक नहीं था । चाँद पर लगे इस कलंक अथवा दाग पर पुराणिक मान्यता यह है कि भगवान शिव के अपमान और तिरस्कार से अपमानित होकर जब माता सती ने यज्ञ कि अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी तो शिव इतने क्रोधित हो गए कि तांडव करने लगे ।
शिव ने इस कृत्य के लिए दक्ष प्रजापति को जिम्मेदार माना और उनका वध करने का निश्चय किया । शिव ने दक्ष को लक्ष्य करके अचूक वाण से प्रहार किया । इस अस्त्र से बचने के लिए दक्ष ने मृग का रूप धारण कर लिया । मृग बनकर दक्ष ने खुद को चंद्रमा में छिपा लिया । वही मृग रूप चंद्रमा में धब्बे कि तरह दिखता है इसीलिए चंद्रमा का एक नाम मृगांक भी है । 

Bharat Mata परिवार कि ओर से हमारा प्रयास है कि हम जन जन को अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति से परिचित कराएं और इस पुरातन भाव धारा को सदा जीवित बनाए रखें ।    
 

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