गीता - जीवन में तनाव से मुक्ति का आधार | Stress Management | तनाव से मुक्ति का मार्ग | Bharat Mata

Stress refers to any type of change that causes physical emotional or psychological strain.

Stress is often triggered when we experience something new unexpected or when we feel we have little control over a situation.

श्रीमद्भागवद्गीता: मानसिक शांति और जीवन की संपूर्णता का प्रतीक

श्रीमद्भागवद्गीता एक ऐसा पावन ग्रन्थ है जो अपने आप में समग्र एवं सम्पूर्ण है इसमें मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के साथ साथ आध्यात्मिक जीवन शैली के सभी मनोभावों का समावेश है। गीता एक ऐसी आदर्श जीवन शैली का सन्देश है जिसमें असमंजस और उद्विग्नता के लिए कोई स्थान नहीं है।

वास्तविकता के धरातल पर यदि वर्तमान जीवन की मानसिक समस्याओं की विवेचना करें तो ये सर्वमान्य सत्य स्पष्ट होता है कि आज का जीवन निरंतर दुविधाओं और संतापों से ग्रस्त है और बिखरते हुए संकल्पों और जीवन मूल्यों की व्यथा कथा बन गया है। मानव ने जीवन को सुखी बनाने के प्रयास में भौतिक विकास एवं आडम्बर पूर्ण जीवन को माध्यम बनाया महत्वाकांक्षाएं बढ़ती गयीं और भोगवादी तृष्णा ने जीवन की शैली को अस्त-व्यस्त और भटकाव की स्थिति में ला दिया। 

वर्तमान मानसिक समस्याएँ और गीता का समाधान

आज सारा विश्व तनाव की विषम समस्या से जूझ रहा है और इसका मुख्य कारण ही केवल ये है कि जीवन की सार्थकता और इसके उच्च लक्ष्यों और आदर्शों के प्रति उदासीनता और ज्ञान का अभाव बढ़ता जा रहा है। 

तनाव का एक सकारात्मक पक्ष भी है ये मनुष्य के विकास और प्रगति में भी सदा से सहायक रहा है। ये शरीर को विपरीत परिस्थितियों द्वारा जनित दबाव को सहने में सक्षम बनाता है। तनाव वर्तमान परिस्थितियों में जीवन का ऐसा पहलू बन गया है कि कभी तनाव का न होना भी तनाव का कारण बन जाता है। ये समस्या भले ही इतने विकराल रूप में न सही लेकिन किसी न किसी रूप में हर युग में विद्यमान रही है। 

तनाव का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार मानव जाति का लगभग 66% भाग किसी न किसी रूप में तनाव की समस्या से ग्रस्त है। पश्चिमी देशों में जो तुलनात्मक रूप से समृद्ध और विकसित हैं, वहां ये स्थिति और अधिक चिंताजनक है। यदि इसे इस युग की महाव्याधि कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। 

तनाव का मूल कारण और उपचार

परिस्थितियों की विषमता और मांग तथा इन्हें पूरा कर सकने की मन की सक्षमता के बीच बढ़ते हुए असंतुलन से ही तनाव की समस्या का जन्म होता है परन्तु ये भी सत्य है कि तनाव का उपचार तभी संभव है जब इसके मूल कारण और स्त्रोत का सही सही आंकलन हो। मस्तिष्क को निष्क्रियता की ओर अग्रसर करने वाली दवाओं के सेवन से, अथवा आधे अधूरे मनोवैज्ञानिक तकनीकों से, वर्तमान में उपचार की जो पद्धति अपनाई जा रही है, उससे इस महाव्याधि का उपचार संभव नहीं है। 

गीता के माध्यम से आत्म-शुद्धि और तनाव मुक्ति

गीता के अनुसार असंयमित आचरण तथा भौतिकवादी संस्कृति के परित्याग से ही इस समस्या का निदान संभव है। 

प्रशांत मनसं हि एनं

योगिनं सुखं उत्तमम्।

उपैति शांत – रजसम्

ब्रह्म भूतं अकल्मषम्।। 

सम्पूर्ण सृष्टि, सत्व, रज तथा तम तीन गुणों से निर्मित है इनमें रज गुण चंचल होता है जिसके कारण हमारे शरीर इन्द्रियां व मन में चंचलता बनी रहती है। इसी रज गुण की चंचलता के कारण ही ध्यान लगाना कठिन हो जाता है।

आत्म-भाव की प्राप्ति

साधना के द्वारा तीनों गुणों से ऊपर उठा जा सकता है इसे आत्मभाव की प्राप्ति की अवस्था कहा जाता है। आत्मभाव की अवस्था में गुणों का प्रभाव नहीं रहता क्यूंकि तीनों गुण तो प्रकृति में हैं, आत्मा में नहीं। 

मन की शांति और चित्त की शुद्धता का ये अलौकिक अनुभव साधक को साधना की उच्चतम स्थिति से अवगत कराता है। 

वर्तमान में मान्य वैज्ञानिक नियमों से के अनुसार सृष्टि कुछ स्थूल कणों द्वारा निर्मित है जैसे Gluons, Kwarks, Protons, Electrons और Neutrons आदि परन्तु प्राचीनतम आध्यात्मिक स्तर पर ये सृष्टि मूल तत्वों द्वारा निर्मित है। इन्हीं मूल तत्वों को सूक्ष्म तत्व या त्रिगुण की संज्ञा दी गयी है। ये सूक्ष्म तत्व स्थूल न होने के कारण अदृश्य हैं। इन सूक्ष्म तत्वों का प्रभाव साधक के गुणों से स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। सत्तव गुण सबसे अमूर्त तथा सूक्ष्म है। सत्तव की प्रधानता वाले व्यक्ति में आध्यात्मिक अभिरुचि क्षमा का भाव संतुष्टि का भाव होने के साथ प्रसन्नता का भाव विद्यमान होता है। 

इसी प्रकार से तम गुण प्रधानता वाले में सांसारिक लोभ एवं इच्छाओं के प्रति लालसा और आसक्ति का भाव होता है। रजो गुण वास्तव में क्रियाशीलता एवं उर्जा का द्योतक है। ये क्रियाएं सात्विक और तामसिक दोनों हो सकती हैं। 

इन तीनों गुणों के सूक्ष्म अदृश्य तथा अमूर्त रूप होने के कारण वर्तमान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ये मान्य नहीं है परन्तु इस सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि ये समस्त सृष्टि और मानव अस्तित्व में समाहित है। इन गुणों की प्रबलता का प्रमाण जीवन की प्रत्येक क्रिया में परिलक्षित होता है। 

श्रीमद्भागवद्गीता के 13वें अध्याय में योगेश्वर श्री कृष्ण ने स्पष्ट सन्देश दिया है कि पहले साधना के द्वारा मनुष्य को रज गुण और तम गुणों से मुक्त होकर.. सत्तव गुण में स्थित होना चाहिए तत्पश्चात आत्म भाव की प्राप्ति कर गुणातीत होने के अवस्था को प्राप्त करने से सभी कष्टों का निवारण हो जाएगा। 

गीता के जीवन नियम: तनाव-मुक्ति के सूत्र

वास्तव में समग्र रूप से जीवन के तनाव मुक्त होने का ये श्रेष्ठ मार्ग है। गीता में भगवान कृष्ण ने कुछ ऐसे मनोवैज्ञानिक जीवन नियमों और सिद्धांतों की विवेचना की है.. जिनसे जीवन में तनाव मुक्त और शांत तथा संतुष्ट रहा जा सकता है।

  1. योग – हमारी अति प्राचीन और प्रमाणिक विधाओं में योग एक ऐसी विधा है जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य एवं शांति की प्राप्ति होती है।

“समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः”

इन शब्दों के माध्यम से सिर और गले को समान एवं अविचल रखते हुए स्थिर होने को कहा है। इससे अन्तःकरण को पवित्रता की प्राप्ति होती है।

  1. प्राणायाम – प्राणायाम एक ऐसी विधा है जिसमें प्राणशक्ति के नियंत्रण के साथ चित्त शुद्धि की प्राप्ति होती है। जैसे जैसे विचारों की गुणवत्ता में सुधार होता है तो श्वास क्रिया में भी परिवर्तन होता है। 

“प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ।।“

सर्व सर्वदा के लिए क्रोध भय और भौतिक इच्छाओं से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

  1. कर्तव्य बोध – जीवन में नाना प्रकार के कर्मों को करते हुए भी स्वयं के कर्तव्य बोध से जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में भी असमंजस का अंत होता है और जीवन के अनावश्यक तनाव से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है।

आत्म-नियंत्रण – 

“अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते”

तटस्थता तथा वैराग्य भाव के उदित होने से विषम परिस्थितियों में भी मनुष्य विचलित नहीं होता तथा मानसिक क्रियाओं के प्रभावी होने से परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करता है।

निष्काम कर्म – “भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः”

कर्म को कर्म-बंधन से मुक्त रखते हुए यज्ञ कर्मों से मन का द्वन्द समाप्त होता है और मन सदा शांत और स्थिर रहता है।

गीता का सार: वैदिक जीवन शैली की ओर वापसी

गीता में वर्णित मानसिक उपचारों और सूत्रों का सारांश यही है कि भौतिक तृष्णा की अंधी दौड़ से मानव ने अपनी मानसिक अशांति के मार्ग को स्वयं सुनिश्चित किया है और इन विनाशकारी परिस्थितियों का एक मात्र निदान यही है कि हमें अपनी प्राचीन वैदिक जीवन शैली को पुनः स्थापित करना होगा और भगवद्गीता में दिखाए गए आध्यात्मिक मार्ग का अनुसरण करना होगा।

भारत माता का प्रयास

भारत समन्वय परिवार का संकल्प है कि श्रीमद्भागवद्गीता के संदेशों को हर व्यक्ति तक पहुँचाया जाए। यह प्रयास मानव जीवन को सुख, शांति, और उच्चतर जीवन लक्ष्य की ओर प्रेरित करने का है।
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