सप्तर्षि कौन हैं इनकी उत्पत्ति कैसे हुई ? | Bharat Mata

सप्तर्षि तारामंडल: एक अद्भुत आकाशीय संरचना

सप्तर्षि तारामंडल का परिचय

सप्तर्षि तारामंडल पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध के आकाश में रात्रि में दिखने वाला एक तारामंडल है। इसे आकाश में सात तारों के समूह के रूप में देखा जा सकता है। इसमें चार तारे चौकोर और तीन तिरछी रेखा में रहते हैं। यदि आगे के दो तारों को जोड़ने वाली पंक्ति को सीधे उत्तर दिशा में बढ़ाएं तो ये ध्रुव तारे पर पहुँचती है।

सप्तऋषियों का महत्व और उनके योगदान

पद्मपुराण, विष्णु पुराण और मत्स्य पुराण समेत कई धर्म ग्रंथों में सप्त ऋषियों का उल्लेख मिलता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सप्त ऋषियों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों के रूप में हुई थी। माना जाता है कि भगवान शिव ने गुरु बनकर सप्त ऋषियों को ज्ञान दिया था। शिव को इसी कारण आदि गुरु की संज्ञा से विभूषित किया जाता है।

वेदों में सप्त ऋषियों का योगदान

ऋग्वेद में लगभग 1000 सूक्त हैं, लगभग 10 हज़ार मन्त्र हैं, चारों वेदों में करीब 20 हज़ार हैं और इन मंत्रों के रचियता को ऋषि कहा जाता है। मंत्रों की रचना में अनेकानेक ऋषियों का योगदान रहा है, परन्तु इनमें सात ऋषि ऐसे हैं, जिनके कुलों में मंत्र रचियता ऋषियों की एक लंबी परंपरा रही है। वेदों के परिपेक्ष्य से जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता है, वे नाम इस प्रकार हैं – वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव एवं शौनक।

सप्तऋषियों के प्रति सम्मान और उनकी अमरता

इन ऋषियों ने अपना सर्वस्व मानव जाति के कल्याण और मंगल के लिए अर्पित कर दिया। वास्तव में ये ऋषि श्रेष्ठ, पराक्रम, ज्ञान, धर्म, नीति एवं सृष्टि के नियमों की प्रतिमूर्ति थे। इन्होंने वेदों को मंत्र दिए और इन्हें वैदिक धर्म नीति के संस्थापक और संरक्षक होने का गौरव प्राप्त है। यही कारण है इनके प्रति सम्मान भाव के कारण और इनकी स्मृति को अमरता प्रदान करने के भाव से सप्तऋषि तारामंडल के नक्षत्रों का नाम इन ऋषियों के नाम से रखा गया।

सप्त ऋषि तारामंडल के वैज्ञानिक पहलु

आधुनिक मंत्रों एवं वैज्ञानिक सुविधाओं की अनुपस्थिति में भी वेदों में उक्त मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है। सप्त ऋषि मंडल, ध्रुव तारे के चारों ओर 24 घंटे में एक चक्र पूरा करता है। इस मंडल के प्रथम दो तारे सदैव ध्रुव तारे की सीध में ही दिखाई देते हैं।

आकाशगंगाओं का अद्भुत संसार

सप्त ऋषि तारा मंडल का सबसे रोचक तथ्य ये है कि इस तारामंडल में कई आकाशगंगा भी पायी जाती हैं। इनमें माशिये 81 नामक एक सर्पिल आकाश गंगा है, जो आकाश में सबसे रोशन आकाश गंगाओं में से एक है। इस तारामंडल के क्षेत्र में माशिये 82 नामक आकाश गंगा भी है जिसे अपने आकार की वजह से सिगार गैलेक्सी भी कहा जाता है। पृथ्वी से लगभग 2.5 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर स्थित चकरी आकाश गंगा भी इसी क्षेत्र में है, इसे pin wheel galaxy भी कहा जाता है। कुल मिलाकर सप्त ऋषि तारामंडल में लगभग 50 आकाश गंगा देखी और चिन्हित की जा चुकी हैं।

सप्तऋषि मंडल का धार्मिक महत्व

हिन्दू धर्म के विष्णु पुराण के अनुसार कृतक त्रैलोक्य भू: .... भुवः और स्वः .... ये तीनों लोक मिलकर कृतक त्रैलोक्य कहलाते हैं। सप्त ऋषि मंडल शनि मंडल से एक लाख योजन ऊपर का मंडल है।

सप्तऋषियों का संक्षिप्त परिचय

वशिष्ठ – ऋषि वशिष्ठ का योगदान

ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुलगुरु और उनके चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर राजा दशरथ ने अपने दोनों पुत्रों, श्रीराम एवं लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था।

विश्वामित्र – एक महान तपस्वी

ऋषि होने के पूर्व विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु की प्राप्ति के लिए उनका युद्ध भी हुआ था, लेकिन वो पराजित हुए थे। इस पराजय ने उन्हें कठोर तप के लिए प्रेरित भी किया। विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था।

कण्व – यज्ञ और तपस्या के ज्ञाता

माना जाता है कि इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ, सोमयज्ञ को कण्व ने व्यवस्थित किया था। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे।

भारद्वाज – ऋषि भारद्वाज का योगदान

वैदिक ऋषियों में भारद्वाज ऋषि का उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता वृहस्पति और माता ममता थीं। भारद्वाज ने “यंत्र सर्वस्व” नामक वृहद् ग्रंथ की रचना भी की थी।

अत्रि – ऋग्वेद के पंचम मंडल के दृष्टा महर्षि

ऋग्वेद के पंचम मंडल के दृष्टा महर्षि अत्रि, ब्रह्मा के पुत्र और अनुसुइया के पति थे।

वामदेव – संगीत के ज्ञाता

वामदेव ने इस देश को सामगान अर्थात संगीत दिया। वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्वदृष्टा तथा जन्मत्रयी के तत्व वेत्ता माने जाते हैं।

शौनक – दस हज़ार विद्यार्थियों के गुरु

शौनक ने दस हज़ार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान प्राप्त किया।

भारत समन्वय परिवार की ओर से श्रद्धांजलि

भारत समन्वय परिवार की ओर से इन महान ऋषियों के तप, त्याग और भारतीय संस्कृति के संरक्षक के रूप में इनके योगदान को शत-शत नमन। हमारा प्रयास है कि इन वैदिक ऋषियों के सन्देश और चेतना का प्रकाश जन-जन तक पहुँच सके।

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