शेषनाग कौन थे? | कैसे हुई शेषनाग की उत्पत्ति | शेष शैय्या का रहस्य | Story of Sheshnaag | नाग पंचमी
शेष नाग को आदि शेष एवं अनंत आदि नामों से भी वर्णित किया गया है मान्यता के अनुसार उनके हज़ार मस्तक थे , और उनकी विशालता का अंत नहीं था। इसी कारण से उन्हें ''अनन्त '' नाम की संज्ञा से विभूषित किया गया।
पौराणिक मान्यता के अनुसार वे ऋषि कश्यप और माता कद्रू के सबसे ज्येष्ठ पुत्र थे। उनके हजारों पुत्रों में शेष नाग न केवल ज्येष्ठ थे ,वह सबसे पराक्रमी भी थे। ज्येष्ठ और पराक्रमी होने के कारण वह उत्तराधिकारी भी थे , परन्तु सांसरिक विरक्ति के कारण उन्होंने तप ,भक्ति और प्रभु अनुराग के मार्ग का अनुसरण किया। उनकी माँ ,भाई ,विमाता विनता और गरुड़ थे जिनमे आपसी द्वेष और परस्पर छल का मान था। उन्होंने अपनी छली विमाता और परिवार का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर जा कर कठोर तपस्या की। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने उनके कठोर तप से प्रसन होकर श्री हरि विष्णु के चरणों में अनुराग एवं पाताल लोक का राज्य उन्हें प्रदान किया। अन्ततः उन्हे भक्ति का परम पद प्राप्त हुआ और वह सर्वदा के लिए भगवान विष्णु की शैय्या बनकर उनका सानिध्य पाने में सफल हुये।
पौराणिक कथाओ और मान्यताओं के अनुसार अत्यंत प्राचीन काल खण्ड में लोग हिमालय के आसपास ही रहते थे। प्राचीन ग्रंथो के सन्दर्भ से आदि काल में प्रमुख रूप से जिन जातियों का अस्तित्व वर्णित हैं वह हैं देव, दैत्य ,यक्ष ,गन्धर्व ,वसु , मारुदगण , किन्नर ,नाग , मानव और वानर आदि। इनमें से कुछ जातियां ऐसी थीं जो अलैकिक शक्ति सम्पन जातियों में से एक थीं जो अपनी इच्छानुसार शरीर धारण की क्षमता रखते थे। अति प्राचीन कला कृतियों में कही कही शेष नाग को मानव रुप के भी चित्रित किया गया है। तथ्यों के आभाव में यघपि किसी निष्कर्ष पर पहुंचना संभव नहीं है किन्तु कथाओं और मान्यताओं के अनुसार संसार से विरक्ति , प्रभु चरणों के अनुराग और कठोर तप मानव सुलभ विवेक के ही परिचायक है। शरीर के रुप और आकार से कहीं अधिक चेतना का महत्व है। प्रभु प्रेम में लीन इस चेतना का शरीर मानव का हो या नाग का परन्तु यह चेतना तो नमन के योग्य है।
जब जब धरती पर पाप बढ़ता है तब अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए भगवान् श्री हरि विष्णु अवतरित होते है।उनके विभिन अवतारों में मानव जाति के लिया धर्म, मर्यादा और जीवन मूल्यों का संदेश निहित होता है जो सदियों तक आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शन और प्रेरणा का श्रोत बन जाता है। भगवान विष्णु के वाहन के रूप के रूप में यघपि गरुड़ ही मान्य हैं किन्तु उनके हर अवतार में शेष नाग का साथ उनके साथ जुड़ा होता हैं।
त्रेता युग में शेष नाग ने लक्ष्माण का रूप धारण किया था। जबकि द्वापर युग में श्री कृष्णावतार में वह बलराम के रूप में भगवान के साथ थे। दोनों ही अवतारों में उन्होंने राम और कृष्ण की सहायता की थी। जब बाल कृष्ण को वासुदेव यमुना नदी पार कर गोकुल के नन्द भवन पहुंचा रहे थेतब शेषनाग ने ही अपने फन से बारिश के पानी को रोककर उनकी रक्षा की थी।
मानव जीवन का प्रत्येक पल कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों से भरा होता है इसमें पारिवारिक , सामाजिक तथा आर्थिक दायित्व विशेष रूप से महत्व पूर्ण होता हैं। इन दायित्वों को पूरा करने के क्रम में अनेक समस्याओ एवं विपरीत परिस्थितियों का सामना भी करना होता है जो काल रूपी नाग की तरह भय ,अशांतिऔर चिंताए उत्पन्न करता है। विपरीत परिस्थितियों का यह प्रहार कभी कभी इतना भीषण होता है की व्यक्ति मानसिक रूप से टूट कर बिखर भी जाता है। श्री हरी विष्णु का शांत स्वरूप ऐसी ही विषम परिस्थितियों में सयंम एवं धैर्य के साथ जीवन के सभी कठिन पलो पर विजयी होने का सन्देश देती है। विषम और विपरीत परिस्थितयो में भी शांत , स्थिर , निर्भय तथा निश्चित मन और मस्तिष्क के साथ अपने धर्म का पालन करना ही शेष नाग पर शयन का प्रतीक है भगवन विष्णु और शेष नाग के शाश्वत सम्बन्धो का यही सन्देश हैं।
हमारे पौराणिक धर्म ग्रंधो में सांकेतिक रूप से जन कल्याण की भावना से प्रेरित होकर शिक्षाप्रदान करने की एक परंपरा सदियों से रही है। इसी परंपरा के क्रम में आदि शेष , अन्नत या शेष नाग एक ज्वलंत उदाहरण हैं। शेशनाग एक ऐसी ही चेतना की अनुभूति हैं यदि इन अमर चेतनाओं पर विंहगम दृष्टि डालें तो विभिन्न जन्मों में विभिन्न युगों में विभिन्न शरीरों को धारण करके भी इनका अनुराग प्रभु के श्री चरणों में अमरत्व को प्राप्त हुआ। पिछले जन्म में कछुए का शरीर धारण करने वाला केवट किस प्रकार जन्म जन्मांतर से ईश्वर के श्री चरणों में अनुरिक्त के कारण अंततः उनका आशीष और कृपा पाने में सफल हुआ।
इस प्रसंग में भी महत्व शरीर के प्रारूप का नहीं हैं। शरीर कैसा भी हो महत्व तो भगवान् के प्रति असीम भक्ति और अनंत प्रेम का है। भारत समन्वय परिवार की और से ईश्वरीय आस्था और परमेश्वर के प्रति प्रेम की चेतना को शत शत नमन। जीवन चक्र से मुक्ति के इस मार्गकी अवधारणा से जन जन को अवगत कराना हमारा लक्ष्य भी है और संकल्प भी।
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