अधिक मास को क्यों कहा जाता है पुरुषोत्तम और मलमास क्या है इसकी मान्यताएं| Malmaas | Bharat Mata
हिन्दू पंचांग में हर तीसरे वर्ष एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है.. जिसे अधिक मास.. मलमास अथवा पुरषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। इसे सर्वोत्तम मास की संज्ञा भी प्रदान की गयी है। हिन्दू धर्म में इस माह का विशेष महत्त्व है। सम्पूर्ण भारत में लोग इस माह में पूजा-पाठ.. भगवत भक्ति.. व्रत उपवास.. जप और योग आदि धार्मिक कार्यों में संलग्न रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में किए गए धार्मिक कार्यों का फल 10 गुना अधिक मिलता है।
भारतीय हिन्दू पंचांग सूर्य मास और चन्द्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिक मास चन्द्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है जो हर 32 माह 16 दिन और 8 घन्टों के अंतर से आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चन्द्र वर्ष के बीच के अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 364 दिन और लगभग 6 घंटे का होता है.. वहीँ चन्द्र वर्ष 354 दिनों का होता है। दोनों वर्षों के बीच 11 दिनों का अंतर होता है। इसी अंतर को मिटाने के लिए 3 साल में एक चन्द्र मास अस्तित्व में आता है। अतिरिक्त होने के कारण इसे अधिक मास कहा जाता है।
हिन्दू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंच-महाभूतों से मिलकर बना है। इन पंच-महाभूतों में जल.. अग्नि.. वायु.. आकाश और पृथ्वी सम्मिलित हैं। अधिक मास में समस्त धार्मिक कृत्यों.. चिंतन.. मनन.. ध्यान एवं योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन 5 तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस प्रकार अधिक मास में किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर तीन साल में स्वयं को स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नयी उर्जा से भर जाता है।
एक कथा के अनुसार एक बार सूर्य देव अपने अश्वों पर सवार होकर सृष्टि की रचना देख रहे थे। लगातार चलने के कारण उनके रथ के अश्व थक-थक कर एकदम चूर हो गए और भूख-प्यास से परेशान होकर भगवान सूर्य से विश्राम का आग्रह करने लगे। तब सूर्य देव उनके आग्रह पर एक बावली पर रुके और अश्वों को आराम करने के लिए छोड़ दिया। कित्नु सूर्य देव इस दुविधा और चिंता में पड़ गए कि उनका बैठना उचित नहीं है और अश्वों का अधिक चलना भी उचित नहीं है। तभी उनकी दृष्टि बगल में चर रहे गधों पर पड़ी और उन्होंने उनसे चलने को कहा किन्तु गधे.. अश्वों जैसे तेज़ नहीं दौड़ सकते थे। तो जो परिक्रमा 12 मास में पूरी होनी थी वो 13 मास में हुई और इसी माह को अधिक मास कहा गया।
अधिक मास के पुरषोत्तम मास कहे जाने की पीछे भी एक रोचक कथा है। पुराणों के अनुसार जब विद्वानों ने चन्द्र मास का परिचय सभी देवताओं को कराया तो कोई भी देवता अधिक मास के देवता बनने को तैयार नहीं हुए। सभी देवताओं के आग्रह और पूजा-अर्चना के बाद भगवान विष्णु स्वयं इस माह के देवता बनने को तैयार हो गए और तभी से इस माह को पुरषोत्तम मास के नाम से जाना गया।
पुराणों के अनुसार अधिक मास में सभी मांगलिक कर्म वर्जित माने गए हैं। अतिरिक्त होने के कारण ये मास मलिन माना गया और इसी कारण इसे मलमास भी कहा जाता है।
पुरषोत्तम मास का अर्थ है जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती.. इसीलिए इस माह में मांगलिक कार्य वर्जित हैं। अधिक मास में शुभ कार्य वर्जित हैं परन्तु दान.. पुण्य.. कथा.. यज्ञ आदि का विशेष महत्त्व बताया गया है।
एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार जब हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से वरदान माँगा कि उसकी मृत्यु उनके बनाए किसी प्राणी के द्वारा न हो.. न मनुष्य से हो.. न पशु से हो.. न दैत्य से हो और न ही देवताओं से हो.. न अन्दर हो और न बाहर हो.. न दिन में हो और न रात में हो.. न उनके बनाए 12 माह में हो.. न अस्त्र से हो और न शस्त्र से हो.. न पृथ्वी में हो और न ही आकाश में हो.. तब ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह दिया। हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए.. श्री हरि विष्णु को नरसिंह अवतार के रूप में अवतरित होना पड़ा और उन्होंने 12 माह को बढ़ाकर 13 माह बनाया और संध्याकाल में देहरी पर अपने नाखूनों से उसका वध कर दिया।
पुरुषोत्तम मास में दीपदान.. वस्त्र एवं श्रीमद्भागवत कथा ग्रंथ दान का विशेष महत्व है। इस मास में दीपदान करने से धन-वैभव में वृद्घि होने के साथ ही आपको पुण्य लाभ भी प्राप्त होता है।
Bharat Mata परिवार की ओर से आप सभी को अधिक मास की शुभकामनाएं। हमारा सतत प्रयास है कि आप सभी को भारतीय संस्कृति की अविरल धारा से निरंतर सिंचित करते रहें और धर्म तथा इतिहास के ज्ञान से आलोकित कर सकें।
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