शिवरात्री की महत्ता और अनुष्ठानों का परिचय | महाशिवरात्रि : Mahashivratri | Shivratri Utsav

ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं,

वन्दे जगत्कारणम् ।

वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं,

वन्दे पशूनां पतिम् ॥

वन्दे सूर्य शशांक वह्नि नयनं,

वन्दे मुकुन्दप्रियम् ।

वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं,

वन्दे शिवंशंकरम् ॥

सनातन धर्म मे फाल्गुन मास की शिव रात्री का बहुत महत्व है, कहते हैं की इस दिन पूजा करने से भोलेनाथ अपने भक्तों से अत्यधिक प्रसन्न हो जाते हैं। शिव रात्री से जुड़ी अनेक कथाएं हैं।

महाशिवरात्रि से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं : Lord Shiva Maha Shivratri

पहली पौराणिक कथा के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर महादेव पहले बार शिवलिंग के स्वरूप में प्रगट हुए थे। इसी कारण से इस तिथि पर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के प्रकाट्य पर्व के रूप में हर वर्ष महाशिव रात्रि के रूप में मनाया जाता है। शिव पुराण के अनुसार शिवजी के निराकार स्वरूप का प्रतीक  'लिंग' शिवरात्रि की  पावन तिथि की महानिशा में प्रकट होकर सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु के द्वारा पूजित हुआ था। इस पुराण के अनुसार शिवरात्री की मध्यरात्रि मे निशीथ काल मे महादेव की पूजा और महामृत्युंजय मंत्र के जाप का विशेष महत्व है। महाशिवरात्रि वह महारात्रि है जिसका शिव तत्व से घनिष्ठ संबंध है। यह पर्व शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है, और इसका निराकार से साकार रूप मे अवतरण रात्री ही महाशिवरात्रि कहलाई जो समस्त भक्तों को काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि विकारों से मुक्त करके सुख, शांति, व ऐश्वर्य प्रदान करता है। वहीं स्कंद पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है, धरती उसका आधार है और सब अनंत शून्य से प्रकट हो उसी में लीन होने के कारण इसे लिंग कहा गया है।

वहीं दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार महाशिवरात्रि पर भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। फाल्गुन चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव ने वैराग्य छोड़कर देवी पार्वती संग विवाह करके गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। इसी कारण प्रति वर्ष फाल्गुन चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की खुशी में महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन शिवभक्त कई स्थानों पर महाशिवरात्रि पर शिव जी की बारात निकालते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि पर व्रत, पूजा और जलाभिषेक करने से भक्तों के अनेक मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा सुख-समृद्धि आती है। इसके अतिरिक्त महाशिवरात्रि के दिन ही सभी द्वादश ज्योतिर्लिंग प्रगट हुए थे। इस कारण से 12 ज्योतिर्लिंग के प्रगट होने की खुशी में महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि का महत्व

महादेव पर बेल पत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है, बेल पत्र का जुड़ाव समुंद्र मंथन के समय से है। समुद्र मंथन के समय  अमृत से पहले विष निकला। उस विष में बहुत गर्मी थी, जो जीव जंतु और सृष्टि के लिए संकट बन गई। इससे बचाने के लिए भगवान शिव ने विष धारण कर लिया। इस विष से भगवान शिव का मस्तक भी बहुत गर्म हो गया, तब देवताओं ने बेल-पत्र महादेव के मस्तक पर चढ़ाए और जल अर्पित किया। माना जाता है कि बेल-पत्र की तासीर ठंडी होती है। यही कारण है कि बेल-पत्र चढ़ाने से महादेव प्रसन्न होते हैं।

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