करगा महोत्सव - बैंगलोर |Festival of India - Bharat Mata
भारत, संसार का एक मात्र ऐसा राष्ट्र है जहाँ, अनेक धर्म, परम्पराएं, और संस्कृतियाँ एक साथ एक परिवार की तरह रहती हैं, इस देश मे त्योहारों और उत्सवों की भी अनंत श्रंखला है, यहाँ मनाए जाने वाले हर त्योहार के अपने कारण, महत्व और आस्था है। ऐसा ही एक त्योहार है “करगा महोत्सव”
करगा महोत्सव - बैंगलोर | कर्नाटक के त्यौहार - धर्म, परम्पराएं, और संस्कृतियाँ - Bharat Mata
करगा महोत्सव, जो दक्षिण भारत के कर्नाटक की राजधानी बेंगलोर मे मनाया जाता है। करगा, वानीहिकुला क्षत्रियों की सामुदायिक देवी द्रौपदी को समर्पित एक वार्षिक उत्सव है, जो उन्हें नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाली आदर्श महिला के रूप में सम्मानित करता है। यह परंपरा थिगलार नामक बागवानों के तमिल भाषी समुदाय द्वारा आरंभ की गई थी। करगा उत्सव बेंगलुरु के धर्मराय स्वामी मंदिर में आयोजित किया जाता है।
करगा का महत्व | करगा उत्सव क्या है ? (Some Mythological Story)
एक प्रसिद्ध कहानी के अनुसार, कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद, द्रौपदी ने तिमिरासुर नामक राक्षस से युद्ध करने के लिए वीरकुमार नामक सैनिकों की एक सेना बनाई थी। राक्षस की पराजय के बाद, जब पांडव स्वर्ग की ओर जा रहे थे, तो द्रौपदी की बनाई हुई सेना ने उनसे रुकने के लिए कहा, परंतु उन्होंने मना कर दिया और अपने सेना को आश्वासन दिया की वो प्रत्येक वर्ष चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन पृथ्वी पर पुनः आएंगी। नागरथपेटे, बेंगलुरु में श्री धर्म राय स्वामी मंदिर, करगा जुलूस का प्रारंभिक बिंदु और करगा उत्सव से जुड़ा मुख्य मंदिर है। यह उत्सव द्रौपदी देवी करगा शक्तिोत्सव के साथ समाप्त होता है।
करगा उत्सव की परंपराएं
करगा का अर्थ मिट्टी का घड़ा होता है। करगा को एक वाहक के सिर पर रखा जाता है जिस पर एक लंबा पुष्प पिरामिड और देवी की एक मूर्ति संतुलित होती है। उस घड़े की सामग्री सदियों से एक रहस्य बनी हुई है। करगा ले जाने वाला व्यक्ति महिला की पोशाक पहनता है। वह करगा को बिना स्पर्श किये अपने सिर पर संतुलित करता है। उत्सव में उनके आगमन की घोषणा सैकड़ों 'वीरकुमारों' द्वारा की जाती है, जो धोती और पगड़ी पहन कर तलवारों के साथ तैयार रहते हैं। रात भर चलने वाली शोभायात्रा उत्सव का मुख्य आकर्षण होती है, जो की पूर्णिमा की रात को आयोजित की जाती है और अर्ध रात्री के निकट मंदिर से आरंभ होती है। सभी वीरकुमार "गोविंदा गोविंदा" के जाप के साथ करगा के चारों ओर नृत्य करते हैं और प्रसन्न द्रौपदी (करगा) भी ताल और नृत्य में सम्मिलित हो जाती हैं। यह सभी के लिए एक स्मरणीय दृश्य है। चमेली के फूलों की सुगंध चारों ओर भर जाती है, चंद्रमा की रोशनी आकाश को रोशन कर देती है। उत्सव के अंत को चिह्नित करने के लिए, भक्त एक-दूसरे पर हल्दी का पानी छिड़कते हैं और करगा को खारे पानी के तालाब में विसर्जित करते हैं।
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