रथ यात्रा: श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर, उड़ीसा | इतिहास व महत्व | भारत के प्रसिद्ध मंदिर
नीलांचल निवासाय नित्याय परमात्मने।
बलभद्र सुभद्राभ्याम् जगन्नाथाय ते नमः।।
भारत माता चैनल के व्रत एवं त्योहारों के संग्रह मे आज हम जानेंगे जगन्नाथ पूरी मंदिर रथ यात्रा के बारे मे। यह उत्सव समतुल्यता और एकीकरण का प्रतीक है।
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा हिंदू पौराणिक कथाओं और संस्कृति में बहुत महत्व रखती है। रथ यात्रा का आयोजन पुरी में किया जाता है, जो ओडिशा का एक प्रमुख शहर है। जगन्नाथ पुरी (Puri Jagannath Temple History) की रथयात्रा और इसकी तैयारियां विश्व विख्यात हैं। रथ का निर्माण विधि पूर्वक वैशाख में शुक्ल तृतीया यानी मई में होता है।
रथों की विशेषताएँ:
भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा के लिए अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं। सदियों से इन रथों को एक ही आकार प्रकार मे बनाया जाता है, इनमे किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जाता। सबसे बड़ा रथ भगवान जगन्नाथ (puri jagannath temple) का होता है। इसमें 16 पहिए होते हैं तथा इसकी ऊंचाई भी सबसे अधिक 13.5 मीटर होती है। इस रथ मे कुल 832 लकड़ी के टुकड़ों का उपयोग किया जाता है। जगन्नाथ रथ का आवरण लाल और पीला होता है, और इस रथ के सारथी दारुक हैं। माना जाता है की इस रथ की सुरक्षा स्वयं गरुण देव और महाबली हनुमान जी करते हैं। जगन्नाथ रथ की तरह बलभद्र के रथ में 14 पहिए तो सुभद्रा के रथ में 12 पहिए होते हैं। आपको जानकार आश्चर्य होगा की इन रथों के निर्माण मे किसी भी प्रकार की कील या लोहे का उपयोग नहीं किया जाता। यह त्योहार आषाढ़ (जून-जुलाई) माह के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन से आरंभ होता है और नौ दिनों तक चलता है। इस दिन तीनों मूर्तियों को मंदिर से निकालकर बाहर लाया जाता है, और जयकारों के साथ 108 घड़ों के पानी से स्नान करवाया जाता है। अगले दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीनों अपने अपने रथ पर सवार होकर निकल पड़ते हैं, और यात्रा का आरंभ होता है। उत्सव के माहौल में सैकड़ों श्रद्धालु रथ को खींचते हैं और सूर्यास्त तक तीनों रथ 3 किलोमीटर दूर स्थित बाग बगीचों वाले घर गुड़िचा बारी पहुंच जाते हैं। 10 दिनों तक इन तीनों मूर्तियों को मौसी के मंदिर मे रखा जाता है। रथ यात्रा के दिन अनेक भक्त उपवास रखते हैं। अगले दिन श्री जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को मूल स्थान पर स्थापित करने से पूर्व रथ पर ही सुनहरे वस्त्रों एवं स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाता है, और इसी के साथ 3 सप्ताह तक चलने वाला यह धार्मिक उत्सव पूर्ण हो जाता है।
रथ यात्रा का इतिहास (History of Ratha Yatra)
इस त्योहार के पीछे किंवदंती यह है कि एक बार देवी सुभद्रा ने गुंडिचा में अपनी मौसी के घर जाने की इच्छा व्यक्त की, और उनकी इच्छा पूरी करने हेतु भगवान जगन्नाथ और भगवान बलभद्र ने रथ पर उनके साथ जाने का निर्णय लिया। अतः सभी भक्त इस घटना की याद में देवताओं को उसी तरह यात्रा (history of ratha yatra) पर ले जाकर प्रत्येक वर्ष इस त्योहार को मानते हैं।
जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा उत्सव (Ratha Yatra Festival)
मान्यता है की इस यात्रा (Ratha Yatra Festival) मे 30 लाख से अधिक भक्त सम्मिलित होते हैं क्यूँ की इस समय भगवान अपने हर भक्त से मिलने मंदिर (jagannath temple puri odisha) से बाहर आते हैं। और अपनी करुणामयी दृष्टि से अपने सभी भक्तों के कष्टों को दूर कर देते हैं।
भारत समन्वय परिवार की ओर से जगन्नाथ भगवान को बारम्बार प्रणाम।
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