Krishna Janmashtami : क्यों मनाई जाती है कृष्‍ण जन्माष्टमी, जानिए इस त्‍योहार का महत्व एवं विशेषताएँ

भारत भूमि: धर्म, कला, संस्कृति, ज्ञान एवं आध्यात्म की पवित्र भूमि

भारत भूमि सदैव ही धर्म, कला, संस्कृति, ज्ञान एवं आध्यात्म की भूमि रही है जो अनेकता में एकता, सर्वधर्म समभाव और विभिन्न रीति-रिवाजों और त्योहारों के लिए सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। भारत वही पुण्यभूमि है जो देवताओं की धरती की उपाधि से विभूषित है और इसी पवित्र धरती पर सनातन धर्म के सर्वप्रिय देवता - भगवान श्री कृष्ण का अवतरण हुआ था।

श्री कृष्ण का अवतार और जन्माष्टमी का पर्व

धर्म की स्थापना के लिए और राजा कंस के अत्याचारों से प्रजा को मुक्ति दिलाने हेतु भगवान कृष्ण ने धरती पर अवतार धारण किया था और इसी पावन दिन को जन्माष्टमी अर्थात श्री कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में भगवान श्री कृष्ण ही एक ऐसे देवता हैं जिनके सम्पूर्ण जीवनकाल में विभिन्न रंग दृष्टिगोचर होते हैं।

भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण ने बाल्यकाल में अपनी बाल लीलाओं से सभी का मन मोह लिया और युवावस्था में रासलीला के साथ ही साथ मित्रता एवं अपनी कुशल नीति का परिचय दिया। पुत्र, शिष्य, मित्र, प्रेमी, योद्धा, राजनीतिज्ञ, शासक, सारथी आदि सभी भूमिकाओं में श्री कृष्ण ने एक आदर्श स्थापित किया और अपनी नीतियों और ज्ञान से जीवन का मंत्र भी प्रदान किया। इसी कारण से श्री कृष्ण सभी देवताओं में मानव जाति के निकटतम देवता प्रतीत होते हैं और उनपर श्रद्धा रखने वाले भक्त श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को पूर्ण उत्साह से मनाते हैं।

जन्माष्टमी: एक महत्वपूर्ण त्योहार

श्री कृष्ण की स्तुति भारत और विदेशों में भी किसी न किसी रूप में की जाती है और उनके जन्म का उत्सव - जन्माष्टमी जिसे गोकुलाष्टमी और कृष्णाष्टमी भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्यौहार है।

जन्माष्टमी का शुभ दिन

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र और वृष राशि में मध्यरात्रि के समय हुआ था। शास्त्रों में कहा गया है कि जन्माष्टमी के अवसर पर इन 6 तत्वों का मिलना अत्यंत दुर्लभ होता है। इसी कारण से भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वो तिथि और भी भाग्यशाली माना जाती है।

इस वर्ष जन्माष्टमी 30 अगस्त को मनाई जा रही है जिसमें यही दुर्लभ संयोग घटित होने वाला है और श्रद्धालु इस जन्माष्टमी को अत्यंत पावन और फलदायी मान रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसे संयोग में जन्माष्टमी व्रत रखने से समस्त पापों का नाश हो जाता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की कथा

जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर श्री कृष्ण के भक्त और उपासक व्रत रखते हैं और प्रभु की पूजा-अर्चना करते हैं। कान्हा से अपार प्रेम करने वाले श्रद्धालु रात्रि जागरण भी करते हैं और श्री कृष्ण के नाम के भजन-कीर्तन करते हैं। श्री कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा और वृन्दावन में जन्माष्टमी भव्य रूप से मनाया जाती है।

यहाँ की रासलीला केवल देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी प्रसिद्ध है। इस रासलीला में प्रभु श्री कृष्ण के जीवन के मुख्य वृतांतों को दर्शाया जाता है और राधा के प्रति उनके अलौकिक प्रेम का अभिनन्दन किया जाता है। देश में बहुत से स्थानों पर झांकियां भी बनाई जाती हैं जिनमें श्री कृष्ण की अद्भुत और दिव्य लीलाओं की छवि देखने का सौभाग्य प्राप्त होता है।

विशेष परंपराएँ

महाराष्ट्र में विशेष रूप से इस दिन मटकी फोड़ने की परंपरा है। माखन-चोर नटखट कन्हैय्या की बाल सुलभ क्रीड़ाओं के समान ही उनके उपासकों द्वारा इंसानी मीनार बनाकर धरती से बहुत ऊंची मटकी को तोड़कर यह प्रथा पूर्ण होती है। असंख्य भक्तजन इस उत्सव में एकत्रित होते हैं और गीत-संगीत के कार्यक्रम और नृत्य करके जन्माष्टमी को हर्षोल्लास से मनाते हैं।

कृष्णभूमि द्वारका में जन्माष्टमी के पावन अवसर पर देश-विदेश से बहुत से पर्यटक आते हैं और भगवान कृष्ण से जुड़ी हुयी कथाएँ एवं उनकी लीलाओं के रसास्वादन से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। केवल भारत ही नहीं, अपितु नेपाल, बांग्लादेश, फिजी आदि देशों में भी जन्माष्टमी असीम श्रद्धा के साथ मनाई जाती है।

श्री कृष्ण का अद्वितीय व्यक्तित्व

श्याम, गोपाल, वासुदेव, देवकीनंदन, कान्हा, कन्हैय्या, गोविन्द, माधव, केशव आदि बहुत सारे नामों को अलंकृत करने वाले श्री कृष्ण के हर रूप में एक कांतिमय आभा है जिससे हर व्यक्ति स्वतः ही आकर्षित हो जाता है। सम्पूर्ण संसार एवं मानव-जाति को श्रीमद्भागवद्गीता के ज्ञान से आलोकित करने वाले श्री कृष्ण, पृथ्वी पर युगपुरुष के रूप में विराजमान योगेश्वर रहे जिनके विराट व्यक्तित्व में भारत को एक अद्वितीय पथ-प्रदर्शक एवं कुशल राजनीतिवेत्ता ही नहीं, एक महान कर्मयोगी और दार्शनिक भी प्राप्त हुआ।

जन्माष्टमी व्रत का महत्व

समस्त व्रतों में व्रतराज के रूप में मान्य जन्माष्टमी व्रत, श्री कृष्ण के प्रति श्रद्धालुओं की असीम श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है।

Bharat Mata परिवार की ओर से आप सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं!

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