रक्षा बंधन की कथाएं | माँ लक्ष्मी राजा बलि राखी कथा | द्रौपदी श्री कृष्ण राखी कथा। Rakshabandhan

वो बचपन की शरारतें, वो झूलों पे खेलना
वो मां का डांटना, वो पापा का प्यार
पर एक और चीज जो इन सब से खास है
वो है मेरी प्यारी बहन का प्यार

मां-बाप के बाद इंसान का सबसे घनिष्ठ संबंध भाई और बहन के साथ रहता है। भाई-बहन का प्यार एक ऐसा प्रेम प्रतीक है जिसमें कोई स्वार्थ या लाभ लेश मात्र भी नहीं होता। इसी पवित्र प्रेम के रिश्ते को एक दूसरे के प्रति प्रकट करने के लिए और भाई-बहन के बीच राखी के अटूट रिश्ते को चिरस्थायी बनाने के लिए रक्षाबंधन के त्योहार की परंपरा हमारे देश में सदियों से विद्यमान है।

रक्षाबंधन का इतिहास

वैसे तो इस त्योहार का इतिहास सदियों पुराना है, लेकिन यह त्योहार कब शुरू हुआ, इसे लेकर कोई स्पष्ट और सटीक जानकारी नहीं मिलती। यूं तो रक्षाबंधन के इतिहास को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन इनमें भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी, दानवराज बलि और माता लक्ष्मी, और हुमायूं और रानी कर्णावती की कहानियां सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं।

श्रीकृष्ण और द्रौपदी की कहानी

रक्षाबंधन के इतिहास के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी की कहानी सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीकृष्ण ने शिशुपाल के वध के दौरान इतनी तेज चक्र चलाया कि उनकी उंगली घायल हो गई। श्रीकृष्ण को अपना भाई मानने वाली द्रौपदी ने जब उनकी उंगली से खून निकलता देखा, तो उससे रहा नहीं गया। खून के बहाव को रोकने के लिए द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक हिस्सा चीरकर भगवान कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। उस समय श्रीकृष्ण ने अपनी बहन द्रौपदी से कहा था कि समय आने पर तुम्हारा भाई इसका कर्ज जरूर चुकाएगा।

बलि और माता लक्ष्मी की कहानी

रक्षाबंधन की एक कहानी भगवान विष्णु के वामन अवतार से भी जुड़ी है। इस कहानी के अनुसार, दानवराज बलि 100 यज्ञ पूर्ण कर देवराज इंद्र से इंद्रासन छीनना चाहते थे। जब देवराज इंद्र को इस बात का पता चला, तो वह भगवान विष्णु से मदद मांगने गए। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और दानवीर राजा बलि से दान में तीन पग जमीन मांगी। बलि ने अपना सिर आगे कर दिया और भगवान ने उसका सिर पर तीसरा पग रखकर उसे रसातल में भेज दिया।

इंद्र और इंद्राणी की कहानी

भविष्य पुराण में वर्णित एक प्रसंग के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच भीषण युद्ध चल रहा था, तब असुरों की शक्तियों के आगे देवता कमजोर पड़ने लगे। देवी इंद्राणी ने रेशम के एक धागे को अभिमंत्रित करके देवराज इंद्र के हाथ पर बांध दिया। इस रक्षा सूत्र के कारण देवताओं ने आसानी से असुरों पर विजय प्राप्त कर ली।

रानी कर्णावती और हुमायूं की कहानी

मध्यकालीन समय की भी एक कथा प्रचलित है। 1533 में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। रानी कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमायूं को चित्तौड़ की रक्षा हेतु पत्र लिखा और साथ में एक राखी भी भेजी। राखी मिलने पर हुमायूँ ने रानी कर्णावती को अपनी बहन का दर्जा दे दिया और चित्तौड़ की रक्षा की।

रक्षाबंधन का महत्व

इस तरह रक्षाबंधन का यह त्योहार काफी प्रसिद्ध हुआ और इसे पूरे भारत में मनाया जाने लगा। कई ऐतिहासिक महत्वों को अपने आप में समेटने वाला यह त्योहार आज भी पूरे देश-विदेश में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

Bharat Mata परिवार की ओर से प्रेम और विश्वास के इस बंधन और रक्षा के इस संकल्प को शत-शत नमन। हमारा प्रयास है कि इस पवित्र पर्व की मूल भावना जन-जन तक प्रेषित हो और हमारे पुरातन जीवन मूल्य सदा अमर रहें।

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