Vijay Dashami : जब श्री राम ने माँ दुर्गा का आह्वान कर विजयी वरदान प्राप्त किया | Bharat Mata
विजय दशमी का पावन पर्व पुनः एक बार हमारे बीच है परंतु आईए इस बार इसे मात्र पर्व की पुनराव्रत्ति और औपचारिक्ताओं से हटकर एक संकल्प के रूप में मनाएँ|विजय दशमी का पर्व तो हम सदियों से असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाते आ रहे हैं परंतु आज इस प्रयास की आवश्यकता है की यह विजय शाश्वत हो जाए और रावण का अहंकार और विकार सदा सदा के लिए समाप्त हो जाए|
हमारे लिए विजय एक उत्सव हो सकता है परंतु विजय को प्राप्त करने के लिए प्रायः युद्ध की विभीषिका से भी गुजरना होता है या फिर किसी संघर्ष का दृढता से सामना करना होता है|इसलिए विजय का उत्सव मनाने से पहले युद्ध की बात करना सार्थक होगा और विजय के पर्व से पहले युद्ध की परिस्तिथियों को समझना आवश्यक होगा|
आज के इन क्षणों में भारत समन्वय परिवार की ओर से मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम के चरणों में हार्दिक पुष्पांजलि और उनके पवित्र जीवन की मर्यादाओं को शत शत नमन| यह मानवता के लिए भी सौभाग्य का विषय है की इन महान आदर्शों ने उसे विजय दशमी जैसा पर्व मनाने का अवसर प्रदान किया|
आज आपका ध्यान,दो महान युद्ध जिन्हे विश्व “राम-रावण”युद्ध और महाभारत के युद्ध के नाम से जानता है,की ओर आकर्षित करने का प्रयास है|
यदि महाभारत की बात करें तो त्रिलोक स्वामी भगवान श्री कृष्ण भी नहीं चाहते थे कि यह विनाशकारी युद्ध हो|उस काल के महानायक पितामह भीष्म,आचार्य द्रोण और कृपाचार्य तथा नीति कुशल महात्मा विदुर भी इस युद्ध के विरुद्ध थे|परंतु फिर भी इस युद्ध को रोका नहीं जा सका| अब विचारणीय विषय यह है कि यदि यह युद्ध नहीं होता तो मानव गीता के संदेशों से वंचित रह जाता और कर्म योग के पावन मार्ग से मानवता सदा के लिए वंचित रह जाती|यही वह सत्य वचन है जिन्होंने नटवर श्याम को युगपुरुष भगवान श्री कृष्ण बना दिया और उनकी कर्मयोग की शिक्षा ने मनुष्य को विधाता की सर्वश्रेष्ठ रचना बनाने में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया|
इस प्रसंग का तात्पर्य केवल इतना ही है कि युद्ध का लक्ष्य सदा विनाश ही नहीं होता,वह तो एक कसौटी की तरह मनुष्य के जीवन में आता है और उसे सफलता के सर्वोच्च शिखर तक ले जाता है|जीवन में जब भी किसी संघर्ष से सामना हो तो इसे परमात्मा द्वारा प्रेषित एक परीक्षा की घड़ी समझकर इसका सामना करें क्योंकि अपने अपने युग की महाभारत हर अर्जुन को स्वयं ही लड़नी पड़ती है|यह संघर्ष आपके युग की महाभारत है और आप ही इसके अर्जुन हैं| भारत समन्वय परिवार की कामना है कि जीवन के इस धर्मयुद्ध में आप विजयी हो|
युद्ध विभीषिका के इस क्रम में यदि दूसरे युद्ध की चर्चा करें तो श्री राम ने भी अथक प्रयास किया था कि यह युद्ध न हो लेकिन रावण द्वारा उनके शांति प्रस्ताव को ठुकराने के कारण इस युद्ध को भी रोका नहीं जा सका परंतु यह भी सत्य है कि इसी युद्ध की सफलता ने उन्हे मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्री राम के सम्मान से विभूषित किया|
श्री राम एक “सत्य प्रकाश”और “पुण्य ज्योति” है और रावण एक “दूषित मनः स्थिति” और अहंकार का तम है|सदियों से हम रावण का पुतला जला तो रहे हैं लेकिन रावण का विनाश नहीं हो सका| रावण आज भी अनेक रूपों में हमारे समाज में और हमारे अंदर भी जीवित है| आखिर इस रावण का विनाश कब और कैसे होगा| रावण के सम्पूर्ण विनाश के अभाव में राम राज्य की कल्पना तो केवल कल्पना ही रहेगी|
रावण के सम्पूर्ण विनाश का एक मार्ग है और वह एक मात्र मार्ग है राम के चरित्र को अपने जीवन में आत्मसात करना| राम कथा का बीज शब्दों के जगत में संस्कारों के रूप में कहीं न कहीं हमारे हृदय में रोपित है| वह पुष्पित हो रहा है,पल्लवित हो रहा है,कभी गुनगुना रहा है,कभी सपने देख रहा है| करोड़ों देशवासियों के हृदय में जब यह पौधा सशक्त होगा,करोड़ों राम एक साथ अवतरित होंगे और रामराज्य की यह परिकल्पना साकार हो उठेगी| राम की इस शक्ति के सामने रावण का अस्तित्व स्वयं ही मिट जाएगा| और उस दिन विजय दशमी का पर्व सचमुच सार्थक और शाश्वत होगा|
आईए हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि असत्य और अहंकार को हम अपने जीवन से दूर करेंगे, मन,वचन,और कर्म से केवल सत्य और मर्यादा को अपनाएंगे| हृदय से रावण के अस्तित्व को मिटा देंगे| फिर देखिए हमारा भविष्य राम राज्य की ओर अग्रसर होगा,उस दिन रावण को जलाना नहीं पड़ेगा,वह स्वयं आत्महत्या कर लेगा|
यह मात्र एक कोरी कल्पना नहीं है ,भविष्य के निर्माण का निर्णय तो स्वयं वर्तमान को ही लेना होता है| यात्रा चाहे कितनी भी लंबी हो प्रारंभ तो पहले कदम से ही होती है|
सत्य की ओर अग्रसारित हमारा यह पहला कदम भविष्य के निर्माण में हमारी भूमिका सुनिश्चित करेगा|
एक छोटी सी झलक अपने गौरवशाली अतीत की इन पंक्तियों में देखें-
“हम हैं वही जिन्होंने,सागर पर पत्थर तैराये थे
हम है वहीं जिन्होंने,शत्रु दल को नाच नचाए थे
पथ भटके अखिल विश्व को,हमी राह पर लाए थे
विश्व गुरु थे हम ही,जिनसे शिक्षा पाने आए थे|”
इन भावपूर्ण पंक्तियों के उच्चारण का अर्थ बस यही है कि कुछ नया नहीं करना है केवल अतीत को यह अवसर दें कि वह अपने आप को दोहरा सके|
इतिहास साक्षी है कि भारत ने भटके हुए विश्व का मार्गदर्शन किया है और हम सबके लिए यह गौरव की बात है हम उस महान परंपरा के वंशज हैं|
आईए हम अपनी आस्थाओं में अपने विश्वास को और बढ़ाएँ और इस भोगवादी पाश्चात्य संस्कृति के विष को अपने जीवन में न घुलने दें|
विजय दशमी को राष्ट्र निर्माण का पर्व बनाएँ|
Bharat Mata परिवार की ओर से विजय दशमी के पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ और प्रभु श्री राम के चरणों में शत शत नमन|
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