महर्षि पतंजलि | योगसूत्र के रचयिता | Maharshi Patanjali | Bharat Mata
महर्षि पतंजलि विज्ञान जब प्रत्येक वस्तु विचार और तत्व का मूल्यांकन करता है तो उस प्रक्रिया में धर्म के अनेक विश्वास और सिद्धांत धारा शाही हो जाते हैं। विज्ञान भी सनातन सत्य को पकड़ने में अभी तक कामयाब नहीं हुआ है। किंतु वेदांत में उल्लेखित जिस सनातन सत्य की महिमा का वर्णन किया गया है। विज्ञान धीरे-धीरे उससे सहमत होता नजर आ रहा है। हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान और मोक्ष की गहरी अवस्था में ब्रह्म ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को जानकर उसे स्पष्ट तौर पर व्यक्त किया था। दिनों में ही सर्वप्रथम ब्रह्म और ब्रह्मांड के रहस्य पर से पर्दा हटा कर मोक्ष की धारणा को प्रतिपादित कर उसके महत्व को समझाया गया था। मोक्ष के बगैर आत्मा की कोई गति नहीं है। इसलिए रिसीव नहीं मोक्ष के मार्ग को ही सनातन मारना ना है। भारत की गौरवशाली ऋषि परम। भी अनेक ऋषि यों ने इस जगत और वह जगत के रहस्य को सुलझाने का प्रयास किया है। ऐसी मान्यता है कि इसी क्रम में संसार को योग शिक्षा से धन्य करने वाले महर्षि पतंजलि ने धरती पर अवतार लिया। उन्हें विशेष अथवा शेषनाग का अवतार माना जाता है। महर्षि पतंजलि ने योग की 195 सूत्रों को प्रतिपादित किया जो योग दर्शन के स्तंभ माने गए। इन सूत्रों के पाचन खूब भाष्य कहा जाता है। पतंजलि ही पहले और एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने योग को आस्था अंधविश्वास और धर्म से बाहर निकाल कर एक सुव्यवस्थित रुप दिया था। पतंजलि प्राचीन भारत के एक मूली और नागों के राजा शेषनाग के अवतार थे जिन्हें संस्कृत के अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों का रचयिता माना जाता है। इनमें से योग सूत्र उनकी महानतम रचना है जो योग दर्शन का मूल ग्रंथ है। भारतीय साहित्य में पतंजलि द्वारा रचित को मुख्य ग्रंथ मिलते हैं। योगसूत्र अष्टाध्याई पर भाषा और आयुर्वेद पर ग्रंथ पतंजलि ने अभियान पर।मिट्टी का लिखी जैसे महाभाष्य का नाम दिया। इनका काल 200 ईसापुर माना जाता है। पतंजलि शुंग वंश के शासनकाल में थे। उन्होंने पुष्यमित्र शुंग का अश्वमेध यज्ञ भी संपन्न कराया था। इनका जन्म गोलार्ध में हुआ था। बाद में वह काशी में बस गए व्याकरण आचार्य पानी के शिष्य थे। काशीवासी आज भी नाग पंचमी को उनके स्मृति पर्व के रूप में मनाते हैं। पतंजलि महान चिकित्सक थे और उन्हें ही चरक संघिता का प्रणिता माना जाता है। योग सूत्र पतंजलि का महान दान है। पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे। अनेक धातु युग और 97233 देन है। राजा भोज ने इन्हीं तन के साथ मन का भी चिकित्सक कहा है। योगेन चित्तस्य पदेन वाचां ने मानव शरीर से जावेद केन यू अपात्र उत्तम प्रोग्राम मुनि नाम पतंजलि प्रांजल ईरान तो बस में।अर्थात चित्त शुद्धि के लिए योग वाणी शुद्धि के लिए व्याकरण और शरीर शुद्धि के लिए वैद्यक शास्त्र देने वाले मुनि श्रेष्ठ पतंजलि को प्रणाम ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में महाभाष्य के रचयिता पतंजलि काशी मंडल के ही निवासी थे। मून इस तरह की परंपरा में भी अंतिम मुनि थे। फारिणी के पश्चात पतंजलि सर्वश्रेष्ठ स्थान के अधिकारी पुरुष थे। उन्होंने पाणिनि व्याकरण के महाभाष्य के रचनाकार को से स्थिरता प्रदान की और अलौकिक प्रतिभा के धनी थे। व्याकरण के अतिरिक्त अन्य शास्त्रों पर भी उनका समान रूप से अधिकार था। व्याकरण शास्त्र में उनकी बात को अंतिम प्रमाण समझा जाता था। उन्होंने अपने समय के जनजीवन का पर्याप्त निरीक्षण किया था। अतः महाभाष्य व्याकरण का ग्रंथ होने के साथ-साथ तत्कालीन समाज का विश्वकोश भी है। पतंजलि ने इस ग्रंथ की रचना कर पाणिनीय व्याकरण की प्रमाणिकता कर अंतिम मुहर लगा दी। पतंजलि योग सूत्र की एक प्रारंभिक कथा के अनुसार बहुत समय पहले की बात है। सभी ऋषि मुनि भगवा। विष्णु के पास पहुंचे और बोले भगवान आपने धनवंतरी का रूप लेकर शारीरिक रोगों के उपचार हेतु आयुर्वेद दिया पर अभी भी पृथ्वी पर लोग काम क्रोध और मन की वासनाओं से पीड़ित है। इनसे मुक्ति का मार्ग क्या है। अधिकतर लोग शारीरिक ही नहीं मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी विचारों से दुखी होते हैं। भगवान अधिशेष सर की शैया पर लेटे हुए थे। सहस्त्र मुख वाले अभिषेक सर जागरूकता का प्रतीक है। भगवान विष्णु ने ऋषि मुनियों की प्रार्थना सुनकर जागरूकता स्वरूप आदेश को महर्षि पतंजलि के रूप में पृथ्वी पर भेज दिया। इस तरह आयोग का ज्ञान प्रदान करने हेतु पृथ्वी पर महर्षि पतंजलि ने अवतार लिया। भारत समन्वय परिवार का प्रयास है कि हम महर्षि पतंजलि द्वारा बताए गए योग ज्ञान से जन-जन को परिचित कराएं और इस महान ज्ञान से विश्व को लाभान्वित करने के प्रयास में अपना योगदान सुनिश्चित करें।
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