Uttarakhand | देवभूमि उत्तराखंड राज्य की सम्पूर्ण जानकारी | प्रसिद्ध धार्मिक और पर्यटक स्थल 01

हिमालय की गोद मे है उत्तराखंड जिसे पहले उत्तरांचल कहते थे और आज देवभूमि कहते हैं। उत्तराखंड की सुंदरता की बात करें तो जिधर देखेंगे उधर प्राकृतिक सौन्दर्य की झलक देखने को मिलेगी। उत्तराखंड में कुल 13 जिले और 25 बड़े शहर हैं जिनमे नैनीताल, हरिद्वार, अल्मोड़ा, हल्द्वानी, कोटद्वार, मसूरी, काशीपुर, रुड़की, ऋषिकेश, रामनगर, रानीखेत, पिथौरागढ़, जोशीमठ, बाग़ेशवर और उत्तराखंड की राजधानी देहरादून शामिल है। गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ से मिलकर बने चार धाम यात्रा उत्तराखंड के आध्यात्मिक परिदृश्य का केंद्र है। हिंदू पौराणिक कथाओं में इन दिव्य स्थलों का गहरा महत्व है।

उत्तराखंड का इतिहास - 

प्राचीन हिंदू ग्रंथों में, उत्तराखंड को स्वर्ग लोक के रूप में संदर्भित किया गया था - एक अस्थायी निवास स्थान जो धर्मात्माओं के लिए था और पवित्र गंगा नदी का स्रोत था। इस क्षेत्र को सदा ऋषियों और साधुओं का निवास स्थान माना गया। यहाँ पर स्थित गंगोत्री, यमनोत्री, केदारनाथ, ऋषिकेश, हेमकुंड साहिब, मंशा देवी, चंडी देवी, और कैंची धाम जैसे हिंदू तीर्थस्थलों के कारण उत्तराखंड ने "देवभूमि" (देवताओं की भूमि) का उपनाम अर्जित किया। वैदिक काल के दौरान, उत्तराखंड छोटे गणराज्यों के समूह के रूप में जाना जाता था, जिन्हें जनपद कहा जाता था। ये गणराज्य विविध संस्कृतियों का संगम थे, जो क्षेत्र की विशिष्ट पहचान में योगदान करते थे।

उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी 

अंग्रेजी हुकूमत से देश को बचाने के लिए नौजवानों ने बढ़ चढ़ कर आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था। वहीं उत्तराखंड की माटी के सपूतों ने भी अपनी वीरता की पहचान दी थी। पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र गढ़वाली हो या कालू सिंह मेहरा कई उत्तराखंड के रहने वाले लोग आजादी की लड़ाई के मैदान में कूद पड़े, जिनमें कालू मेहरा, हरगोविंद पंत ,गोविंद बल्लभ पंत, हर्ष देव औली, बद्रीदत्त पांडेय ,बिशनी देवी, राम प्रसाद नौटियाल, अनुसूया प्रसाद बहुगुणा जैसे बड़े नाम शामिल हैं। 

स्वतंत्रता के बाद, टिहरी रियासत को उत्तर प्रदेश में विलीन कर दिया गया, जिसमें गढ़वाल और कुमाऊं विभाग शामिल थे। वर्षों तक, राजनीतिक समूहों ने, राज्य की मांग का समर्थन किया। उत्तराखंड के अलग राज्य की मांग ने 1994 में जोर पकड़ा, स्थानीय लोगों और राजनीतिक पार्टियों से व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ। अंततः, 9 नवंबर 2000 को, उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग होकर एक नए राज्य के रूप में जन्म मिला। 

उत्तराखंड और साहित्य – 

भारतीय साहित्य में लोक साहित्य सर्वमान्य है। उत्तराखंड में मुख्य रूप से 3 भाषाएं गढ़वाली, जौनसारी और कुमाऊनी प्रचलित रूप से बोली जाती हैं। वहीं भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण के कथन अनुसार उत्तराखंड राज्य में कुल 13 भाषाएं बोली जाती हैं। उत्तराखण्ड का लोक-साहित्य अत्यन्त समृद्ध है। कुमाऊँ का लोक-साहित्य विशेष रूप से लोगों को आकर्षित करता है। देवभूमि ने ऐसे कई रचनाकारों को जन्म दिया जिन्होंने हिंदी भाषा व् हिंदी साहित्य के स्वरुप को और समृद्ध बनाने का कार्य किया। सुमित्रानन्द पंत ,पीतांबर दत्त बड़थ्वाल, शिवानी, अबोध बहुगुणा, मनोहर श्याम जोशी, हिमांशु जोशी, मंगलेश डबराल, लीलाधर जगूड़ी जैसे अनेक साहित्यकारों ने हिंदी को समृद्ध बनाने में अहम योगदान दिया। 

उत्तराखंड की महान विभूतियां – 

उत्तराखण्ड राज्य में अनेक महान विभूतियों ने जन्म लिया, जो आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण संरक्षण, कला, साहित्य, आर्थिक, देश की रक्षा एवं सुरक्षा जैसे कई क्षेत्रों में विश्वप्रसिद्ध हुए हैं। देश की इन्ही महान विभूतियों की कतार में स्थान प्राप्त करने वाली सुप्रसिद्ध हस्तियों में एक चर्चित और विख्यात प्रतिष्ठित नाम घनानंद पाण्डे का आता हैं। 
डा.घनानंद पाण्डे भारत सरकार में प्रमुख पदों पर कार्यरत थे साथ ही उन्होंने युवा प्रतिभाओं के पोषण और शिक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उउनकी उत्कृष्ट सेवाओं के कारण सन 1969 में उन्हे पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। अगला नाम है मोलाराम तोमर जी का जिन्हे वर्णित करते हुए कहा गया है,

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अब जानते हैं वीरांगना तीलू रौतेली के बारे मे जिन्हे गढ़वाल की लक्ष्मीबाई भी कहा जाता है। उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली का वास्तविक नाम तिलोमत्ता देवी था। तीलू बचपन से ही तलवारबाजी और घुड़सवारी मे निपुण थी। जिस समय गढ़वाल शासकों और कत्यूरियों के मध्य संग्राम चल रहा था, उस समय तीलू के मंगेतर समेत भूप सिंह और उनके दो बेटे वीरगति को प्राप्त हुए. अपने गढ़ में बाहरी आक्रमणकारियों के आक्रमण को देख तीलू ने भी तलवार उठा ली और फिर डटकर दुश्मनों का सामना किया। तीलू ने मासीगढ़, सराईखेत, खैरागढ और भौनखाल सहित 13 किलों पर विजय पताका फहराई। 

रानी कर्णावती – 

जिन्हे दुनिया नाक काटी रानी के नाम से भी जानती है। गढ़वाल की इस रानी ने पूरी मुगल सेना की नाक कटवायी थी। कर्णावती एक विदूषी महिला होने के साथ साथ निर्भीक एवं पराक्रमी भी थी। कहते हैं एक युद्ध मे जब मुग़ल पूर्णतः हार गए थे तब रानी ने संदेश भिजवाया कि वह सैनिकों को जीवनदान देन सकती है लेकिन इसके लिये उन्हें अपनी नाक कटवानी होगी। सैनिकों को भी लगा कि नाक कट भी गयी तो क्या जिंदगी तो रहेगी। मुगल सैनिकों के हथियार छीन दिये गये थे और आखिर में उनके एक एक करके नाक काट दी गई थी। उत्तराखंड की अन्य महान विभूतियों मे जियारानी और वैदयराज गुमानी पंत जैसे नाम शामिल हैं। 

उत्तराखंड की नदियां- 

हिमालय की चोटियों से निकली हुई उत्तराखंड की नदियां हिंदू धर्म और उनकी पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। इस सूची मे भागीरथी, अलखनन्दा, गंगा, यमुना, भिलंगना, काली, रामगंगा, सरस्वती, कोसी, मंदाकिनी, धौलीगंगा आदि नदियां प्रमुख एवं प्रसिद्ध है। 

ये सभी नदियां इस राज्य के पर्यटन स्थल और तीर्थाटन को बेहद आकर्षण प्रदान करती हैं। जिनमे ऋषिकेश, देहरादून, नैनीताल, भीमताल, औली, बद्रीनाथ, जिम कॉर्बेट, रानीखेत, मसूरी, केदारनाथ, हरिद्वार, धनोल्टी, मुक्तेश्वर, बागेश्वर, फूलों की घाटी, द्रप्रयाग, पिथोरागढ़, उत्तरकाशी, मनुस्यारी, चकराता, चमोली, हरसिल, और कौसानी शामिल है। नौजवानों मे यहाँ का बाली पास ट्रेक और हर की दून ट्रेक काफ़ी प्रसिद्ध हैं। 

उत्तराखंड के पशु पक्षी और वृक्ष -

उत्तराखंड मे 600 से अधिक प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं, जिसमे से मोनाल उत्तराखंड का राजकीय पक्षी है, और साल, ओक, पाइन, रोडोडेंड्रोन और देवदार जैसे वृक्षों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिसमे बुरांस यहाँ का राजकीय वृक्ष है। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड के राष्ट्रीय उद्यानों और सुरम्य घाटियों मे यहाँ का राजकीय फूल – ब्रह्म कमल और राजकीय पशु कस्तूरी मृग भी देखने को मिलता है। 

उत्तराखंड के त्योहार 

यह देवभूमि अपने विभिन्न तीज-त्यौहारों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ प्रमुख राष्ट्रीय त्यौहारों के साथ-साथ अनेक स्थानीय तथा क्षेत्रीय त्यौहार भी मनाये जाते हैं। इन्हीं त्यौहारों में से एक पर्व फूलदेई, उत्तराखण्ड का एक प्रसिद्ध लोक पर्व है। इस त्यौहार को फुलफुलमाई, फूल संक्रांति, फूल सगरांद, फूलकण्डी, फूलदेई भी कहा जाता है। फिर आता है हरेला जो कुमाऊँ का एक प्रसिद्ध त्यौहार है। यह त्यौहार श्रावण मास की संक्रांति को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। त्यौहार के 10 दिन पहले किसी डलिया या छोटे पात्र में सात अनाजों, यथा धान, मक्का, जौ, भट्ट आदि को बोया जाता है।

इसके साथ ही यहाँ मनाया जाता है राज्य स्थापना दिवस। उत्तराखंड का गठन 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी हिस्से और हिमालय पर्वत श्रृंखला के एक हिस्से से कई जिलों को मिलाकर किया गया था। 3 नवंबर से शुरू होने वाला "राज्य स्थापना सप्ताह" उत्तराखंड स्थापना दिवस का एक अनूठा उत्सव है जो आम तौर पर पूरे एक सप्ताह तक चलता है। यह कार्यक्रम 9 नवंबर को "भारत भारती" उत्सव के साथ समाप्त होता है, जो "मेरा सैनिक" सहित कई गतिविधियों के बाद होता है। 

मेलों और त्योहारों के दौरान और फसल के समय, कुमाऊंनी लोग अक्सर झरवा, चंदूर छपलीर और कई अन्य प्रकार के लोक नृत्य करते हैं। गढ़वाल क्षेत्र के प्रमुख नृत्य रूप हैं लंगवीर नृत्य, बरदा नाटी लोक नृत्य, पांडव नृत्य, धुरांग, धुरिंग और छूरा, छपेली (लोक नृत्य)। 
उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत परमार्थ निकेतन में हर दिन कई योग और ध्यान कक्षाएं होती हैं। इनमें हठ योग से लेकर योग निद्रा और विशेष ध्यान कक्षाएं शामिल हैं। इसके साथ ही यहाँ स्थित समन्वय कुटीर, शांति कुंज, तथा पतंजलि योग पीठ जैसे संस्थान अति प्रसिद्ध हैं। 

लोक कलाओं मे भी उत्तराखंड एक अति समृद्ध राज्य है। यहाँ दशहरा, दीपावली, नामकरण, जनेऊ आदि शुभ अवसरों पर महिलाएँ घर में ऐंपण (अल्पना) बनाती है। इसके लिए घर, ऑंगन या सीढ़ियों को गेरू से लीपा जाता है। हरेले आदि पर्वों पर मिट्टी के डिकारे बनाए जाते हैं। ये डिकारे भगवान के प्रतीक माने जाते हैं। इनकी पूजा की जाती है। कुछ लोग मिट्टी की सुंदर-सुंदर मूर्तियाँ (डिकारे) बना लेते हैं। यहाँ के घरों को बनाते समय भी लोक कला प्रदर्षित होती है। पुराने समय के घरों के दरवाजों व खिड़कियों को लकड़ी की सजावट के साथ बनाया जाता रहा है। दरवाजों के चौखट पर देवी-देवताओं, हाथी, शेर, मोर आदि के चित्र नक्काशी करके बनाए जाते हैं।

उत्तराखण्ड की लोक धुनें भी अन्य राज्यों से काफ़ी भिन्न है। यहाँ वाद्य यन्त्रों में नगाड़ा, ढोल, दमुआ, रणसिंग, भेरी, हुड़का, बीन, डौंरा, कुरूली, अलगाजा प्रमुख है। यहाँ के लोक गीतों में न्योली, जोड़, झोड़ा, छपेली, बैर व फाग प्रमुख हैं। इन गीतों की रचना भी स्थानीय जनता द्वारा की जाती है। पर्वतों, नदियों और अद्वितीय धार्मिक स्थलों से साथ-साथ उत्तराखंड भारत के कुछ शीर्ष कॉलेजों का भी घर है। उत्तराखंड में IIT रुड़की, IIM काशीपुर, UPES देहरादून, ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी देहरादून, NIT और कई अन्य प्रसिद्ध विश्वविद्यालय स्थित हैं। यह राज्य संस्कृति, प्रकृति, ज्ञान, ध्यान से संपूर्णतः परिपूर्ण है। 

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