श्रीमद भगवत गीता : अध्याय 2 | सांख्य योग | गीता ज्ञान श्रृंखला

श्रीमद भगवद गीता के दूसरे अध्याय में कुल 72 श्लोक हैं, और इस अध्याय में श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दी गई शिक्षा न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि हम सभी मनुष्यों के लिए एक अमूल्य धरोहर है। इस अध्याय में श्री कृष्ण अर्जुन को स्वजनों के मोह से मुक्त करने के लिए ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं, जिससे न केवल मोह से मुक्ति प्राप्त होती है, बल्कि आत्मा की सच्चाई और जीवन के वास्तविक उद्देश्य का भी बोध होता है।

अर्जुन की दुविधा और श्री कृष्ण की शिक्षा

अर्जुन, जो द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह के साथ कौरवों से युद्ध करने के विचार से घबराए हुए थे, श्री कृष्ण से यह निर्णय नहीं ले पा रहे थे कि युद्ध करें या नहीं। श्री कृष्ण उन्हें समझाते हुए कहते हैं 

परमात्मा नाशरहित और अविनाशी हैं, और यह अविनाशी तत्व शरीरों में व्याप्त है। इस अविनाशी आत्मा का विनाश कोई नहीं कर सकता।

इसलिए भय को छोड़कर धर्म के मार्ग पर चलो और युद्ध करो।

सांख्य योग: आत्मा और कर्म का अद्भुत समन्वय

भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को सांख्य योग (ज्ञान योग) के सिद्धांत से अवगत कराते हैं, जिसमें वह अर्जुन को बताते हैं कि आत्मा नष्ट नहीं होती। इसके बाद वह कर्मयोग के सिद्धांत पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि कर्म करो, लेकिन फल की इच्छा मत रखो। सफल या असफलता के प्रति समत्व दृष्टि रखकर कर्तव्य निभाओ। भगवान कहते हैं कि योगी वह है, जो अपने कर्मों को बिना किसी स्वार्थ, ममता या अहंकार से परे भगवान के लिए करता है और फल की चिंता नहीं करता। ऐसे व्यक्ति को शांति प्राप्त होती है और अंत में वह ब्रह्मानंद में लीन हो जाता है।

इस प्रकार, श्रीमद भगवद गीता के दूसरे अध्याय का सार यही है कि ज्ञान और कर्म का संयोजन जीवन के वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त करने का मार्ग है।

सांख्य योग - दूसरा अध्याय: 

गीता ज्ञान श्रृंखला: सांख्य योग का विश्लेषण

भारत माता चैनल द्वारा प्रस्तुत गीता ज्ञान श्रृंखला के पिछले भाग में हमने विषाद योग का संक्षिप्त परिचय दिया था। आज हम दूसरे अध्याय, सांख्य योग के बारे में चर्चा करेंगे। इस अध्याय की शुरुआत भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को शोक रूपी संसार सागर से उबारने के उद्देश्य से आत्मा के स्वरूप का वर्णन करने से होती है। इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं:

"अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः॥"

यहां भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तुम अशोच्य (अवश्य दुखी होने योग्य नहीं) वस्तुओं के लिए शोक कर रहे हो। पण्डित लोग शरीर के नष्ट होने पर शोक नहीं करते, क्योंकि आत्मा अमर है और नष्ट होने वाली नहीं है।

 

जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति का मार्ग

दूसरे अध्याय का मुख्य उद्देश्य आत्मा के नित्यत्व का उपदेश देना और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझना है। अर्जुन, जो महान तपस्वी और शास्त्रज्ञ हैं, अपनी शारीरिक और मानसिक शक्तियों के बावजूद, उचित मार्गदर्शन के बिना ब्रह्मनिष्ठ नहीं हो पाए थे। श्री कृष्ण ने उन पर करुणा दिखाते हुए जीवन और जगत के रहस्यों को खोलते हुए शांति प्राप्ति का मार्ग बताया। अर्जुन ने श्री कृष्ण के चरणों में समर्पण करते हुए उन्हें अपना गुरु माना और आत्मा के नित्यत्व को समझने के बाद स्वधर्म का पालन करने का निर्णय लिया। भगवान श्री कृष्ण ने इस अध्याय में कर्मयोग के सिद्धांत की नींव रखी, जो आगे चलकर तीसरे अध्याय में विस्तार से समझाया गया।
इस प्रकार, श्रीमद भगवद गीता का दूसरा अध्याय, सांख्य योग, हमें जीवन के उच्चतम उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ज्ञान और कर्म का सामंजस्य स्थापित करने का मार्ग बताता है।

 

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