बांटा नया सवेरा | Banta Naya Sawera | Bharat Mata

जब समग्र भारत पर ही था छाया एक अंधेरा

स्वार्थवृत्ति, सुख की अभिलाषा ने डाला था डेरा.

चाटुकारिता और गुलामी लगा रहे थे फेरा

समुदायों में हुए विभाजित कहते तेरा मेरा

तब गांधी ने आकर भू पर बाँटा नया सवेरा

जलियांवाला बाग और डायर को क्रूर कहानी

अंग्रेजों का व्यावहीन शासन करता मनमानी ।

त्राहि हि करते मानव की गूंज उठी जब बाणी

आह, वेदना, पीड़ा को ध्वनि बापू ने पहचानी

स्वतंत्रता आराधन के हित लोकशक्ति को प्रेरा

तब गांधी ने आकर भू पर बांटा नया सवेरा

तकली, पूनी, चरखा कति में नूतन अस्त्र बनाये

सत्य अहिंसा के अमोघ बाणों के जाल बिछाये ।

सत्याग्रह, अनशन, आंदोलन, शब्द चतुर्दिक छाये

प्राणों को न्योछावर करने तरुण सैकड़ों आये।

तब मोहन के इंगित पर ही जेलें बनीं बसेरा

तब गांधी ने आकर भू पर बांटा नया सवेरा ।

फाँसी फंदों को चूमा हंसे और मुस्काये

भारतमाता के चरणों पर जीवन पुष्प चढ़ाये ।

इन्कलाब को जिन्दा रखने का ही स्वप्न सजाये

अंतिम क्षण तक बलिदानों के उत्सव गये मनाये।

तेरा वैभव अमर रहे माँ, रहे न कुछ भी मेरा

तब गांधी ने आकर भू पर बाँटा नया

जन्म दिवस पर आज भव्य मंदिर में हम हैं आये

यही विनय है भौतिक नर में नारायण बस जाये ।

द्वेष, ईर्ष्या, असहकार की अग्नि न लगने पाये

राम नाम की ध्वनि फिर गूँजे शांति बिखरती जाये ।

अणुबम विस्फोटों का फिर से बने न मानव चेरा

तब गांधी ने आकर भू पर बांटा नया सवेरा