मेरा गान अमर हो जाए | Mera Gaan Amar Ho Jaye | Bharat Mata
मै गाता हूँ इसलिए की मेरा गान अमर हो जाए।
मेरे अंतर का ध्यान यह म्रियमाण ना होने पाए।
मै गाता हूँ इसलिए की मेरा गान अमर हो जाए।
जब एकाकी जीवन यह नीरस सा लगने लगता,
जब प्रकृति-नटी के रंग लख मन अपने आप मचलता।
उर का हिलता तार का;पान-कुसुम की जब है खिलता,
आ करके चुपचाप न जाने कौन भाव है भरता।
मै उसे रिझाता गीतों से, पहचान कहीं हो जाए।
मै गाता हूँ इसलिए की मेरा गान अमर हो जाए
जो दिल का दर्द मिटा दे, मुखरित हो ऐसी वाणी,
गहरे घावों को भर दे, हो कविता जन-कल्याणी।।
तन्मयता ऐसी ला दे, अपने को भूले प्राणी,
मानवता राहत पाए, ऐसी हो अमिट निशानी।।
मैं फूल चढ़ाता गीतों के, वरदान कहीं मिल जाए,
मै गाता हूँ इसलिए की मेरा गान अमर हो जाए।।
अपने जीवन का एक सहारा तुम्हें बनाया है,
सुख के महलों के खंडहर पर लघु नीड बसाया है।।
सपनों मे देकर स्नेह तिरोहित हो तरसाया है,
ओ पाषाण-हृदय प्रभु अद्भुत तेरी माया है।
मैं ताने देता गीतों के, मुस्कान कहीं मिल जाए,
मै गाता हूँ इसलिए की मेरा गान अमर हो जाए।।
कवि का कर्म कठोर कल्पना कैसे नहीं करूंगा?
काव्य-कला के महा सिंधु मे कैसे बिन्दु भरूँगा?
शब्द-शास्त्र की कठिन कसौटी पर कैसी उतरूँगा?
होकर के स्वछन्द भाव-वन मे कैसे विचरूँगा?
मैं अर्ध्य चढ़ाता भावों के , भगवान कहीं मिल जाए।
मै गाता हूँ इसलिए की मेरा गान अमर हो जाए।।
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