चीन के विरोध में ऐसी अदभुत कविता | सावधान चीन | ओ मदांध रे चीन | O Madhandh Re China | Bharat Mata

सावधान हो कदम बढ़ाना, प्रो मदान्ध, रे चीन ! 

चालिस कोटि सुतों के रहते भूमि न सकता छीन ।

यह भारत है धर्मप्राण, प्रति नीति न्याय से युक्त !

 इसीलिए चुपचाप, अरे प्रो दगाबाज अभियुक्त !

 पर सहिष्णुता की सीमा अब चुकने वाली है । 

करनी की भरनी भी तुमको मिलने वाली है।

 अभी पार्थ- गाण्डीव उठेगा, गदा लिए फिर भीम । 

खुला तीसरा शम्भु-नयन तो फिर परिणाम असीम |

 पाञ्चजन्य यदि बजा तुम्हारी होगी ठण्डी बीन । 

सावधान हो कदम बढ़ाना, श्रो मदान्ध, रे चीन ॥

एक इञ्च भी भूमि देश की यदि तुमने फिर काटी ।

 एक नहीं, दो नहीं, सैकड़ों होंगी हल्दी घाटी !

 जो भारत का मुकुट उसी पर डाका तुमने डाला । 

नहीं ज्ञात क्या तुम्हें प्रतापी उस प्रताप का भाला ?

 काली का खप्पर खाली है, मानो प्यासा है

 चीनी मिश्रित रक्त-पान की अव अभिलाषा है ।

 तुम जितने छोटे, खोटे हो उतने ही मतिहीन ।

 सावधान हो कदम बढ़ाना, घो मदान्ध, रे चीन ॥

माना साठ कोटि हो तुम, लेकिन प्रति बनि हो ।

 भारतीय सिंहों के सम्मुख तुम मृगछौने हो । 

तुमने भारत का प्रतीत कब पढ़ा सहित विश्वास । 

आँखें खुल जातीं कब की ही, खिंच जाता निश्वास । 

इतना विस्तृत देश तुम्हारा, इतनी तृष्णा प्यास !

 हिन्दुस्तान अगर चाहे तो कर दे सत्यानाश । 

भारतीय वामन के हित तो पृथ्वी है डग तीन । 

सावधान हो कदम बढ़ाना, श्रो मदान्ध, रे चीन ॥

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