दीप तुम्हे शत शत प्रणाम | Deep Tumhe Shat Shat Pranaam | Swami Satyamitranand Giri Ji Maharaj
हे दीप तुम्हें शत-शत प्रणाम,
तुम पूजा के साक्षी ललाम ॥
तुम ऊर्ध्वमुखी सूर्यांश मुखर
देते प्रकाश प्रति नगर-नगर ।
स्नेहासिक्त मृत्तिका धार,
युद्धोन्मुख हो तुमसे अन्धकार |
बाती स्पंदित ज्यों कृपाण,
जिनके होते भयभीत प्राण ।
आश्वासन उनके तुम्हीं त्राण,
मानापमान तुमको समान ।
मन्दिर की शोभा भ्रष्ट याम,
हे दीप तुम्हें शत-शत प्रणाम ।।
तुम दीपमालिका के प्रतिनिधि,
धन बुद्धि चाहते तव सन्निधि |
शिव शक्ति शारदा हो या विधि,
तुम प्रगटे प्रगटी ऋद्धि सिद्धि ।
अलमस्त श्रौलिया प्राप्त काम,
हे दीप तुम्हें शत-शत प्रणाम ||
माटी की लघुता में जीते,
तूफानों में हारे जीते ।
युग बीत गये सुख दुख पीते,
कर्तव्य किया मरते जीते ।
निष्काम जले हो या सकाम,
हे दीप तुम्हें शत-शत प्रणाम ||
तुम गृही व्यक्ति के कुल प्रकाश,
तुम श्रुतियों के अंतर हुलास ।
विरही जन तुमसे हों उदास,
छोड़ते कष्टमय दीर्घ श्वास ।
तुम निर्विकार कर्तव्य धाम,
हे दीप तुम्हें शत-शत प्रणाम ।।
तुम जन-जन के मंगलदायी हो,
लघुता की एक इकाई हो ।
अँधियारे के दुखदायी हो,
तुम समदर्शी सुखदायी हो।
राजा रंकों के प्रिय सुराम,
हे दीप तुम्हें शत-शत प्रणाम ॥
प्राति दूर रहें आकाशदीप,
तम नाशक तुम हो धरा दीप ।
तुम मोती से चमके समीप,
तुम रात्रि - उदधि में बने द्वीप ।
जल ज्ञान दीप प्रति ग्राम-ग्राम,
हे दीप तुम्हें शत-शत प्रणाम ||