गुलाब और मानव - स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महराज |
गुलाब और मानव - स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महराज | Bharat Mata
गुलाब और मानव
प्यारे गुलाब नूर में आफताब , बादशाहो के ख्वाब
कितने कोमल कितने सुरभित, कितने पराग से हो परि पूरित।
रामणियों की शोभा, मंदिरों का शृंगार,
संतों की सुषमा , शिशुओं का प्यार,
सभी पुकारते हैं तुम्हे रोज ’रोज’
उपकारी को तुम हरते गंदगी का बोझ,
मुगल बादशाहों के हरमों के नाज़ ,
आज तुम उदास क्यों हो, क्यों हो, नाराज
बोलो ना आज क्यों हो इतने उदास,
बगिया के बादशाह महफिल की हो आस,
बोला गुलाब तू चुप हो जा इंसान,
मक्खन भी लगाता है और करता है अपमान,
मुझे याद है तेरा साथ कितना क्षण जीवी है,
मतलब का साथी तू गरजी परजीवी है,
गूँथा था वेणी मे , फिर मसल डाला ,
पीसकर खरल मे , गुलकंद बना डाला,
चढ़ा दिया भट्टी पर, अर्क काढ़ डाला,
चुभो दी सुई, और बना डाली माला ,
तुमसे तो कांटे भले, साथ तो निभाया,
साथ रहे हिले डुले पर ना सताया ,
छूट गए कांटे तो सोचा सुख पाऊँगा ,
मानव महान है, मैं भी बन जाऊंगा ,
ओ रे मानव, तुझे तो दया भी नहीं आई ,
पीस दिया सिला पर, और बना ली ठंडाई,
बातों से केवल रिझाना तुझे आया ,
प्रकृति की शोभा का , मूल क्या चुकाया?
इतना अपमान हाए, कचरे मे लपेटा,
मेरी रुचि निष्ठा को कहाँ ला समेटा,
मैंने भाऊत भूल की, तुम्हारे संग आया ,
बगिया मे अच्छा था, धूप थी ना छाया ,
माटी की ममता मे मातृ-सुख लेता था ,
पानी की फुहारों मे, पिता के गीत गाता था।
जाओ, तुम मुझे अपने भाग्य पर रोने दो ,
जीर्ण-शीर्ण बिखर तन है, कुछ देर सोने दो,
कोशिश बहुत की , पर नींद नहीं आई ,
मन मे विचार आया , कुछ और कहूँ भाई ,
आंखे बंद थी और फिर एक स्वप्न मुझे आया ,
मुमताज़ बेगम और नूरजहां ने अपना दुपट्टा दिखाया,
बहुत कलाकारी से मुझे था सजाया ,
नेहरू जी दिखे, अचकन मे गुलाब था लगाया ,
गांधी जी की समाधि पर भी , मैंने मुझे पाया,
स्वप्न मे यह देखा तब बहुत शांति पाई,
कितने महान थे वे जिन्होंने मेरी महिमा बढ़ाई ,
बोलो मानव, क्या तुम्हें क्रोध नहीं आता ,
साथी का दोष, साथी मे चला आता ,
इसलिए कुछ अधिक खरी खोटी थी सुनाई,
माफ करना, यदि तुम्हारी भावना दुखाई ,
एक बात अंत मे , तुम्हें कहे जाता हूँ,
जिससे तुम्हें दुख हुआ, प्रेम से बताता हूँ,
कचरे मे डालने का ना करना बहाना ,
टेम्स मे डालना या गंगा मे बहाना ,
अलविदा, अलविदा, चलता हूँ निज धाम ,
तुम सदा आबाद रहो , करते रहो काम ।।
तुम सदा आबाद रहो , करते रहो काम ।।
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