कृष्ण चरित तो स्वंय काव्य है - गुरुजी की कवितायें

कृष्ण चरित तो स्वंय काव्य है- स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज | Bharat Mata

स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि जी एक आध्यात्मिक गुरु थे | स्वामी सत्यमित्रानंद को 29 अप्रैल, 1960 को मात्र 26 वर्ष की आयु में भानपुरा पीठ का शंकराचार्य बना दिया गया था | लेकिन करीब 9 साल तक धर्म और मानव सेवा करने के बाद उन्होंने साल 1969 में खुद शंकराचार्य के पद को त्याग दिया था. स्वामी जी को साल 2015 में पद्मभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है| उन्होंने हरिद्वार में भारतमाता मन्दिर की स्थापना की |

कृष्ण चरित तो स्वयं काव्य है 
कृष्ण चरित्र तो स्वयं काव्य है, कवि क्या कोई गाये ,
लाख यत्न हों पर विराट को, वामन नाप ना पाए।
तुम देवों के देव देवकी-नंदन नंद दुलारे,
चातक मुनि जन नयन स्वाति, तुम दिन-जनन रखवारे ,
गोप-सखा गोपीजन वल्लभ गौ-रक्षक  गिरधारी,
गुण-गुण पूजित गोरस सिंचित गोकुल ग्राम बिहारी,
दुष्टोछेदक कंदुक- क्रीड़क , कलिमल कल्मष हारी 
काली मर्दन काल विनाशक, हे गोविंद मुरारी ।। 
गीता गायक युद्ध विधायक पार्थ हितू कंसारी,
मोह विनाशक तारक कारक भव हारक दनुजारी,
जन मन रंजक, जग अध भंजक भूमा- चिंतक भू त्राता. 
बंसी वादक त्रिभुवन धारक वेद ज्ञान के उदगाता।। 
यम-तनया –तट कुंज बिहारी, अद्भुत मुष्टि प्रहारी ,
राधा-वल्लभ, यशोदा-नंदन, जय-जय रास बिहारी।। 

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