मुरली महिमा - गुरुजी की कवितायें
मुरली महिमा - स्वामी सत्यमित्रनन्द गिरी जी महाराज द्वारा रचित सुंदर कविता |
प्रीति मिलेगी उसको प्रभु की जो अपना सब त्याग सकें।
घोर निशा की सघन अंधेरी में जो साधक जन जाग सके ।
बांस वृक्ष की परम सुकोमल बेटी के मन में आया ।
प्यार करू मै प्रिय नटवर को, छू लूँ उनकी मृदु काय।।
नाता तोड़ा अपने घर से कारीगर के पास गई।
श्याम मिलन की अभिलाषा है। ऐसी उनसे बात कही।।
कारीगर ने यंग छेद कर अग्नि मध्य उसको डाला ।
जो कुछ भीतर मेरापन था। उसको वही जला डाला।
प्रेम दृष्टि होती उस पर है जो स्वार्थ से भाग सके,
प्रीत मिलेगी उसको प्रभु की जो अपना सब त्याग सकें।।
तूने इतना ताप सह लिया, अब ना अधिक तपाऊंगा।
अपने कर की सुखद सेज पर मुरली तुझे सुलाऊंगा।
अपने अंतर स्वर का अमृत तुझसे ही सुनवाऊंगा।
बार-बार अधरों पर दरकर अपना भार हटाऊँगा।
राधा सा सम्मान मुरलिया तुझको भी दिलवा लूंगा।
राधा सर सम्मान मुरलिया तुझको भी दिलवाऊँगा।
राधा वर के साथ-साथ मैं मुरलीधर कह लाऊंगा।
मैं देता अधिकार उसे हूं जो मुझको ही मांग सके।
प्रीति मिलेगी। उसको प्रभु की जो अपना सब त्याग सके।।
जो विराट का भक्त बनेगा जो प्रभु मय हो जाएगा।
वंशी जैसा सर्व समर्पण जब साधक कर पाएगा ।।
प्रभु प्रसाद से उसका जीवन पूर्ण धन्य हो जाएगा।
उसका ही इतिहास बनेगा, कवि उसका गुण गाएगा।
वचन कर्म मन चिंतन से जो दे अपना अनुराग सके,
प्रीत मिलेगी उसको प्रभु की जो अपना सब त्याग सकें।
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