प्रभु के नाम एक पत्र - स्वामी सत्यमित्रनन्द गिरी जी महाराज

प्रभु के नाम एक पत्र - स्वामी सत्यमित्रनन्द गिरी जी महाराज | Bharat Mata

बचपन से पचपन तक मेरे राम कभी ना तुम्हें पत्र लिखा ना कुछ कहा जो भी तुम देते रहे बिना कहीं लेता रहा। अमृत दिया आचमन किया विष दिया आंख मोच पी लिया, जन्म से अकेला रहा कहना चाहा फिर भी ना कहा डरता था, कहीं रूठ जाओगे। दुखते का सहारा हो, कहीं छूट जाओगे। समझता था, अंतर्यामी हो, तुमसे क्या कहना, अच्छा ना लगेगा कथा निज मुख से कहना, लगता है दृष्टि बानर भालु पर ही रही ठीक ही तो है, उन्होंने बहुत सी विविधा सही। मानव तो सदा ही स्वार्थी रहा है। मानव तो सदा ही स्वार्थी रहा है। अपनी बनाई धारा में बहा है पर यह तो बताओ मानव को किसने बनाया और यह तो बताओ मानव को किसने बनाया किस के संकल्प से जगत बनाया। तब तो आप ही मूल अपराधी हैं। तब तो आप ही मूल अपराधी हैं। मानव ने तो बाद में इच्छाएं बांधी हैं। उनसे ही कर्म बने बना कर्म फल उनसे ही कर्म बने बना कर्म फल अब हम भोग रहे हैं, आप कहते हैं भाग चल अब हम भोग रहे हैं, आप कहते हैं भाग चल। मेरी पाप की गठरी उठाने में कुछ दो सहारा मेरी पाप की गठरी उठाने में कुछ दो सहारा, क्योंकि आदि-कारण है आप ब्रह्म दोष क्या हमारा, क्योंकि आदि कारण हैं आप ब्रह्म दोष क्या हमारा? कभी सचमुच पत्थर बन जाते हो, कितना भी मनाए तरस नहीं खाते हैं। हमने भी कुछ अच्छा किया होगा। उसे भूल जाते हो, दर्द, व्यथा , पीड़ा  देते हो, रुलाते हो, परम स्वतंत्र हो, सर पर है ना कोई परम स्वतंत्र हो, सर पर है ना कोई जो भी भाता है करते हो सोई। लगता है फिर किसी नारद को बुलाना है। उसको कुरूप करके तुमको यहां आना है। मिल जाएगा तो बहुत पछताओगे। जंगल में सीता सीता टेर फिर लगाओगे , मुझ जैसे गरीब को इतना ना सताओ मुझ जैसे गरीब को इतना ना सताओ, प्रार्थना है महाराज थोड़ा तरस खाओ मुझे जैसे गरीब को इतना ना सताओ एक वक्र दृष्टि ही सही मुझ पर तो फेरो , एक वक्र दृष्टि ही सहीं मुझ पर तो फेरो। पाप जल जाएंगे बनूंगा तब चेरो , होना नाराज मत आप दीनानाथ हो होना नाराज मत आप दीनानाथ हो, पत्र लिखते समय भी मेरे साथ हो दुनिया के सामने मुझे दिन ना बनाना, दुनिया के सामने मुझे दिन ना बनाना। तुलसी के हित आए मेरे हित आना, पत्र दीर्घ हुआ आपको उस समय का अभाव है। पत्र दीर्घ हुआ आपको समय का अभाव है। मैं भी करूं क्या प्रभु अंतर का भाव है। समय ना हो तो बेटा लक्ष्मण हनुमान को बुलाना, समय ना हो तो सीता लक्ष्मण हनुमान को बुलाना, उनसे ही क्षण भर में पत्र पढ़वाना। दीनबंधु कहकर दुनिया पुकारती, दीनबंधु कहकर दुनिया पुकारती भक्त बछल कहकर है आरती उतारती, यदि वत्सलता ही ना शेष दिख पाएगी, आपकी महानता का गीत कैसे गाएगी। दया करो आज लाज अपनों बचाईए। करुणा की एक धारा मुझपर बहाईए। अजामिल गीध व्याध केवटादी निशिचर, मानव तो तारे ही थे, तारे थे प्रस्तर। कलयुग में विशंभर विश्व भी चाहिए नाव है किनारे अब इसे ना डुबाईए, नाव के किनारे अब इसे ना डुबाईए, राजदीराज महाराज नाराज मत होना, राजदीराज महाराज नाराज मत होना मांगता नहीं हूं चांदी, हीरा  सोना, दुख सहन करने की शक्ति सदा देना, ना नाम का सहारा मिले दिन हो या रैना। मन का बांध टूट जाता इसीलिए खोल दिया क्षमा करना मेरे नाथ अनुचित कुछ बोल दिया। अधिक क्या लिखूं देना सहारा जन्म जन्मनाता है मेरा तुम्हारा। उत्तर देना अवश्य स्वप्न मे ही देना, उत्तर देना अवश्य स्वप्न में ही देना। मिट जाए भवदीय भीती मिटे काम – सेना, कामी को नारी जैसे लोभी को पैसा, मुझे पद-पंकजों का प्रेम मिले ऐसा, मेरे आराध्य अपराध क्षमा कीजिए , देकर स्वरूप बोध निज मे रमा लीजिए।

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