व्याधि तो वरदान है | Vyadhi to Vardan hai | Swami Satyamitranand Giri Ji Maharaj | Bharat Mata

व्यथित पीड़ित हो न कोई व्याधि तो वरदान है।
और साजों से सजा प्रारब्ध का ही गान ।
कर्म की जंजीर का यह एक छोटा भाग है।
पूर्व के संगीत का ही यह प्रधूरा राग है ।
वृत्ति जीवन सहचरी की यह सिंदूरी मांग है ।
मस्त होकर छान ले यह बदामी भांग है।
अपरिचित प्रतिथि कोई क्षणिक-सा महमान है।
व्यथित पीड़ित हो न कोई व्याधि तो वरदान है ।
व्याधि बगिया में खिला शुभ-कामना का फूल है।
और लघुता बोध देती जीव तू तो धूल है ।
नम्रता ही साधना का सरल सात्विक मूल है ।
चुभन मिटती हैं अनेकों रह न जाता शूल है।
व्याधि अपने आत्मीयों की सरल पहचान है।
व्यथित पीड़ित हो न कोई व्याधि तो बरदान है ।
व्याधि जीवन-छन्द का ही एक स्वल्प विराम है।
व्यस्त जीवन के लिए यह सुखद-सा विश्राम है।
विगति की स्मृति कराता चित्रपट अलाम है।
साधु-संत महंत दिग्गज को हराना काम है
दृष्टि इसकी तीक्ष्ण इतनी रंक पाय समान है।
व्यथित पीड़ित हो न कोई व्याधि तो वरदान । ।