भारत कोकिला सरोजिनी नायडू | Nightingale Of India - Bharat Mata

“श्रम करते हैं हम कि समुद्र हो तुम्हारी जागृति का क्षण

हो चुका जागरण

अब देखो.. निकला दिन.. कितना उज्ज्वल”

“एक देश की महानता बलिदान और प्रेम

उस देश के आदर्शों में ही निहित होता है।“

किसी देश की स्थिति का आंकलन उसमें रहने वाली महिलाओं की स्थिति से ही किया जा सकता है। यदि पुरुष देश की शान है तो स्त्री उस देश की नींव है।“ मातृभूमि से अगाध स्नेह जीवन मूल्यों के प्रति निष्ठा और महिला सशक्तिकरण के लिए अपने समर्पित प्रयासों से ओतप्रोत भारत कोकिला सरोजिनी नायडू के ये शब्द उनकी अंतरात्मा की अभिव्यक्ति हैं।

The Nightingale of India: Sarojini Naidu

कवि ह्रदय और मधुर वाणी के कारण भारत कोकिला कही जाने वालीं सरोजिनी नायडू देश की प्रथम महिला राज्यपाल और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्षा बनीं थीं। इसके साथ ही वो एक महान कवियत्री, स्वतंत्रता सेनानी और प्रसिद्ध वक्ता थीं। गाँधी जी के विचारों और सिद्धांतों से वो अत्यंत प्रभावित थीं। गोपालकृष्ण गोखले के विचारों का भी उनके जीवन में गहरा प्रभाव था। देश की आज़ादी के लिए.. उस समय चलाये गए आन्दोलनों में उन्होंने अग्रिम भूमिका निभाई और इसी कारण उन्हें जेल की यातना भी सहनी पड़ी। स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान सदा अविस्मरणीय रहेगा।

अपनी काव्य रचनाओं और ओजस्वी वक्तव्यों से उन्होंने आज़ादी के प्रति एक नयी जागरूकता जगाई और स्वतंत्रता संग्राम को जन आन्दोलन बनाने का सफल प्रयास किया।

सरोजिनी नायडू जीवन परिचय | Sarojini Naidu Biography in Hindi

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 जनवरी सन 1879 को हैदराबाद में.. एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय.. एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे और उनकी माँ वरद सुंदरी देवी बंगला भाषा में कविताएँ लिखती थीं। राष्ट्र प्रेम और साहित्यिक अभिरुचि तो उन्हें अपने इस परिवार से विरासत में मिली थी। उनके भाई वीरेंद्र नाथ क्रन्तिकारी थे। उन्होंने बर्लिन कमिटी बनाने में मुख्य भूमिका निभाई थी।

सरोजिनी जी बचपन से ही बहुत होशियार और होनहार थीं। उनको कई भाषाओँ का ज्ञान था जैसे उर्दू, बंगाली, अंग्रेज़ी, तेलुगु आदि। केवल 12 वर्ष की अल्पायु में सरोजिनी जी ने मैट्रिक की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था.. जिसके लिए उन्हें प्रशंसा और सम्मान की प्राप्ति हुई। सरोजिनी जी के पिता चाहते थे कि वो भी वैज्ञानिक बनें या गणित की पढ़ाई करके इस विषय में आगे बढ़ें किन्तु बालिका सरोजिनी का मन तो साहित्य और कविता की ओर अधिक था और बाल्यकाल की प्रारम्भिक काव्यरचना से प्रभावित होकर उनके पिता ने भी उन्हें सहयोग दिया और उनके काव्यलेखन को प्रचारित किया। उन्होंने उनकी रचना को हैदराबाद के निज़ाम को दिखाया। निज़ाम ने इस रचना से प्रभावित होकर.. न केवल इसकी प्रशंसा की बल्कि सरोजिनी जी को विदेश में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति भी दी।

इस सहायता से प्रोत्साहित होकर सरोजिनी जी ने लंदन के किंग्स कॉलेज में एडमिशन लिया और बाद में कैंब्रिज के गिर्टन कॉलेज में भी आगे की पढ़ाई की। कॉलेज में पढ़ते हुए भी उनकी रूचि काव्य लेखन के प्रति बनी रही।

कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही सरोजिनी जी की पहचान डॉक्टर गोविन्द राजुलू नायडू से हो गयी थी। पढ़ाई समाप्त होने के बाद.. मात्र 19 साल की आयु में.. सन 1897 में उनका विवाह.. डॉ गोविन्द राजुलू नायडू से संपन्न हुआ। ये एक अंतरजातीय विवाह था.. जो कि उस समय की परिस्थितियों में एक कठिन कार्य था.. लेकिन उनके पिता ने समाज की चिंता न करते हुए.. इसकी स्वीकृति दी। उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहा।

सरोजिनी नायडू का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान

सन 1916 में सरोजिनी नायडू पहली बार महात्मा गाँधी से मिली थीं और गाँधी जी के विचारों से अत्यंत प्रभावित हुईं। गांधी जी से प्रेरित होकर.. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने प्रयासों से शहर और सुदूर ग्रामीण महिलाओं को भी स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनने की प्रेरणा दी।

सन 1925 में सरोजिनी नायडू अपनी कार्यक्षमता लोकप्रियता और कुशल नेतृत्व योग्यता के कारण इंडियन नेशनल कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्षा चुनी गयीं। उन्होंने दक्षिण अफ़्रीका में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया। सन 1930 में गांधी जी की गिरफ़्तारी के बाद.. सम्पूर्ण आन्दोलन की बागडोर भी सरोजिनी नायडू ने ही संभाली थी और उसका संचालन भी सफलतापूर्वक उनके द्वारा ही किया गया था।

सन 1942 में “भारत छोड़ो आन्दोलन” में उन्होंने लगभग 21 महीनों तक जेल की यातनाएं सहन कीं परन्तु इन कठिनाइयों में भी उन्होंने कभी भी अपने संकल्प को विचलित नहीं होने दिया और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी सक्रियता और अधिक बढ़ती गयी.. और अंततः देश के अमर और वीर सेनानियों के अथक प्रयासों और वृहद् संघर्षों के कारण 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।  

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बेहद महत्वपूर्ण योगदान देने वाली सरोजिनी विचारों से कवियित्री थीं और अपने इस मनोभाव के कारण.. उनके विचार सदा स्वतंत्र रहे.. परन्तु आज़ादी के बाद देश को प्रगति पथ पर आगे बढ़ाने के लक्ष्य से.. उन्हें एक विशेष कार्यभार दिया गया. उन्हें उत्तरप्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया। उन्होंने कहा था – “मैं अपने को क़ैद कर दिए गए जंगल के पक्षी की तरह अनुभव कर रहीं हूँ।“ लेकिन वो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु जी का बहुत सम्मान करती थीं और उनकी इच्छा की अवहेलना नहीं कर सकीं।

अपनी सरलता सहजता और गौरवपूर्ण व्यवहार से उन्होंने अपने राजनीतिक दायित्वों का भी सफलतापूर्वक निर्वाह किया।

क्या मेरे आंसुओं के दर्द को तुम माप सकते हो
या मेरी घड़ी की दिशा को समझ सकते हो
या मेरे हृदय की टूटन में शामिल गर्व को देख सकते हो
और उस आशा को.. जो प्रार्थना की वेदना में शामिल है?”

Golden Threshold.. Bird of time और broken wings जैसे काव्य संग्रह की रचियता.. भारत कोकिला ने 2 मार्च 1949 को संसार से विदा ली और ये मधुर गान.. सदा सर्वदा के लिए शांत हो गया।

श्रीमती सरोजिनी नायडू को देश कभी भी नहीं भूल पाएगा। देश उनके जन्मदिवस को “राष्ट्रीय महिला दिवस” के रूप में मनाता है। वो एक सच्ची देशभक्त और स्वतंत्रता संग्राम की अमर सेनानी थीं। भारत समन्वय परिवार की ओर से भारत कोकिला के देश प्रेम.. त्याग और अथक प्रयासों को शत शत नमन। इस मातृशक्ति की ज्योति का प्रकाश.. जन मानस का पथ सदा आलोकित करता रहे.. ऐसी हमारी कामना भी है और प्रयास भी।   

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