श्रीमद भगवद गीता: श्री कृष्ण ने कहा- चलाओ बाण मिलेगा निर्वाण | Swami Satyamitranand Ji Maharaj

सच्ची मित्रता का महत्व

स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज बहुत ही महत्वपूर्ण और गहरे विचार साझा करते हैं। वे बताते हैं कि जहां सच्ची मित्रता होती है, वहां कोई संकोच नहीं होता। मित्र केवल मित्र नहीं होते, वे परिवार के सदस्य की तरह होते हैं। जब हम किसी के घर जाते हैं, तो हमारे पास न सिर्फ़ मित्र, बल्कि परिवार का अधिकार भी होता है। अगर हमें किसी चीज़ की जरूरत होती है, तो हम बिना संकोच उसे ले लेते हैं। यही सच्चे संबंधों की पहचान है।

भगवान के साथ सच्ची मित्रता

स्वामी जी उदाहरण देते हैं कि यदि आप किसी मित्र का कोट ले लेते हैं, तो वह मित्र अगले दिन कहता है, "वाह, ये कोट बहुत अच्छा है!" लेकिन जब आप उसे यह बताते हैं कि आपने यह कोट अपने मित्र के घर से लिया था, तो यह स्वाभाविक होता है। भगवान ने भी कहा है कि अगर हमारी भगवान के साथ सच्ची मित्रता हो, तो हम उसके महलों में जा सकते हैं और बहुमूल्य चीज़ें बिना संकोच ले सकते हैं। भगवान हमें मना नहीं करेंगे, क्योंकि यह मित्रता का अधिकार है।

भगवान पर सच्ची आस्था

हम अक्सर भगवान को सब कुछ मानते हैं, लेकिन कई बार अपनी समस्याओं का समाधान किसी और के पास ढूंढते हैं—कोई बाबा, संत, या फकीर। लेकिन अगर हमारी भगवान के साथ सच्ची मित्रता होती, तो हम अपनी समस्याओं का समाधान केवल भगवान से ही मांगते। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है:

"बने तो रघुवर से बने, और बिगड़े तो भरपूर"

यानी यदि हमारी मित्रता भगवान से है, तो किसी भी मुसीबत में भगवान हमें सही मार्ग पर ले आएंगे।

कर्म और सन्यास का सही अर्थ

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि जो लोग कर्म के फल की चिंता नहीं करते, वही सच्चे योगी और सन्यासी होते हैं। यह कर्म केवल हमारे आंतरिक विकास और समाज के कल्याण के लिए होना चाहिए।

"कर्मों के फल की चिंता छोड़कर हमें अपने कार्यों को पूरी निष्ठा से करना चाहिए"

जब हम ऐसा करेंगे, तो निश्चित रूप से हमें शांति और संतोष मिलेगा।

सन्यास का वास्तविक स्वरूप

स्वामी जी ने यह भी कहा कि सन्यासी का जीवन केवल बाहरी आडंबरों पर निर्भर नहीं होता, बल्कि आंतरिक समर्पण और कर्म के प्रति निष्ठा पर होता है। यदि कोई व्यक्ति केवल भिक्षाटन या आलस्य करता है, तो वह वास्तविक सन्यासी नहीं हो सकता। सच्चा सन्यासी वह है जो समाज और ईश्वर की सेवा में खुद को समर्पित करता है।

अच्छे कर्मों का फल समय पर मिलता है

कई बार हम अपनी छोटी सी सेवा या अच्छे कार्यों के फल की जल्दी करते हैं। जैसे कि किसी को दान दिया या किसी की मदद की और उम्मीद करते हैं कि भगवान जल्दी फल देंगे। लेकिन हमें फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

"जैसे आम का पेड़ अपना फल समय पर देता है, वैसे ही अच्छे कर्मों का फल भी स्वाभाविक रूप से मिलेगा।"

हमें बस अपने कर्मों को सही दिशा में करना चाहिए और भगवान पर विश्वास रखना चाहिए।

विवेक और धार्मिक मार्गदर्शन का महत्व

स्वामी जी अंत में बताते हैं कि सन्यासी वही होता है जो अपने कर्मों में निष्ठा रखता है और कर्मों के फल को भगवान पर छोड़ देता है। यदि किसी को अपने कर्मों को लेकर शंका होती है, तो उसे अपने अनुभवियों, माता-पिता या धार्मिक ग्रंथों से मार्गदर्शन लेना चाहिए।

निष्कर्ष

स्वामी जी के ये विचार हमें जीवन के उद्देश्य को समझने में मदद करते हैं। यह बताते हैं कि सच्चा योग और सन्यास केवल बाहरी रूप में नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता और समर्पण में है। अधिक प्रेरणादायक प्रवचन सुनने के लिए Bharat Mata YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें।