चारो युग में श्रेष्ठ युग कलियुग कैसे बना | Golden Yug Kalyug। Kaliyug - Ek Shreshth Yug। Bharat Mata

काल गणना की वैदिक प्रणाली में चार युगों की अवधारणा निहित है इनमे सतयुग, त्रेता और द्वापर के बाद अंतिम चरण में कलियुग  का स्थान है। काल खंड की गणना के अनुसार यह सबसे छोटा युग है परंतु पाप, अधर्म, अनाचार की अधिकता के कारण इसे एक निकृष्ट युग के रूप में स्थान प्राप्त है। 

इस मान्यता के विपरीत वेदों के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने “विष्णु पुराण” में एक श्रेष्ठ युग के रूप में कलियुग  को सम्मानित किया है। 

विष्णु पुराण में वर्णित एक धारणा के अनुसार मुनिजनों और ऋषियों के साथ एक चर्चा में वेदव्यास जी कहते हैं “हे मुनिजन सभी युगों में कलियुग ही सबसे श्रेष्ठ युग हैं क्योकि दस वर्ष में जितना व्रत और तप करके कोई मनुष्य सतयुग में पुण्य प्राप्त करता है, त्रेतायुग में वही पुण्य एक साल के तप द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन कलियुग में इतना ही पुण्य मात्र एक दिन के तप से प्राप्त किया जा सकता है ।"

इस तरह व्रत और तप के फल की प्राप्ति और अर्जन के लिए कलियुग  ही सबसे श्रेष्ठ समय हैं। 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक युग लाखों वर्षो का होता है 

जैसे सतयुग लगभग 17 लाख 28 हज़ार वर्ष 

त्रेता युग लगभग 12 लाख 96 हज़ार वर्ष 

द्वापर युग लगभग 8 लाख 64 हज़ार वर्ष 

कलियुग लगभग 4 लाख 32 हज़ार वर्ष 

आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत का युद्ध 3136 ईसा पूर्व हुआ था। महाभारत युद्ध के 35 वर्ष पश्चात श्री कृष्ण ने देह त्याग कर अपने लोक को प्रस्थान किया था तभी से कलियुग का प्रारम्भ माना जाता है । वर्तमान मे 28वे चतुरयुगी का कृत युग बीत चुका है और यह कलियुग चल रहा है। यह कलियुग ब्रह्मा के द्वितीय परार्ध में श्वेतवराह नाम के कल्प मे और वैवस्वत मनु के मन्वंतर मे चल रहा है। 

इसका प्रथम चरण ही चल रहा है । कलियुग के प्रारम्भ के संदर्भ मे “महाभारत” की उत्तर कथा मे राजा परीक्षित की कथा वर्णित है। महाभारत का युद्ध लगभग अंतिम चरण मे था तभी द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ मे पल रहे अर्जुन के प्रपौत्र शिशु परीक्षित का वध करने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया किन्तु भगवान श्री कृष्ण ने अपने योग बल से इस शक्तिशाली शस्त्र को भी निष्फल कर दिया । इसके पश्चात परीक्षित का जन्म हुआ और उनके किशोर होते ही पांडवो ने उन्हे सिंघासन पर आसीन कर स्वयं हिमालय पर जाने का निर्णय लिया और कर्मानुसार उनका अंत होता गया । शासन  की बागडोर संभालने के बाद परीक्षित ने एक पराक्रमी सम्राट के रूप मे ख्याति प्राप्त की । महाभारत की इस कथा के अनुसार परीक्षित के शासन काल मे ही द्वापर युग समाप्त हुआ और कलियुग  का प्रारम्भ हुआ । कथा के अनुसार राजा ने देखा कि एक व्यक्ति एक गाय और एक बैल को हाँकते हुए ले जा रहा था । बैल के चार में से तीन पैर टूटे हुए थे और वह कातर दृष्टि से राजा को देख रहा था । राजा परीक्षित ने उन तीनों से परिचय पूछा तो गाय ने बताया कि वह स्वयं पृथ्वी है , बैल ने कहा कि मैं धर्म हूँ और उस व्यक्ति ने अपना परिचय कलियुग के रूप मे दिया । कलियुग में धर्म रूपी बैल के तीन पैर सत्य, त्याग और दया को तोड़ दिया था और चौथे पैर दान को भी तोड़ने के लिए प्रयास कर रहा था । यह दृश्य देख कर परीक्षित ने कलियुग को चेतावनी दी और उस पर प्रहार किया । परीक्षित के पराक्रम के आगे कलियुग  ने अपनी हार स्वीकार की । ऐसे पल मे जब परीक्षित कलियुग  का वध करने वाले थे तब कलियुग  ने कहा की मेरी हत्या से विधि का विधान ही बदल जाएगा इसीलिए आप मुझे अभय दान दें और मै वचन देता हूँ कि आप जहां कहेंगे मै वहीं वास करूंगा । 

ब्रह्मा जी कि इच्छा का सम्मान करते हुए परीक्षित ने कलियुग  को केवल धूत क्रीडा (जुआ), स्त्री, मदिरा, हिंसा और स्वर्ण मे रहने कि आज्ञा दी । उसे पाँच अवगुण मिथ्या,  मद , काम , हिंसा और बैर भी दिये । कलियुग ने उस समय परीक्षित कि बात मानली लेकिन उसने संसार मे अपने शासन  क लिए परीक्षित के विनाश की योजना बनाई। 

एक दिन राजा परीक्षित आखेट के लिए निकले थे, उन्होने सोने का मुकुट धारण कर रखा था, अपने वचन के अनुसार कलियुग राजन के सिर पर प्रवेश कर गया। आखेट के दौरान एक मृग का पीछा करते हुए परीक्षित बहुत दूर निकल आए और उन्हें ज़ोर से प्यास लगी थी।  भटकते हुये राजा परीक्षित मुनि शमीक के आश्रम में पहुँच गए। मुनि का उस दिन मौन व्रत था और राजा द्वारा पानी के बारे में पूछे जाने पर वह मौन ही रहे।  कलियुग के प्रभाव के कारण राजा ने इसे अपना अपमान और मुनि का अभिमान समझा। क्रोध के आवेश में राजा ने एक मरा हुआ साँप मुनि के गले में लपेट दिया और पानी की तलाश में आगे निकल गए।

मुनि के पुत्र श्रंगी  ऋषि जब आश्रम में आए तो उन्होने पिता के गले में पड़े हुये एक मृत सर्प को देखा, वह अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होने श्राप दिया की जिस व्यक्ति ने भी इस नीच कार्य को किया है, आज से सात दिन बाद उसकी मृत्यु तक्षक नाग द्वारा डसने से हो जाएगी। अपने पुत्र द्वारा दिये गए उस श्राप से मुनि अत्यंत दुखी हुये, श्राप को वापस लेना भी संभव नहीं था, इसीलिए उन्होने राजा परीक्षित को इस श्राप से सावधान रहने के लिए अवगत कराया। अपना अंत निकट देख कर परीक्षित ने अपने पुत्र जन्मेजय को राजा बना दिया और स्वयं सुखदेव से भागवत कथा सुनने लगे। जन्मेजय ने अपने पिता के श्राप को टालने के लिए कड़ी सुरक्षा का प्रबंध किया किन्तु तक्षक नाग ने फलों में छोटे से कीड़े का रूप धर कर परिसर में प्रवेश किया और जैसे ही राजा ने फलों को  स्पर्श किया तक्षक नाग ने उन्हें डस लिया और उनकी मृत्यु हो गयी। 

परीक्षित की मृत्यु के बाद कलियुग ने संसार पर अपना अधिकार कर लिया और इस प्रकार कालियुग का प्रारम्भ पूर्ण रूप से इस धरती पर हो गया। 

यह सत्य है कि कलियुग एक अभिशप्त युग है किन्तु मनुष्य अपने प्रयासों से पुण्य अर्जित करके और ईश्वरीय चरणों में प्रेम और आस्था से इसके कुप्रभावों से बच सकता है और इस युग में आध्यात्म का मार्ग भी सरल और सुगम कर सकता है। 

Bharat Mata परिवार की ओर से हमरा प्रयास है कि प्रतिकूल युग में भी भक्ति कि गंगा कि निर्मलता और पवित्रता जन-जन तक पहुंचे और भक्ति का प्रकाश अज्ञान के तिमिर पर विजयी हो।

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