Lala Lajpat Rai | पंजाब केसरी जिन पर लाठीचार्ज से हिल गया था पूरा देश | Freedom Fighter

भारत भूमि पर अनेक अभीत पुत्रों ने जन्म लिया जिन्होंने इस देश की स्वतंत्रता, व स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के अनुशासित संविधान चालन के लिए अपूर्व कार्य किये। इस देश की स्वतंत्रता में अपना असाधारण योगदान देने वाले लाल-बाल-पाल तिकड़ी का हिस्सा ‘लाला लाजपत राय’ भी इन्ही पुत्रों में से एक हैं।
लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में लड़ने वाले एक सहासिक सेनानी थे। इनका जन्म 28 जनवरी 1865 को धुडिके, भारत में हुआ था। वे अपने माता-पिता के सबसे ज्येष्ठ पुत्र थे। उनके पिता फ़ारसी व उर्दू दो भाषाओं के विद्वान थे। उनकी माँ एक धार्मिक महिला थीं और उन्होंने अपने बच्चों में दृढ़ नैतिक मूल्यों का विकास किया। राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रेवाडी से उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। वर्ष 1880 में,  कानून की पढ़ाई के लिए उन्होंने लाहौर के सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया।
कॉलेज में उनकी भेंट भविष्य के स्वतंत्रता सेनानी लाला हंस राज, पंडित गुरु दत्त आदि से हुई। कानून की डिग्री सम्पूर्ण करने के पश्चात्, उन्होंने हरियाणा के हिसार में अपनी कानूनी प्रैक्टिस आरम्भ की। 1877 में उनका विवाह राधा देवी से हुआ। उन्होंने 1888 और 1889 की समय अवधि में राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक सत्र में एक प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। वर्ष 1892 में, उन्होंने लाहौर में उच्च न्यायालय के समक्ष अभ्यास किया। 
जहां उन्होंने राष्ट्रवादी दयानंद एंग्लो-वैदिक स्कूल की स्थापना में सहायता की और आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती जी के अनुयायी बन गए।
लाला लाजपत राय ने पंजाब नेशनल बैंक के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ब्रिटिश शासन से देश की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी। कांग्रेस पार्टी में शामिल होने और पंजाब में राजनीतिक आंदोलन में भाग लेने के पश्चात्, लाजपत राय को मई 1907 में बिना मुकदमा चलाए मांडले, म्यांमार निर्वासित कर दिया गया।
वर्ष 1914 में ये ब्रिटेन गए और वर्ष 1917 में अमेरिका. उन्होंने 1917 में न्यूयॉर्क में इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका की स्थापना की, और वर्ष 1917 से 1920 तक वे अमेरिका में रहे। वर्ष 1920 में भारत वापस लौटने के पश्चात् इन्हें कलकत्ता में कांग्रेस के विशेष सत्र की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया गया।
उन्होंने जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की क्रूर कार्रवाइयों के लिए पंजाब में अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। वर्ष 1920 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन चलाया और लाला लाजपत राय ने पंजाब में इस आंदोलन का नेतृत्व किया। वर्ष 1921 से लेकर 1923 तक लाला लाजपत राय जेल में रहे। जब उन्हें रिहा किया गया, तो वे विधान सभा के लिए चुने गए।
चौरी-चौरी घटना के कारण गांधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया और इस निर्णय की लाला लाजपत राय ने घोर आलोचना की और कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी का गठन करने का प्रयास किया।
1928 में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करने के लिए साइमन कमीशन ने भारत का दौरा किया। वर्ष 1928 में, लाला लाजपत राय ने ब्रिटिश साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए विधान सभा प्रस्ताव पेश किया। 
दिनांक 17 नवम्बर वर्ष 1928 में लाहौर में हुए एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस के लाठीचार्ज से उनकी मृत्यु हो गई।
उन्होंने कहा था - "मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी"... और वही हुआ था, लालाजी के बलिदान के 20 वर्षों के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया था।
लाला लाजपत राय के सबसे महत्वपूर्ण लेखन में The Story of My Deportation , Arya Samaj, The United States of America: A Hindu’s Impression, England’s Debt to India: A Historical Narrative of Britain’s Fiscal Policy in India , और Unhappy India शामिल हैं।
कहा जाता है की जिस प्रकार केसरी की दहाड़ से वन्यजीव भयभीत हो जाते हैं, उसी प्रकार से लाला लाजपत राय की गर्जना से ब्रिटिश सरकार कांप उठती थी। लाला लाजपत राय के नेतृत्व में असहयोग आदोलन पंजाब में पूरी तरह से सफल रहा, जिस कारण लाला लाजपत राय को पंजाब का शेर व पंजाब केसरी के नाम से पुकारा जाने लगा।
आधुनिक भारत के रचयिता ‘लाला लाजपत राय’ को भारत समन्वय परिवार सादर प्रणाम करता है।
उनकी वीरता व बलिदान की कथाएं समस्त भारत वर्ष के लिए युगों-युगों तक प्रेरणा स्त्रोत रहेंगी।
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