गोविंद बल्लभ पंत: Uttar Pradesh के पहले CM | Indian Freedom Fighter

गोविंद बल्लभ पंत एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने अपने व्यक्तित्व से राजनीति और देशसेवा के उच्चतम आदर्श और मानदंड स्थापित किए।

गोविंद बल्लभ पंत का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

10 सितंबर 1887 को अल्मोड़ा जिले के खूंट गाँव में जन्में गोबिन्द बल्लभ पंत शुरू से ही पढ़ाई में काफी कुशाग्र थे, उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए और लॉ की शिक्षा भी प्राप्त की। सर्वोच्च अंकों से लॉ की डिग्री प्राप्त करने के कारण यूनिवर्सिटी की ओर से उन्हें गोल्ड मेडल देकर सम्मानित किया गया था। लॉ की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने काशीपुर से अपनी वकालत की शुरुआत की। 

एक बार पंत जी अंग्रेजी जज के सामने एक केस की पैरवी कर रहे थे, इस केस की पैरवी के दौरान उन्होंने कई ऐसे मजबूत तथ्य और अकाट्य तर्क रखे जिससे जज हैरान रह गए, एक भारतीय का इतनी कुशलता से बहस करना जज को पसंद नहीं आया और जज साहब ने पंत जी से कहा कि मैं आगे से तुम्हें इस अदालत में घुसने नहीं दूंगा, पंत जी ने भी बड़ी निडरता से उत्तर देते हुए कहा मैं खुद आज से तुम्हारी इस अदालत में कदम नहीं रखूँगा और इतना कहकर वे उस अदालत से निकल गए। 

स्वतंत्रता संग्राम में गोविंद बल्लभ पंत का योगदान

सन 1914 में गोविंद वल्लभ पंत भी स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय हुए और महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन से जुड़ गए। विलक्षण नेतृत्व की क्षमता के धनी गोविंद बल्लभ पंत आगे चलकर एक कुशल और प्रभावी जननेता बनकर उभरे कुछ ही समय में उनकी गिनती देश के वरिष्ठ नेताओं में होने लगी। स्वाधीनता संग्राम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने के कारण 1921, 1930, 1932 और 1934 के बीच उन्हें करीब सात साल जेल में बिताने पड़े। 1925 में हुए काकोरी कांड के बाद जब रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्ला खां अंग्रेजों की गिरफ्त में आए तब उनका केस भी गोविंद बल्लभ पंत जी ने ही लड़ा था लेकिन महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू जी का साथ ना मिल पाने के कारण इस घटना में शामिल क्रांतिकारियों को बचाया नहीं जा सका। 

ऐसा कहा जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सुभाष चंद्र बोस और गांधीजी में मतभेद उत्पन्न हो गया। एक ओर गांधीजी चाहते थे कि युद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया जाए जबकि दूसरी ओर नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि विश्व युद्ध में उलझे अंग्रेजी शासन के खिलाफ पूरी ताकत से युद्ध करके उन्हें भारत छोड़कर भागने पर विवश कर दिया जाए। पंत जी भी सुभाष चंद्र बोस से सहमत थे और उन्होंने ही दोनों के बीच सुलह करवाई थी। 

गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री के रूप में उल्लेखनीय कार्य

राजनीति में अच्छी पकड़ बना चुके गोविंद बल्लभ पंत जी को स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। वे उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे उन्होंने ही किसानों के उत्थान के लिए जमींदारी प्रथा को खत्म किया, उन्होंने ही हिन्दू कोड बिल और महिलाओं के कल्याण के लिए उन्हें पैतृक संपत्ति में अधिकार तथा तलाक का हक देने जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य किए थे। वे एक साफ सुथरी छवि वाले और अत्यंत ईमानदार नेता थे। उत्तर प्रदेश के सीएम रहने के दौरान उनकी ईमानदारी का एक किस्सा खूब प्रसिद्ध है। उनके द्वारा बुलाई गई एक सरकारी बैठक में चाय नाश्ते का भी प्रबंध किया गया था, जब चाय नाश्ते का बिल पंत जी के पास आया तो उन्होंने बिल पास करने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि सरकारी बैठक में सिर्फ चाय के बिल का ही विधान है लेकिन इस बिल में चाय के साथ नाश्ते के पैसे भी शामिल हैं इसलिए इस बिल को पास नहीं किया जा सकता। अधिकारियों ने उन्हें काफी समझाया लेकिन वे नहीं माने और कहा कि जनता के एक भी पैसे की फिजूलखर्ची नहीं की जा सकती इसलिए चाय का बिल तो मैं पास कर सकता हूँ लेकिन नाश्ते का बिल आपको खुद देना होगा। क्योंकि बैठक की अध्यक्षता पंत जी कर रहे थे इसलिए उन्होंने खुद अपनी जेब से पैसे देकर नाश्ते के बिल की भरपाई की थी। 

इसके बाद वर्ष 1955 में उन्हें देश का गृह मंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ। गोविंद बल्लभ पंत जी 1955 से 1961 तक देश के गृह मंत्री रहे। गृह मंत्री के तौर पर उन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने, राज्यों को भाषाई आधार पर विभाजित करने जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य किए थे।

गोविंद बल्लभ पंत: भारतीय राजनीति और देशसेवा के प्रेरणास्रोत

देश की स्वतंत्रता के लिए किए गए उनके अथक प्रयासों और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा देश के गृहमंत्री के तौर पर किए गए उनके उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए वर्ष 1957 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। अपनी अंतिम सांस तक देश की सेवा करने वाले गोविंद बल्लभ पंत जी 7 मार्च 1961 को पंचतत्व में विलीन हो गए। उनका निधन देश के लिए एक अपूर्णीय क्षति थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में ऐसे कई उच्च आदर्श और मानदंड स्थापित किए थे जो भारतीय राजनीति के लिए आज भी प्रेरणा का स्त्रोत है। 

भारत समन्वय परिवार का प्रयास है कि गुमनामी के अंधेरे में खो चुके ऐसे उज्ज्वल चरित्र वाले लोगों और महानायकों की शिक्षाएँ जन जन पहुंचे जिससे सम्पूर्ण जनमानस उनकी शिक्षाओं और उनके संदेशों को आत्मसात कर सके। भारत माता channel की ओर से गोविंद बल्लभ पंत जी को शत शत नमन। 

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