नेताजी सुभाष चंद्र बोस | Netaji Subhash Chandra Bose | Bharat Mata

बात है उन दिनों की जब भारत अपने इतिहास के शायद सबसे कठिन दौर में से एक का साक्षी बन रहा था, 170 वर्ष की गुलामी ने भारत की रीढ़ तोड़ दी थी, हालांकि क्रांति की लहर पूरे भारत मे पसर चुकी थी पर तब भी एक आवाज़ जिसने "जय हिंद" की टंकार से सम्पूर्ण विश्व को किसी गहरी नींद से जगा दिया था तथा भारत का लोहा मनवाया वो थे भारतीय जन चेतना के अग्रणी नायक – स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस।

सुभाष चंद्र बोस: प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

सुभाष का जन्म उड़ीसा के कटक में 23 जनवरी 1897 में पिता जानकीनाथ बोस तथा माता प्रभावती के घर हुआ । पिता प्रतिष्ठित वकील थे तथा माता सुदृढ़ विचारों की प्रभावशाली महिला थी जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव सुभाष के निजी व्यक्तित्व पर भी देखते हैं। सुभाष की आरंभिक शिक्षा कटक से ही हुई और इंटरमीडिएट पास कर के वो प्रेसिडेंसी कॉलेज कलकत्ता चले गए जहाँ पर अपने क्रांतिकारी विचारों के चलते एक वर्ष के निलंबन के पश्चात भी 1919 में उन्होंने पूरे कलकत्ता विश्वविद्यालय में दूसरे स्थान के साथ स्नातक की उपाधि ग्रहण की। पिता हार्दिक इच्छा थी कि सुभाष आई.सी.एस बने तो बहुत सोच विचार के बाद वो परीक्षा हेतु 15 सितंबर 1919 को इंग्लैंड चले गए जहां उन्होंने ने किट्स विलियम हाँल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान ऑनर्स में दाखिला ले लिया और अपनी तैयारी में लगे रहे। जिसका परिणाम यह हुआ कि 1920 में आई. सी. एस. की वरीयता सूची में चौथे स्थान पर थे । परन्तु मन तो महर्षि दयानंद सरस्वती और अरबिंदो के दर्शन में रमा हुआ था तब अंग्रेजो की गुलामी किस प्रकार स्वीकार्य होती अतः उन्होंने अपने पद से त्याग पत्र देदिया और माँता प्रभावती के पत्र को पाते हौ की "उन्हें अपने पुत्र के निर्णय पर भरोसा है " सुभाष तत्काल ही 1921 में भारत लौट आये।

नेताजी: महात्मा गांधी और असहयोग आंदोलन

भारत लौटने के बाद गुरु देव की सलाह पर वो बम्बई महात्मा गांधी से मिलने गए जहाँ पर उनके मन की बात गांधी जी के मुह से सुन कर की वो कलकत्ता में देशबंधु चितरंजन दास के साथ कार्य करें, कलकत्ता लौट आये और दास बाबू के साथ तत्कालिक चल रहे असहयोग आंदोलन में सहभागी बन गए । दासबाबू के कलकत्ता के महापौर बनते ही सुभाष को महापालिका प्रमुख बना दिया गया । और सुभाष बाबू ने कार्य भार संभालते ही कलकत्ता कायापलट शुरू कर दी जिसने राष्ट्रीय स्तर पर उनके नाम को और अधिके प्रकाशित किया । अपने कार्य कौशल और विचार शक्ति के बल पर बहुत कम समय मे सुभाष चंद्र बोस देश के महत्वपूर्ण और लोकप्रिय युवा नेता बन गए थे। 

कांग्रेस मे बोस जी का नेतृत्व

नेहरू जी के साथ मिल कर कांग्रेस के भीतर ही युवाओं के लिए इंडिपेंडेंस लीग शुरू की । 1927 में आये साइमन कमीशन के विरोध में हुई क्रंति का नेतृत्व कलकत्ता में पूर्ण रूप से वो स्वयं ही कर रहे थे । इसके साथ ही साइमन कमीशन के जवाब में गठित हुई आठ सदस्यीय संविधान निर्माण समिति के भी सुभाष सदस्य रहे । सम्पूर्ण स्वराज की मांग के तहत जब 26 जनवरी 1931 में कलकत्ता में झंडा रोहण के साथ विशाल जन समुदाय का नेतृत्व सुभाष कर रहे थे तभी औपनिवेशिक शासन ने लाठी चार्ज कर उन्हें कारागार में डाल दिया । गांधी जी के समझौते के बाद जब सभी कैदियों को छोड़ा गया तब भगत सिंह की रिहाई नही हुई और सुभाष इस विषय पर अंग्रेज़ी सरकार पर दबाव बना कर भगत की रिहाई चाहते थे पर वह न हो सका और तभी कांग्रेस व गांधी जी से सुभाष के वैचारिक मतभेद हो गए । इसके पश्चात वो अपने जीवन काल में ग्यारह बार जेल गए जहाँ कई बार स्वास्थ ठीक न होने और उन्हें नज़रबन्द तरीके से विदेश इलाज के लिए ले जाया गया । इसी तरह अल्मोड़ा के जेल में स्वास्थ हानि के चलते सुभाष 1933 से 1936 तक यूरोप में इलाज के लिए गए और वहां उन्होंने विश्व के अन्य महत्वपूर्ण नेताओं से भेंट की । 1934 में पिता की मृत्यु की खबर सुन कर वो कलकत्ता वापस आये परन्तु उन्हें तुरंत की गिरफ्तार कर कई दिन कारावास प्रवास के बाद वापस यूरोप भेज दिया गया जहाँ 1934 में ही ऑस्ट्रिया में हौ सुभाष ने एमिली शेंकल से प्रेम विवाह कर लिया और वियेना में एमेली ने पुत्री अनिता बोस को जन्म दिया, सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु के समय वह महज़ पौने तीन साल की थीं ।

1938 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष पद पर सुभाष चंद्र बोस को चयनित किया गया । अपने इस कार्य काल मे उन्होंने योजना आयोग की स्थापना की साथ ही मशहूर वैज्ञानिक सर विश्वेश्वरैया की अध्यक्षता में एक विज्ञान परिषद की भी नींव रखी। कांग्रेस के अगले अधिवेशन में भी अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने के बाद भी सिर्फ महात्मा गांधी के सम्मान में वो पद से त्याग पत्र दे देते है और स्वयं कांग्रेस के अंदर की 3 मई 1939 को फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना करते है। 

नेताजी द्वितीय विश्व युद्ध और आज़ाद हिंद फौज

द्वितीय विश्व युद्ध के इस काल मे अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों और शासन के खिलाफ मोर्चा और अधिक तेज करने के कारण उन्हें उनके ही घर पर नज़र बन्द कर दिया जाता है। जहाँ से सुभाष भेस बदल कर बहुत ही चतुराई से निकल भागने में सफल होते हैं ।

पेशावर, काबुल से मास्कों के रास्ते होते हुए वो जर्मनी पहुंच कर आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना करते है और वहीं बाद में उनकी भेंट हिटलर से भी होती है, परन्तु जर्मनी से किसी ठोस सहायता न मिलने की दशा में वो समुद्रमार्ग से मध्य एशिया की ओर रुख करते है । सिंगापुर पहुंच कर रासबिहारी बोस द्वारा गठित भारतीय स्वत्रंता परिषद का नेतृत्व संभालते है और फिर जापान में आज़ाद हिंद फौज को खड़ा करते है जिसमें महिलाओं के लिए झांसी की रानी रेजिमेंट का भी निर्माण होता है। यहीं पर वो भरतीय जन समुदाय को सम्बोधित करते हुए नारा देते है " तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा "। नेता जी का व्यक्तित्त्व इतना सम्मोहनपूर्ण था कि सम्पूर्ण विश्व उनके आकर्षण से बंधा हुआ था, इतनी विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने हार नहीं मानी और अंत तक भारत की स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा के लिए लड़ते रहे।

बोस जी की मृत्यु और रहस्यमय परिस्थितियाँ

6 जुलाई 1944 को अपने रेडियो संभाषण में वो गांधी जी को 'राष्ट्र पिता' कह कर पुकारते है और तभी गांधी जी उन्हें नेता जी के नाम से संबोधित करते है। द्वितीय विश्व युद्ध मे जापान की हार के बाद अन्य मार्गों की तलाश में 18 अगस्त 1945 को नेता जी रूस की ओर रुख करते हैं परंतु साक्ष्यों के अनुसार उनका हवाई जहाज रास्ते मे ही दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है जिसमें नेता जी गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और उनकी मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में हो जाती है । जापानी शासन अनुसार उनकी अस्थियां टोक्यो के रैंकोजी मंदिर में सिंचित कर रखी गयीं है ।

भारत की स्वतंत्रता के उपरांत मृत्यु के सत्य को जानने के लिए आज तक तीन आयोग बनाये गए परन्तु वास्तविकता क्या है यह आज भी अबूझ है। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस भारत की हर धड़कन में धड़कते है, उनके विचार और सिद्धान्त आज भी हमारे आदर्शमूल में स्थापित है और हमेशा रहेंगे । उनका हिंद सदैव जयघोष सदा बना रहे यह अब हम सबकी साझे की ज़िम्मेदारी है।

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