Badi Ekadashi | प्रबोधनी एकादशी पर योग निद्रा से उठते हैं भगवान विष्णु। Devuthani Ekadashi
आत्म ज्ञान और प्रकृति के गुण
प्रकृति के नियमानुसार सत, रज और तम तीन गुण शरीर में रहकर मानव मन और शरीर को प्रभावित करते हैं। व्यक्ति जब आत्म ज्ञान के द्वारा आत्म भाव में आ जाता है, तब वह प्रकृति के इन तीनों गुणों के प्रभाव से मुक्त हो जाता है। इस स्थिति में, वह स्वयं इन गुणों का संचालन करने की क्षमता भी अवतरित कर लेता है।
निद्रा और समाधि
रात्री में जब आत्म भाव में आकर सोने के लिए मनुष्य जाता है, तब वह तम गुण से बंधा नहीं होता। उसके लिए, यह निद्रा एक प्रकार से समाधि के समकक्ष बन जाती है।
भगवान विष्णु का विश्राम
जगत के नियंता भगवान विष्णु का यह विश्राम जो हरिशयनी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी पर समाप्त होता है, इसी योग निद्रा को दर्शाता है। सृष्टि के संचालक और पालन कर्ता भगवान विष्णु चार महीने के शयन या योग निद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान, सृष्टि के संचालन का दायित्व भगवान शिव निभाते हैं।
चातुर्मास के व्रत और त्योहार
चातुर्मास में भगवान शिव और उनके परिवार से जुड़े व्रत त्योहार आदि मनाए जाते हैं। श्रावण माह तो पूरा भगवान शिव को समर्पित रहता है, जहां शिव मंदिरों में विशेष अभिषेक, पूजन आदि सम्पन्न किए जाते हैं।
भाद्रपद माह के दस दिनों तक भगवान श्री गणेश का जन्मोत्सव मनाया जाता है, जबकि आश्विन माह में देवी दुर्गा की आराधना शरदीय नवरात्रि के अवसर पर की जाती है।
देव शयनी एकादशी का महत्व
पद्मपूरान के उत्तर खंड में भगवान श्री कृष्ण धर्मिष्ठ युधिष्ठिर को देव शयनी एकादशी व्रत की महत्ता बताते हुए कहते हैं कि हरिशयनी एकादशी पुण्य मयी, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली तथा सभी पापों को हरने वाली है।
राजा बलि और भगवान विष्णु का दान
पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान हरि ने वामन रूप में राजा बलि से तीन पग दान में उसका सर्वस्व ले लिया। राजा बलि की दानशीलता और वचनबद्धता से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और इच्छित वर मांगने को कहा। बलि ने कहा कि प्रभु, आप मेरे साथ पाताल लोक चले और वहीं पर निवास करें।
भगवान विष्णु अपने वचन से बंधे थे। उन्होंने बलि की इच्छा पूरी की और पाताल लोक चले गए। यह देखकर माता लक्ष्मी समेत सभी देवता चिंतित हो गए। माता लक्ष्मी एक दिन गरीब महिला बनकर राजा बलि के पास पहुंचीं और उसे राखी बांधकर अपना भाई बना लिया।
उन्होंने बलि से कहा कि वे भगवान विष्णु को उनके वचन से मुक्त कर दें ताकि वे अपने धाम बैकुंठ में रह सकें। बलि ने भगवान विष्णु को वचन से मुक्त कर दिया कि वे हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक पाताल लोक में ही रहेंगे।
हरिशयनी एकादशी और योग निद्रा
इस कारण से हर वर्ष चातुर्मास में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास शयन करने के पश्चात जागते हैं। इस एकादशी के बाद ही हिंदू धर्म के मंगल कार्य प्रारंभ होते हैं। इस एकादशी को प्रबोधनी व देवउत्थान एकादशी भी कहा जाता है।
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