वाराणसी- विश्व की प्राचीनतम आध्यात्मिक नगरी | आस्था का शहर | History of Banaras
जहां प्रकृति अपने सौंदर्य पर गर्व करती है जहां गंगा मानवता को पवित्रता से आप उचित करती है जहां जीवन मृत्यु के चक्र को विराम प्राप्त होता है जहां रहस्य एवं शांति का अद्भुत आभास होता है, वह दे दे नगरी कोई और नहीं विश्व की प्राचीनतम जीवित नगरी, वाराणसी, संस्कृति धर्म एवं कला की प्रतिमूर्ति भारत पृथ्वी पर देवताओं की धरती के रूप में सुशोभित है। भारत और देश है जिसने प्राचीन काल से विश्व पटल पर अपनी गौरवमई एवं महिमा मई उपस्थिति को अंकित किया है।
वाराणसी का इतिहास | History of Varanasi | अतुल्य भारत
भारतवर्ष की समय सीमा में भारत की आध्यात्मिक राजधानी वाराणसी का उल्लेखनीय योगदान है। विश्व के प्राचीनतम नगरों में से एक नगर वाराणसी उत्तर प्रदेश का एक अति महत्वपूर्ण जनपद ही नहीं है अपितु विश्व इतिहास की विशिष्ट धरोहरों में से एक भी है। भारत में जिस स्थान पर संस्कृति धर्म एवं कला का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है, उसे भगवान शिव की नगरी वाराणसी कहा जाता है।
पवित्र गंगा मैया के तट पर स्थित वाराणसी का नाम संभवत यहां की दो अन्य नदियों, वरुणा एवं हंसी का संगम है। इस नगर का वाराणसी नाम लो को चारों से बनारस हो गया था जो आज भी अत्यंत लोकप्रिय है। प्राचीन काल से वाराणसी को अविमुक्त क्षेत्र आनंद, कानन, महा, शमशान, तुरंत, धन, ब्रह्मा, व्रत, सुदर्शन, रम्या एवं काशी नाम से भी संबोधित किया जाता रहा है। काशी की भूमि सदियों से हिंदुओं के लिए परम तीर्थ स्थान रही है। हिंदुओं की मान्यता है कि जो भी वाराणसी की पवित्र भूमि पर देहावसान प्राप्त करता है वह।एवं पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति और मोक्ष प्राप्त कर लेता है। अनुश्रुति है कि वाराणसी में दंगा नश्वर मनुष्य के पापों को धोने की शक्ति रखती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार काशी नगर की स्थापना भगवान शिव ने की थी। जिस कारण यह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। हिंदुओं की पवित्र शब्द पोरियों में से वाराणसी का उल्लेख स्कंद पुराण रामायण, महाभारत एवं प्राचीनतम वेद ऋग्वेद सहित कई हिंदू ग्रंथों में दृष्टा पर है। धार्मिक शैक्षणिक एवं कलात्मक गतिविधियों का केंद्र वाराणसी मंदिरों का शहर और संस्कृति के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध है। वाराणसी आध्यात्म वाद रहस्यवाद, संस्कृत संगीत योग और हिंदी भाषा के प्रचार का भी केंद्र रहा है जिसने रामचरितमानस के रचयिता प्रसिद्ध संत कवि तुलसीदास एवं प्रसिद्ध उपन्यासकार प्रेमचंद को उनके साहित्यिक परिदृश्य में प्रेरित किया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध सितार वादक।
पंडित रविशंकर और प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने भी वाराणसी में रहकर अपने संगीत से कला जगत को शिक्षित किया है। लघु भारत की उपाधि से विभूषित वाराणसी की साहित्यिक एवं कलात्मक उर्वरा में शौर्य के बीच भी विद्यमान हैं। तभी तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नायिका मणिकर्णिका तांबे झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का जन्म भी यही हुआ था। शिव और काल भैरव की अद्भुत नगरी में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से बाबा विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग विराजमान है।
मध्य पावनी गंगा नदी के तट पर विद्यमान्य मंदिर दो भागों में विभाजित है जिसमें दाहिनी ओर मां भगवती तथा दूसरी ओर भगवान शिव विराजमान है। बाबा विश्वनाथ के मंदिर को मुक्ति का धाम की संज्ञा प्राप्त है। शिवजी के त्रिशूल पर्वती काशी ही एक मात्र स्थान है, जहां गंगा उत्तरवाहिनी है। यहां के हर घाट पर महादेव स्वयं विराजमान है। इन होठों पर संपूर्ण भारतीय संस्कृति का समन्वय। जीवंत रूप में विद्यमान है। यहां होने वाले धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गंगा आरती गंगा महोत्सव एवं देव दीपावली विश्व विख्यात है।
काशी प्रसिद्ध घाट
वाराणसी के अधिकांश भागों में 5 घाट अत्यंत पवित्र माने जाते हैं जिन्हें सामूहिक रूप से पंचतीर्थ कहा जाता है। यह घाट हैं अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट आदि केशव घाट, पंचगंगा घाट तथा मणिकर्णिका घाट संध्या काल में यहां होने वाली विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती एक अत्यंत मनोरम, अलौकिक एवं अद्भुत अनुभूति है। कल्पना से भी सुंदर काशी अघोर, पीठ, भारत माता मंदिर, सेंट्रल, यूनिवर्सिटी ऑफ तिब्बतन स्टडीज, धन्वंतरी मंदिर, काशी, हिंदू विश्वविद्यालय, नया, विश्वनाथ मंदिर, दुर्गा मंदिर आदि के लिए भी प्रसिद्ध है। बनारस की छोटी-छोटी घुमाओ से भरी सकरी गलियां जो भव्य गंगा घाटों की ओर ले जाती हैं। जीवन के असंख्य झंझा बातों से आत्मिक आनंद की ओर जाने का अद्भुत प्रतीक है। प्रातः काल इन घाटों का दृश्य अत्यंत मनोरम होता है।
अंगनैया शीतल मईया की इस नगरी को भारत समन्वय परिवार का शत शत प्रणाम है।
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