धार भोजशाला मंदिर है या मस्जिद? Bhojshala Mandir | Bhojshala ASI Survey |

500 वर्ष लगे श्री राम जन्म भूमि मंदिर निर्माण मे, लेकिन एक नाम है जो 700 सालों से इतिहास के पन्नों मे बंद है। 
वो नाम है राजा भोज की भोजशाला। 

एक सत्य, एक तथ्य। 

एक स्थान जिसकी वास्तविकता उसके विवाद से बहुत बड़ी है। ज्ञान और बुद्धि की देवी माँ सरस्वती का एक मात्र मंदिर, जिसे बार-बार एक दरगाह बताया गया। 
"भोजशाला मंदिर कहां है, और कहाँ है माता की मूर्ति?"

भोजशाला का निर्माण (Establishment of Bhojshala by Raja Bhoj) | राजा भोज से लेकर आज तक 

‘भोजशाला’ का निर्माण 1034 ई. पू. में राजा भोज ने किया था, जिनकी साम्राज्यिक सीमाएँ राजस्थान से ओडिशा और मध्य प्रदेश से महाराष्ट्र तक फैली हुई थीं। माता सरस्वती का यह मंदिर मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित है, जो राजा भोज की राजधानी थी। भोजशाला हजारों विद्यार्थियों और विद्वानों का निवास स्थान था और यह उस समय शिक्षा का मुख्य केंद्र था। फिर  आया 1305 ई. पू. ‘भोजशाला’ पर पहली बार आक्रमणकार अलाउद्दीन खिलजी ने हमला किया। इस युद्ध में हिन्दू राजा महाकालदेव और उनके सैनिकों ने बलिदान दिया, लेकिन खिलजी ने भोजशाला में धर्म परिवर्तन ना होने के कारण 1200 हिन्दू विद्यार्थियों और शिक्षकों को मार डाला। इस हमले की प्रक्रिया 36 साल पहले शुरू हुई थी, जब एक फ़कीर नामक कमाल मौलाना ने 1269 ई. पू. में मालवा में प्रवेश किया। उन्होंने धोकेबाजी के तरीके इस्तेमाल किए और कई हिन्दुओं को इस्लाम में धर्मांतरित किया। उन्होंने 36 साल तक मालवा क्षेत्र की विस्तृत जानकारी एकत्र की और उसे अलाउद्दीन खिलजी को सौंप दी। 

भोजशाला का इतिहास: | आक्रमण और संघर्ष

1401 ई. पू. मे दिलावर खान ने सूर्य मार्तंड मंदिर का विनाश किया और सरस्वती मंदिर भोजशाला के एक हिस्से को दरगाह में बदलने का प्रयास किया। आज इसी विजय मंदिर में नमाज़ पढ़ते हैं और षड़यंत्र रचा गया कि यह वास्तव में 'लाट मस्जिद' नामक एक दरगाह है। 

1514 ई. पू. मे महमूदशाह ने भोजशाला पर हमला किया और इसे दरगाह में बदलने का प्रयास किया। उसने सरस्वती मंदिर के बाहर भूमि का कब्ज़ा किया और 'कमाल मौलाना मकबरा' बनवाया, जो कमाल मौलाना की मृत्यु के 204 वर्ष बाद हुआ, और फिर कहा गया की भोजशाला वास्तव में एक दरगाह है। 

1552 ई. पू. में, मेदानीराय नामक एक राजपूत योद्धा ने अपने विश्वसनीय सैनिकों को एकट्ठा किया और महमूद खिलजी को भागने के लिए मजबूर किया। मेदानीराय ने हज़ारों विरोधी सैनिकों को मार डाला और धार किले में अन्य 900 विरोधी योद्धाओं को गिरफ्तार किया। 25 मार्च 1552 को, धार किले में एक सैनिक ने धोकेबाजी में अपने ही संगठन के गिरफ्तार हुए 900 योद्धाओं को रिहा कर दिया। इस धोखाधड़ी में शामिल सैनिक का नाम सैयद मसूद अब्दाल समरकंदी था। मेदानीराय ने बाद में सैयद मसूद को मार डाला, लेकिन फिर भी धार किले में सैयद मसूद को 'बंदी छोड़ दाता' के रूप में पूजा जाता है।

मुग़ल-मराठा युद्ध - 1703 में, मराठों (हिन्दू) ने मालवा को अपने कब्जे में लिया, जिससे विरोधियों के शासन का अंत हुआ। 1826 ई. पू. में, ईस्ट इंडिया कंपनी ने हिन्दुओं को हराया और मालवा पर अधिकार किया। उन्होंने भी भोजशाला पर हमला किया और कई सारे स्मारकों और मंदिरों को नष्ट कर दिया। 

लंदन में हैं मां सरस्वती की प्रतिमा

1902 में लॉर्ड कर्ज़न ने माता सरस्वती की मूल मूर्ति भोजशाला से इस मूर्ति को ले जाकर इंग्लैंड में रख दिया था। आज वागदेवी लंदन म्यूज़ियम में रखी है। 1930 में मुस्लिम शासन के बाद पहली बार, आर्य समाज और हिन्दू महासभा के हिन्दू कार्यकर्ताओं ने आवाज उठाई। आजादी के बाद वर्ष 1952 में केंद्र सरकार ने भोजशाला को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण महासंघ (ASI) को सौंप दिया। इसी साल, आरएसएस और हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं ने भोजशाला के बारे में लोगों को जागरूक करना शुरू किया। 

वर्ष 1961 मे एक प्रमुख पुरातत्वविद, कलाकार, लेखक और इतिहासकार, पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकंकर ने लंदन जाकर सिद्ध किया कि वागदेवी मूर्ति जो लंदन म्यूज़ियम में स्थापित किया गया है, जो वास्तव में राजा भोज ने भोजशाला में स्थापित की थी। उन्होंने इस मूर्ति को लंदन म्यूज़ियम के अधिकारियों से मिलकर इसे वापस लाने का प्रयास किया। भारत लौटने के बाद, डॉ. वाकंकर ने 1961 में तबके प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और 1977 में इंदिरा गांधी से मुलाकात की, लेकिन इस प्रयास का कोई फल नहीं मिला और आज भी भोजशाला की धरोहर लंदन मे है। 

माँ सरस्वती या कमाल मौला | भोजशाला का विवाद

12 मार्च 1997 से पहले, हिन्दुओं को दर्शन करने की अनुमति थी, लेकिन पूजा करने की नहीं। लेकिन फिर उस समय के मुख्यमंत्री ने एक कठोर आदेश जारी किया था, हर शुक्रवार को भोजशाला में नमाज़ पढ़ने की अनुमति थी, और हिन्दुओं को भोजशाला में प्रवेश तक रोक दिया गया। हिन्दुओं को सिर्फ वसंत पंचमी के दिन भोजशाला में प्रवेश की अनुमति थी, जब वे पूजा कर सकते थे।
2002 तक भोजशाला के बारे में हिन्दुओं की जागरूकता बढ़ रही थी, और वसंत पंचमी को ज्यादा से ज्यादा भक्तगण भोजशाला जाने लगे थे। इस डर के कारण, लोगों ने 'कमाल मौलाना के जन्मदिन' के अवसर के रूप में कार्यक्रम आयोजित किए। सरकार ने आदेश जारी किया कि 'हिन्दुओं को केवल दोपहर 1 बजे तक पूजा करने की अनुमति है, और उसके बाद क़व्वाली और अन्य कार्यक्रम होंगे'। जब हिन्दू भक्तगण भोजशाला विवाद में प्रवेश करने की कोशिश की, तो पुलिस ने उन पर क्रूरता से हमला किया और लाठीचार्ज किया। वहां मौजूद हिन्दू भक्तगण ने सभी कठिनाइयों का सामना किया और भोजशाला में देवी सरस्वती की महा-आरती की।

2003 मे हिंदू जागरण मंच ने वसंत पंचमी को पूरे उत्साह के साथ मनाने का निर्णय लिया और धार जिले के कई गांवों और शहरों में रथ यात्राएँ निकाली गईं और 9 लाख से अधिक लोगों ने यात्रा में पूजा की। ऐसी एकता और भक्ति को देखकर कुछ लोगों ने वसंत पंचमी के उत्सव को बिगाड़ने के लिए साजिश रची। पुलिस ने भोजशाला के बारे में जागरूकता फैलाने वाले पोस्टरों को फाड़कर काला किया। स्कूल, कॉलेज , होटल, धर्मशाला और वाहनों को भी जब्त किया गया। लेकिन सभी संकटों और बाधाओं का सामना करते हुए भी, 6 फरवरी 2003 को भोजशाला में 1 लाख से अधिक भक्तों ने वसंत पंचमी का उत्सव मनाया। डॉ. प्रवीण तोगड़िया ने भक्तों को संबोधित किया और लोगों ने प्राण लिया की अपने दम पर ही भोजशाला को मुक्त कर देंगे। फिर 18 फरवरी को धारा 144 लागू कर दी और कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने गैस शैल्ली और गोलियों से फायरिंग की और भक्तों पर लाठीचार्ज किया। 23 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। अनेक आपत्तियों के बावजूद 8 अप्रैल 2003 को प्रदर्शन के समर्थन में झुकना पड़ा और भोजशाला को हिंदूओं के लिए खोल दिया गया। अब भक्तों को दर्शन की और मंगलवार को फूलों के साथ पूजा करने की अनुमति थी। 

वर्तमान स्थिति और न्यायालय का आदेश

2006 में, वसंत पंचमी शुक्रवार को थी और इसलिए हिंदुओं ने मांग थी कि पूरे दिन पूजा की जाए और उस दिन वहाँ नमाज़ ना पढ़ी जाए। लेकिन सरकारी नेताओं ने ऐसा नहीं किया और उन्होंने सुरक्षा बलों को आदेश दिया कि ‘हर हालत में क़ानून और शांति को बनाए रखना है’ और इसके लिए पुलिस ने हिंदू भक्तों पर हमला किया जो भोजशाला में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे। एक बार फिर पुलिस ने भक्तों पर लाठीचार्ज किया। हज़ारों हिंदू भक्तों को पुलिस के हमलों में चोटें आई।
ऐसी बहुत सी तारीखें आईं जहाँ भोजशाला के लिए भक्तों ने इंसाफ मांगा। हाल ही मे पूर्व ASI अधिकारी ने जोर दिया कि दोनों पक्षों को कानून का पालन करना चाहिए। उन्होंने उच्च न्यायालय के फैसले को मान्यता दिलाई, जिसे सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए एकमात्र समाधान माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भोजशाला का मूल रूप से एक सरस्वती मंदिर था और दोनों पक्षों को सलाह दी कि वे ऐसे कार्यों से बचें जो "सभी के लिए समस्याएँ बना सकते हैं।"

Bhojshala ASI Survey

11 मार्च को, उच्च न्यायालय ने ASI को मध्यकालीन काल के भोजशाला के लिए एक 'वैज्ञानिक सर्वेक्षण' का आदेश दिया, जिसे छह हफ्ते में पूरा करने के निर्देश दिए गए। सर्वेक्षण जल्द ही अपने तीसरे दिन में प्रवेश किया। प्रसिद्ध पुरातत्वविद ने सुझाव दिया कि इन मुद्दों का समाधान ढूंढने के लिए दोनों समुदायों को साथ आना चाहिए। 

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