बृहदेश्वर मंदिर : जिसकी छाया जमीन पर नहीं पड़ती | Brihadeeswara Temple in Tamil Nadu

विश्व के 7 आश्चर्य तो हमेशा से ही पर्यटन और आकर्षण का केंद्र रहें हैं, लेकिन अब समय है भारतवर्ष की उन अनेकों अविश्वसनीय और अतिप्राचीन धरोहरों को जानने और समझने का जो उस काल में निर्मित हुईं जब भारत का विज्ञान और तकनीक ज्ञान सम्पूर्ण विश्व से कहीं ज्यादा उन्नत और प्रभावी था। भारतवर्ष सदैव अपने समृद्धशाली इतिहास के लिए विश्वप्रसिद्ध रहा है। भारत की समृद्धि यहाँ की सनातन संस्कृति, भव्य इतिहास एवम् अप्रतिम सौन्दर्य से तो है ही, किन्तु भारतीय शास्त्र ज्ञान तथा कला ने भारत के वैभव को विभूषित किया है. भारत के इस अप्रतिम सौन्दर्य में भारत के मंदिरों का अभूतपूर्व योगदान है। भारतवर्ष का प्रत्येक मंदिर अपने अंदर रहस्यमयी कथाएँ और एक गहन ऐतिहासिक उद्देश्य समेटे हुए है। इतना ही नहीं, यहाँ हर मंदिर अपने आप में अद्वितीय वास्तुकला को दर्शाता है और इसी अनुपम वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण दक्षिण भारत में दृष्टव्य है। दक्षिण भारत के भव्य ऐतिहासिक मंदिर प्राचीनकल से ही यहाँ की धार्मिक और सांस्कृतिक प्रचुरता से ओत –प्रोत रहें हैं। ऐसी ही सांस्कृतिक अविश्वसनीय शिल्पकला का अतुलनीय प्रतीक है, तंजावुर अथवा तमिलनाडु के तंजौर में स्थित बृहदेश्वर महादेव मंदिर। यह मंदिर पेरुवुटैयार कोविल के नाम से भी सुप्रसिद्ध है। इसके आकर्षण का मुख्य केंद्र इसकी भव्यता, अतुलनीय वास्तुशिल्प और इस मंदिर के निर्माण में लगे ग्रेनाइट पत्थर हैं। लगभग 66 मीटर की ऊंचाई और 13 तलों का बना ये मंदिर पूर्णतः देवों के देव महादेव भगवान शिव की आराधना को समर्पित है। इस मंदिर के शिखर पर बना गुंबद इस तरह से निर्मित है कि इसकी छाया कभी पृथ्वी पर नहीं पड़ती, जो वास्तुकला की एक आश्चर्यजनक उपमा है। इसके शिखर पर स्थित स्वर्ण कलश एक पत्थर पर स्थापित है जिसका भार अनुमानत: 2200 मन (88 टन) है। इस मंदिर के प्रवेशद्वार पर गोपुरम्‌ के भीतर एक चौकोर मंडप है, जहाँ नंदी बाबा विराजमान हैं। बृहदेश्वर महादेव मंदिर में नंदी जी की 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर ऊंची प्रतिमा सम्पूर्ण भारतवर्ष में दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा के रूप में सुशोभित है। यहाँ स्थापित विशालकाय शिवलिंग, भव्य और मनमोहक प्रतिमाओं और यहाँ की वृहत वास्तुकला को देखते हुए इस मंदिर का नाम “बृहदेश्वर महादेव मंदिर” सर्वथा उपयुक्त है।

 

ग्यारहवीं सदी के आरंभ में निर्मित यह मंदिर, चोल वंश की प्रचलित द्रविड़ वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। बृहदेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण चोल वंश के शासक राजराज चोल ने 1003-1010 ईसवी के बीच करवाया था। उनके नाम के आधार पर इस मंदिर का एक अन्य नाम “राजराजेश्‍वर मंदिर” भी प्रख्यात है। चोलवंशीय काल का ये मंदिर आज भी भारतवर्ष के लिए गौरव का प्रतीक है।   इस मंदिर को आश्चर्यजनक रूप से उत्तम शिल्पकारों द्वारा मात्र 5 वर्ष के कम समय में निर्मित किया गया था। चोल वंश के महान सम्राट राजराज प्रथम ने अपनी वीरता से चोल साम्राज्य को दक्षिण भारत से लेकर श्रीलंका और कलिंग तक फैलाया था। भगवान शिव के परम भक्त सम्राट राजराज प्रथम ने अनेक शिव मंदिरों का निर्माण करवाया, बृहदेश्वर मंदिर उसी भक्तिमय सेवा का एक साक्ष्य है। 

1000 वर्षों से ज्यादा समय से विराजमान ये वैभवशाली मंदिर वर्तमान में एक लोकप्रिय दार्शनिक स्थल और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। मंदिर की वास्तुकला के अनूठे दृष्टांत, ताम्र शिल्पांकन, प्रतिमा विज्ञान, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण, प्राचीन संस्कृत एवम् तमिल पुरालेखों के साथ ही मंदिर के भित्ति लेख एवम् मनोहारी प्रतिमाएँ मंदिर के अकल्पनीय सौन्दर्य के दैदीप्यमान प्रतीक हैं। श्रद्धालुओं की इस मंदिर के प्रति आस्था एवम् दर्शनार्थियों में इस पर्यटन स्थल की प्रसिद्धि को देखते हुए यूनेस्को द्वारा इस दिव्य मंदिर को विश्व धरोहर की सूची में प्रतिष्ठापित किया गया है। 

शिल्पकला की अद्वितीय धरोहर एवम् महादेव की भक्ति से विभूषित बृहदेश्वर महादेव मंदिर को भारत समन्वय परिवार की ओर से कोटि कोटि प्रणाम। धर्म तथा संस्कृति के प्रकाश से आपको निरंतर आलोकित करने के लिए हम सतत प्रयासरत हैं। 

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