सिद्धार्थ गौतम कैसे बने बुद्ध ?||Buddha Purnima
सम्पूर्ण संसार में सत्य एवं अहिंसा के संचार द्वारा.. समस्त मानवता को जीवन का सार प्रदान करने का अद्भुत कार्य करने के लिए.. इतिहास में एक ऐसी दैवीय प्रेरणा.. स्वर्णाक्षरों में अंकित है.. जो समय के बंधन से मुक्त होकर.. आज भी मानवह्रदय में व्याप्त.. प्रेम एवं करुणा का स्त्रोत है।
मानवमात्र के कल्याण के लिए अवतरित ये ईश्वरीय स्त्रोत थे - महात्मा बुद्ध। विलासता से युक्त राजसी सुख तथा गृहस्थ जीवन का त्याग करके.. सन्यासी एवं धर्म-संस्थापक तक की उनकी अद्भुत यात्रा.. मानवह्रदय में व्याप्त भ्रमित सिद्धार्थ को.. ज्ञान प्राप्ति के मार्ग द्वारा बुद्ध में परिवर्तित होने की प्रेरणा प्रदान करती है। भारत की श्रमण परंपरा से उत्पत्तित.. बौद्ध धर्म तथा दर्शन के संस्थापक.. महान तपस्वी तथा समाज सुधारक.. महात्मा बुद्ध का जन्म.. वैशाख माह की पूर्णिमा को लुम्बिनी ग्राम में हुआ था। वैशाख माह की पूर्णिमा को ही.. उन्होंने वर्षों की कठोर साधना के पश्चात्.. बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे.. सत्य का ज्ञान प्राप्त किया। संयोग से.. वैशाख माह की पूर्णिमा को ही महात्मा बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था। ये ईश्वर की ही अद्भुत लीला थी.. कि मानवमात्र के कल्याणार्थ जन्म लेने वाले.. महात्मा बुद्ध का जन्म.. बुद्धत्व का बोध तथा महापरिनिर्वाण की प्राप्ति.. वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि को ही हुई। यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष.. वैशाख माह की पूर्णिमा.. भगवान महात्मा बुद्ध को समर्पित त्यौहार.. बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है।
महात्मा बुद्ध के प्रति आस्था एवं श्रद्धा होने के कारण.. बुद्ध पूर्णिमा केवल बौद्ध धर्म ही नहीं.. अपितु हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है।
भारत ही नहीं.. श्रीलंका.. म्यांमार.. कंबोडिया.. इंडोनेशिया.. चीन.. जापान आदि देशों में भी.. बुद्ध पूर्णिमा को एक विस्तृत उत्सव के माध्यम से 'वेसाक' के रूप में मनाया जाता है।
सिद्धार्थ गौतम नामक राजपुत्र से महात्मा गौतम बुद्ध तक का आविर्भाव.. एक ऐसी प्रेरणा है.. जो मानवता को मानवीय मूल्यों से परिचित कराती है।
बौद्ध धर्म के विद्वानों के अनुसार.. सिद्धार्थ का जन्म.. इक्ष्वाकु वंशीय.. क्षत्रिय.. शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के पुत्र के रूप में हुआ था। उनकी माता महामाया.. कोलीय वंश से थीं.. जिनका सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन पश्चात निधन हो गया। तब उनका लालन-पालन महारानी की छोटी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। उनके जन्म के समय.. एक साधु ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक एक महान राजा अथवा महान पवित्र पथ प्रदर्शक होगा।
अपने पुत्र सिद्धार्थ को तपस्वी जीवन से विमुख रखने के लिए.. राजा शुद्धोधन ने हर संभव प्रयास किया। इसी कारण युवावस्था तक.. सिद्धार्थ संसार के कष्टों से पूर्णतः अनभिज्ञ रहे किन्तु बाल्यकाल से ही.. राजसी सुख तथा विलासता के आडम्बरों से उनका मोहभंग हो चुका था। अतः राजा शुद्धोधन के अनन्य प्रयासों के पश्चात भी.. सिद्धार्थ ने सत्यान्वेषण के लिए.. पारिवारिक मोह-माया का त्याग कर दिया।
ज्ञान प्राप्ति की इस यात्रा में.. अनेक वर्षों के आत्म-चिंतन.. तप.. साधना तथा ध्यान के पश्चात.. सिद्धार्थ को ज्ञात हुआ कि मनुष्य की कामनाएं ही.. उसके सभी सांसारिक कष्टों का कारण है। जीवन का सत्य तथा वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने के कारण.. सिद्धार्थ को बुद्ध की उपाधि से अलंकृत किया गया तथा इस प्रकार उन्हें.. महात्मा बुद्ध की संज्ञा से संबोधित किया जाने लगा।
मानवमात्र के कष्टों के निवारण के लिए.. महात्मा बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं का भारत में प्रचार किया। अपनी शिक्षाओं एवं उपदेशों के द्वारा.. महात्मा बुद्ध ने.. जीवन के अस्तित्व तथा स्वरुप को परिभाषित किया तथा निर्वाण की प्राप्ति एवं दुखों से मुक्ति के सरल मार्ग को परिचित कराया। 80 वर्ष की आयु में महात्मा गौतम बुद्ध को निर्वाण की प्राप्ति हुई। महात्मा बुद्ध के तत्कालीन समाज में उनके विरोधी भी थे.. किन्तु उनकी करुणा तथा सद्भावना ने सभी विरोध के स्वरों को प्रेम द्वारा परास्त कर दिया। महात्मा गौतम बुद्ध की शिक्षाएं.. आज भी सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हैं।
जिस प्रकार बुद्ध ने राजसी वैभव से युक्त स्वार्थ तथा पारिवारिक मोह-माया का त्याग कर.. जीव-जन्तुओं के कल्याण के लिए.. प्रेम.. दया.. अहिंसा एवं सद्भावना का मार्ग प्रशस्त किया.. उसी प्रकार.. मानव के लिए.. ईश्वर प्रदत्त मानवीय मूल्यों को आत्मसात कर.. जीवन को परमार्थ को समर्पित करना ही परम कर्तव्य है।
बुद्ध पूर्णिमा को अनेक बौद्ध भक्त.. वेसाक के मंदिरों में जाते हैं.. जहां वे भिक्षुओं से ज्ञान अर्जित करते हैं तथा प्राचीन छंदों का पाठ करते हैं। अनेक मंदिरों में एक शिशु के रूप में बुद्ध की एक छोटी मूर्ति प्रदर्शित की जाती है.. जिसे जलमग्न करके रखा जाता है तथा पुष्प से सजाया जाता है। बौद्ध अनुयायी.. इस प्रतिमा पर जल अर्पित करते हैं तथा इसे जीवन में शुद्ध और एक नवीन आरम्भ का प्रतीक मानते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार.. समाज में मानवीय मूल्यों के सरंक्षण तथा प्रतिपादन का उत्सव है। भारत समन्वय परिवार की ओर से महात्मा बुद्ध द्वारा प्रदत्त सत्य एवं अहिंसा के ज्ञान को कोटिशः नमन तथा आप सभी को बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं। हमारा समन्वित प्रयास है कि भारत के कण-कण को.. महान भारतीय संस्कृति की अविरल धारा से सिंचित किया जा सके तथा जन-जन के ह्रदय में भारतीयता का अमर्त्य भाव प्रतिष्ठित हो सके।