श्री समर्थ रामदास स्वामी कथा | Samarth Ramdas Swami Ki Katha | Bharat Mata

समर्थ स्वामी रामदास स्वामी रामदास का जन्म रामनवमी 1608 में को धाकड़ के निकट ग्राम जाम जिला जालना में हुआ। सूर्या जी 15 ग्राम कुलकर्णी में राजस्व अधिकारी के माता का नाम राम भाई कोई भी इस विधि से सूर्य उपासना परंपरा थी। कुटुंब में 2 पुत्र थे। बेस्ट गंगाधर वरिष्ठ नारायण स्वामी समर्थ रामदास जब 8 वर्ष के नारायण को एकांत में संचित देख मैंने पूछा, बेटा चिंता किसकी करता है, उत्तर था। वह चिंता करूं। विश्व की पुत्र को बचपना समाज भूल गई, परंतु आगे और भी आतंक घटित हुआ। जब 12 वर्ष की आयु में विवाह की बात पर नाराजगी कहा, हमें दृष्टि करना नहीं। पांडे जी सीटी बचपना समाज विवाह रचाया वाक्य की जाकर भेजी पर खड़ा हो नारायण ने अज्ञात ओमानी परंतु जो वधु वर यो सावधान कुशवाह मंडप से वह दूल्हा फुर्ती से भागा ढूंढने पर भी ना मिला और गोदा तट पर बसी नासिक के टाकली गांव में जाकर भिक्षा मांगने लगा। वही रिजल्ट उनका कार्यक्रम था। शुद्ध होकर जब व्यायाम शिक्षा अध्ययन विशेष्य के किसी के शिष्य ना थी। 12 वर्ष बाद उनका व्यक्तित्व प्रखरता पूर्ण विकसित का बलवान बच्चे पलते है। शिक्षा सभा शौचालय में निपुण तीव्र बुद्धि, साहित्य सर्जन, क्षमता, व्यवहार व संगठन के कुशल समर्थ रामदास स्वामी ने समाज में स्वतंत्रता के विषय में वैचारिक क्रांति का अलख जगाने का कार्य आरंभ किया। रामदास जी ने बाल्मीकि की पूरी रामायण।अपने हाथ से लिखी यह पांडुलिपि आज भी ग्वालियर के श्री एसएस देव के संग्रहालय में सुरक्षित है। रामदास जी के हजारों शिष्यों और अंबाजी उनकी हर प्रकार से सेवा करते और उनके वचनों को कल बात करते हैं। समर्थ गुरु रामदास जी ने अपना समस्त जीवन राष्ट्र को अर्पित कर दिया। 12 वर्ष की अवस्था में अपने विवाह के समय शुभ मंगल सावधान सावधान शब्द सुनकर नारायण विवाह के मंडप से निकल गए और ट्राली नामक स्थान पर श्री रामचंद्र की उपासना। उपासना से 12 वर्ष तक मिलती रहे। यही उनका नाम रामदास पड़ा। इसके बाद 12 वर्ष तक जय भारत वर्ष का भ्रमण करते रहे। इस प्रवास में उन्होंने जनता की दुर्दशा की थी। उससे उनका हृदय संस्कृत हो। साधना के स्थान पर अपने जीवन का लक्ष्य स्वराज्य की स्थापना द्वारा।आधा ताई शासकों के अत्याचारों से जनता को मुक्ति दिलाना बनाया। शासन के विरुद्ध जनता को संगठित होने का उपदेश देते हुए भी खूब लटके कश्मीर से कन्याकुमारी तक उन्होंने 1100 तथा खाली स्थापित कर स्वराज्य स्थापना के लिए जनता को तैयार करने का प्रश्न किया। इसी प्रश्न में पूरे छत्रपति श्री शिवाजी महाराज जैसे योग्य शिष्य कला हुआ और स्वराज्य स्थापना के सपनों को साकार होते हुए देखने का सौभाग्य उन्हें अपने जीवन काल में ही प्राप्त हो सके। इस समय महाराष्ट्र में मराठों का शासन था। शिवाजी महाराज रामदास जी के कार्य से बहुत प्रभावित हुए तथा जमीन का मिलन हुआ। तब शिवाजी महाराज ने अपना राज्य रामदास जी की झोली में डाल दिया। रामदास ने भारत से कहा, यह राज्य ना तुम्हारा है ना मेरा राज्य भगवान का हम सिर्फ न्यासी हैं। उन्होंने 1603 में 73 वर्ष की अवस्था में महाराष्ट्र में सज्जनगढ़ नामक स्थान पर सभा की।

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