Major Somnath Sharma | भारत के पहले परम वीर चक्र विजेता | दुश्मन कांप उठे मेजर सोमनाथ की दहाड़ से

दुश्मन हम से केवल 50 गज की दूरी पर है। हमारी जन्नत ही बहुत कम रह गई है। हम भयंकर गोलीबारी का सामना कर रहे हैं। फिर भी मैं 1 इंच भी पीछे नहीं हटूंगा और अपनी आखिरी गोली और आखिरी सैनिक तक डाटा रहूंगा। सोमनाथ शर्मा ने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि उनकी रग रग में वीरता बसते हैं। सोमनाथ शर्मा एक ऐसा नाम जिसने शौर्य और पराक्रम का ऐसा इतिहास लिख दिया कि आज भी उनकी वीरता की मिसाल दी जाती है और हमेशा दी जाती रहेगी हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में 31 जनवरी 1923 को। सोमनाथ को फौजी जज्बा विरासत में ही मिला था। पिता मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा और मामा क्या तुम भी वासुदेव की छाया में पले बढ़े। सोमनाथ शर्मा ने फौज में जाने का सपना बचपन में ही देख लिया था। दोस्तों में सॉन्ग के नाम से मशहूर मेजर सोमनाथ ने अपना सैनिक जीवन 22 फरवरी 1942 से शुरू किया। जब उन्होंने चौथी कुमाऊं रेजिमेंट में बतौर कमीशन ऑफिसर प्रवेश लिया। उनका फौजी कार्यकाल शुरू ही दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हुआ। मनाया के पास के रण में भेज दिए गए अपने पराक्रम और देशभक्ति के लिए पहचाने जाने वाले मेजर सोमनाथ शर्मा को 1947 के।पाकिस्तान युद्ध के दौरान अपनी टुकड़ी के साथ कश्मीर घाटी के बड़गांव मोर्चे पर जाने का आदेश दिया गया। 3 नवंबर को बड़गांव में उनकी करीब 50 सैनिकों की टुकड़ी पर पाकिस्तान के 700 सैनिकों ने हमला कर दिया। बेहद कम सैनिक बल होने के बावजूद भी उनकी बटालियन लगातार दुश्मन से मुकाबला करती मेजर शर्मा की टुकड़ी में 50 जवान थी। मदद आने तक इन्ही जवानों को हमलावरों को श्रीनगर एयरपोर्ट तक पहुंचने से रोकना था जो भारत से कश्मीर घाटी के हवाई संपर्क का एकमात्र जरिया थी। 700 आतंकियों और पाकिस्तानी सैनिकों ने मेजर शर्मा की टुकड़ी पर हमला कर दिया, लेकिन पीछे नहीं हटे। एक हाथ में प्लास्टर होने के बावजूद मेजर शर्मा खुद सैनिकों को भाग भाग कर हथियार और गोला-बारूद देने का काम कर रहे थे।इसके बाद उन्होंने एक हाथ में लाइट मशीन गन भी थाम ली थी। हमलावर हो और भारतीय जवानों के बीच जबर्दस्त संघर्ष शुरू हो। क्या मैं जो शर्मा जानते थे कि उनकी टुकड़ी को हमलावरों को कम से कम 6 घंटे तक रोके रखना होगा ताकि उन्हें मदद मिल सके। मेजर शर्मा जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए गोलियों की बौछार के सामने खुले मैदान में एक मोर्चे से दूसरे मोर्चे पर जाकर जवानों का हौसला बढ़ा रहे थे। हाथ में प्लास्टर लगे होने के बावजूद वह जवानों की बंदूकों में मैगजीन भरने में मदद करते रहे। उन्होंने खुले मैदान में कपड़े से एक निशान बना दिया ताकि भारतीय वायुसेना को उनकी टुकड़ी की मौजूदगी का सटीक पता चल सके। इसी बीच एक मोर्टार के हमले में बड़ा विस्फोट हुआ जिसमें मेजर शर्मा बुरी तरह से घायल हो गए और कश्मीर की रक्षा करते हुए शहीद हो गए उनकी। शहादत के बाद इनके साथ ही सैनिकों ने सहायता आने तक दुश्मनों पर हमले जारी रखे और पाकिस्तानी सेना को आगे नहीं बढ़ने दिया। उन्होंने प्राण देकर भी अपना वचन निभाया और दुश्मनों को 1 इंच भी आगे नहीं बढ़ने दिया। मेजर सोमनाथ तथा उनके साथियों की बहादुरी तथा बलिदान के बलबूते बड़गांव हवाई अड्डा बच गया। परमवीर चक्र प्राप्त विजेता सोमनाथ शर्मा के नाम से रानीखेत में कुमाऊं रेजीमेंट केंद्र ने सैन्य मैदान का नाम सोमनाथ रखा है। मेजर सोमनाथ शर्मा चौथी कुमाऊं रेजिमेंट की डेल्टा कंपनी के अधिकारी थे। वतन की खातिर जान देने वाले मेजर सोमनाथ शर्मा को Bharat Mata परिवार सलाम करता है।  

 

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