आचार्य चाणक्य ने एक दासी के बेटे को बना दिया सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य

असंभव शब्द का प्रयोग केवल कायर करते हैं , बहादुर और बुद्धिमान व्यक्ति अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त करते है।आचार्य कौटिल्य के यह शब्द उनके सम्पूर्ण और समर्पित जीवन एवं संघर्ष को प्रदर्शित करते है।कूट नीति के गुरु माने जाने वाले आचार्य चाणक्य कौटिल्य व विष्णुगुप्त जैसे नामों से भी जाने जाते है। आचार्य चाणक्य स्वाभिमानी और राष्ट्रप्रेमी तो थे ही, साथ ही चाणक्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना में अपना महत्वपूर्ण योगदान भी दिया।

आचार्य चाणक्य, मगध के सीमावर्ती नगर में एक साधारण ब्राह्मण आचार्य चणक के पुत्र होने के कारण चाणक्य कहे गए। चाणक्य की कूटनीति और ज्ञान के बारे में तो सब जानते है परन्तु उनका प्रारंभिक जीवन बहुत ही कठिन और रहस्यों से भरा था । विष्णुगुप्त के पिता चणक , मगध के राजा से असंतुष्ट थे। वह देश को विदेशी आक्रमण से बचाना चाहते थे।  परन्तु उनके इस देश प्रेम को राष्ट्र द्रोह माना गया और तत्कालीन शासक धनानंद ने उन्हें मृत्यु दंड दे दिया और उनका गला काट कर राजधानी के बीचोंबीच चौराहे पर टाँग दिया। पिता के कटे हुऐ सिर को देख कर कौटिल्य की आँखों से आंसू टपक रहे थे। रात होते ही उन्होंने अपने पिता का कटा हुआ सिर नीचे उतारा और अकेले उनका अंतिम संस्कार किया। अंतिम संस्कार करते हुए, कौटिल्य ने गंगा का जल अपने हाथ में लेकर शपथ ली – हे गंगे , जब तक हत्यारे धनानंद से अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध नहीं लूँगा तब तक पकाई हुई कोई भी वस्तु नहीं खाऊंगा,मेरे पिता का तर्पण तब तक पूर्ण नहीं होगा , जब तक कि हत्यारे धनानंद का रक्त पिता की राख पर नहीं चढ़ेगा।

जिसके बाद उनके जीवन की नई शुरुआत हुई और उन्होंने अपना नाम विष्णु गुप्त रख लिया व ज्ञान अर्जन के लिए तक्षशिला विश्व विद्यालय में दाख़िला लिया। ज्ञान अर्जन के बाद वह अपने गृह प्रदेश चले गए, और यही से उनके विष्णुगुप्त से, क्षत्रिय सम्राट चन्द्रगुप्त के गुरु बनने की यात्रा शुरू हुई। एक दिन चाणक्य पाटलिपुत्र के नंद वंश के राजा धनानंद के पास अनुरोध लेकर गए। आचार्य ने अखंड भारत की बात और पोरस राज्य से यमन शासन सेल्युकस को हटाने की बात रखी। किन्तु धनानंद ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। 

भारत पर सिकंदर के आक्रमण के कारण छोटे-छोटे राज्यों की पराजय से पीड़ित होकर कौटिल्य ने व्यावहारिक राजनीति में प्रवेश करने का संकल्प लिया । उनकी सर्वोपरि इच्छा थी भारत को एक गौरवशाली, अखंड भारत रूप में देखना। निश्चित रूप से चन्द्रगुप्त मौर्य उनकी इच्छा का केन्द्र बिन्दु था। आचार्य कौटिल्य को एक ओर पारंगत और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ के रूप में मौर्य साम्राज्य का संस्थापक और संरक्षक माना जाता है, तो दूसरी ओर उन्हे संस्कृत साहित्य के इतिहास में अपनी अतुलनीय एवं अद्भुत कृति के कारण अपने विषय का एकमात्र विद्वान होने का गौरव भी प्राप्त है। कौटिल्य की निपुणता और दूरदर्शिता का बखान भारत के शास्त्रों, काव्यों तथा अन्य ग्रंथों में विख्यात है।आचार्य चाणक्य की चंद्रगुप्त से भेंट पाटलिपुत्र में हुई थी ,एक दिन जब चंद्रगुप्त अपने साथियों के साथ राजा का खेल खेल रहे थे, तब शकटार ने उन्हें देखा।‘’शकटार आचार्य चाणक्य के मित्र थे’’ तभी शकटार ने चाणक्य को चंद्रगुप्त के बारे में बताया और कहा मुझे उस बालक में अपार संभावनाएं नजर आती हैं। वह अन्य बालकों से बिल्कुल भिन्न, सुदृढ शरीर और विचारों वाला है और उसकी नेतृत्व शक्ति कमाल की है। जब मैं बैठकर कर उसका खेल देख रहा था तभी अचानक वहां एक चीता आ गया और उसने मुझ पर हमला करना चाहा। अन्य बालक तो डर से इधर उधर भागने लगे, लेकिन चीते के मुझ तक पहुंचने से पहले ही उस बालक ने अपनी तलवार से उसे धराशायी कर दिया। जब मैंने उससे पूछा की तुम इतने साहसी कैसे हो ? तो वह बोला की मैं राजा बना था, और राजा का काम होता हैं अपनी प्रजा की रक्षा करना इसी लिए मैं अकेले ही लड़ा और मुझे धनानंद से भी तो अकेले ही लड़ना हैं। जब मैंने उससे इसका कारण पूछा तो वह बोला की उस क्रूर ने मेरी माता का अपमान करके उन्हें राजभवन से निकाल दिया था।। जिसके बाद चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को उनकी माँ मुरा से राज्य की रक्षा के लिए गोद ले लिया। और उसे वेद,सैन्य कला, नीति  और अन्य शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए तक्षशिला ले गए। तक्षशिला के बाद , चन्द्रगुप्त और चाणक्य भारत के पूर्वी मगध साम्राज्य की राजधानी में शिक्षा लेने चले गए थे। अति विद्वान और मौर्य साम्राज्य का महामंत्री होने के बावजूद कौटिल्य का जीवन सादगी से भरपूर था। वे ‘सादा जीवन उच्च विचार’ का सही प्रतीक थे। उन्होंने अपने मंत्रित्व काल में अत्यधिक सादगी का जीवन बिताया। वह एक छोटे से मकान में रहते थे। उनकी मान्यता थी कि राजा या मंत्री अपने चरित्र और ऊँचे आदर्शों के द्वारा लोगों के सामने एक प्रतिमान दे सकता है। उन्होंने सदैव मर्यादाओं का पालन किया और कर्मठता की जिंदगी बितायी। कुछ वर्षों बाद उन्होंने मंत्री पद त्याग कर वानप्रस्थ जीवन व्यतीत किया था। वस्तुतः उन्हें धन, यश और पद का कोई लोभ नहीं था।

एक दिन की बात है जब आचार्य चाणक्य से मिलने एक चीनी दार्शनिक उनके घर में आयें। जब तक वह घर में पहुंचे काफ़ी अंधेरा हो चुका था। घर में पहुंचते ही उन्होंने देखा की तेल के माध्यम से प्रज्जवलित दीपक के प्रकाश में आचार्य राज्य का कोई कार्य करने में व्यस्त हैं। जैसे ही उनपर आचार्य चाणक्य की नज़र पड़ी तो आचार्य ने मुस्कुराते हुए उनका स्वागत किया और अपने कार्य को समाप्त करके उस दीपक को बुझा दिया और दूसरा दीपक जला कर चीनी दार्शनिक से बातचीत करने लगे। ये देखकर उस चीनी दार्शनिक को काफी आश्चर्य हुआ। उसने सोचा कि अवश्य ही भारत में इस तरह का कोई परम्परा  होगी । लेकिन फिर भी उसने जिज्ञासावश चाणक्य से पूछा, ”मित्र, मेरे आगमन पर आपने एक दीपक बुझा कर ठीक वैसा ही दूसरा दीपक जला दिया। दोनों में मुझे कोई अंतर नहीं दिखता। क्या भारत में आगंतुक के आने पर नया दीपक जलाने की परम्परा  है?”प्रश्न सुनकर चाणक्य मुस्कुराये और उत्तर दिया, ”नहीं मित्र, ऐसी कोई बात नहीं है। जब आपने मेरे घर में प्रवेश किया, उस समय मैं राज्य का कार्य कर रहा था। इसलिए वह दीपक जला रखा था, जो राजकोष के धन से खरीदे हुए तेल से दीप्यमान था। लेकिन अब मैं आपसे वार्तालाप कर रहा हूं और यह मेरा व्यक्तिगत वार्तालाप है। इसलिए मैं उस दीपक का उपयोग नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा करना राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग करना होगा। बस यही कारण है की मैंने दूसरा दीपक जला लिया। चाणक्य का यह देश प्रेम देखकर वह चीनी दार्शनिक उनके सामने नतमस्तक हो गया।

यह सत्य है कि कौटिल्य का राज्य-सिद्धांत भारतीय राजनीतिक चिन्तन हेतु महत्त्वपूर्ण देन है। उन्होंने राजनीतिक शास्त्र को धार्मिकता की ओर अधिक झुके होने की प्रवृत्ति से मुक्त किया। यद्यपि वह धर्म व नैतिकता का विरोध नहीं करता, किन्तु उन्होंने राजनीति को साधारण नैतिकता के बंधनों से मुक्त रखा है। सेलीटोर का मत है कि कौटिल्य की तुलना अरस्तु से करना उचित होगा, क्योंकि दोनों ही सत्ता हस्तगत करने के स्थान पर राज्य के उद्देश्यों को अधिक महत्व देते हैं।चाणक्य ने चंद्रगुप्त के साथ मिल कर नंदवंश का नाश किया और मौर्य साम्राज्य की स्थापना करके,भारत के अधिकांश हिस्सों को एकजुट करने वाले पहले राज्य की नींव रखी।

आचार्य चाणक्य की मृत्यु को लेकर आज भी कई मत दिए जाते है। कि वे अपने सभी कार्यो को पूरा करने के बाद एक रथ में सवार होकर मगध से दूर जंगलों में चले गए और कभी नहीं लौटे।चाणक्य के विचारों ने भी कई लोगों के जीवन को उन्नत किया है। चाणक्य की कूटनीति और इसके सिद्धांतों के बारे में कई पुस्तकें लिखी गयी है।आचार्य चाणक्य के गौरवशाली व्यक्तित्व के बारे में पढ़ने से नई ऊर्जा का संचार होता है,और उनके के विचार आज भी हर एक व्यक्ति के लिए प्रेरणादायी है।

Bharat Mata परिवार की ओर से आचार्य चाणक्य के जीवन संघर्ष,उनके अखंड भारत के सपने और उनके द्वारा दी गई नीतियों को शत शत नमन। हमारा प्रयास है की उनके द्वारा स्थापित नीतियों से भारत की भावी पीढ़ी प्रेरणा प्राप्त करें।

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