गीता के माध्यम से जानिए चारों वर्ण ईश्वर से ही उत्पन्न हुए हैं | Shrimad Bhagwat Geeta | Pravachan
भारत माता की इस प्रस्तुति में स्वामी सत्यामित्रानंद गिरि जी महाराज ने गीता के माध्यम से यह महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किया है कि चारों वर्ण, अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, सभी ईश्वर की इच्छा से उत्पन्न हुए हैं। यह दर्शाता है कि मानवता का प्रत्येक व्यक्ति परमात्मा की बगिया का एक सुंदर पुष्प है।
गीता में कहा गया है:
उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्
इसका अर्थ है कि सभी लोग महान हैं और सच्चे ज्ञानी हैं। इस विचार में गहराई है; स्वामी जी बताते हैं कि हर व्यक्ति में एक विशेषता है, और सभी को समान रूप से मान्यता मिलनी चाहिए। यह संदेश हमें यह भी सिखाता है कि सामाजिक भेदभाव और भिन्नताओं को दरकिनार करके हमें एकजुटता की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। जैसे एक बगिया में विभिन्न रंग-बिरंगे फूल होते हैं, वैसे ही इस संसार में विभिन्न वर्णों और संस्कृतियों का होना मानवता की खूबसूरती को दर्शाता है।
स्वामी जी का यह संदेश हमें यह प्रेरित करता है कि हम अपने भीतर की ज्ञान की रोशनी को पहचानें और उसे साझा करें। जब हम अपने और दूसरों के गुणों को स्वीकार करते हैं, तब हम समाज में सामंजस्य और सहिष्णुता की नींव रख सकते हैं।
इस प्रकार, गीता के इस संदेश का महत्व आज भी प्रासंगिक है, और यह हमें एक सशक्त और समरस समाज की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
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