साधना का अर्थ क्या है? | Swami Satyamitranand Giri Ji Maharaj | Adhyatm Ramayana | Pravachan

भारत माता की इस प्रस्तुति मे स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी  महारज कहते हैं साधना का अर्थ है — अपने जीवन का आत्मनिरीक्षण करना, अपने दोषों को धीरे-धीरे सुधारते हुए, परमात्मा के चरणों में प्रेम विकसित करना, और एक शुद्ध जीवन जीते हुए, अंतर्मन में आनंद और संतुष्टि बढ़ाना। यही कार्य साधना के माध्यम से होता है।

साधना का मूल्यांकन कैसे करें?

अगर आप साधना शिविर में हों या घर पर साधना कर रहे हों और इन तीन बातों में कोई बढ़ोतरी न दिखे आत्मनिरीक्षण, दोष सुधार और परमात्मा में प्रेम तो समझना चाहिए कि या तो आपके पूर्व जन्म के कर्म (प्रारब्ध) बहुत भारी हैं, जो आपकी अंदर की गांठें (संस्कार) नहीं टूटने दे रहे हैं। या फिर साधना केवल औपचारिकता के लिए हो रही है। तीसरा कारण यह भी हो सकता है कि साधना मशीन जैसी बन गई है, यानी आप बस कर तो रहे हैं, लेकिन सोच-विचार और भावना नहीं है।

मशीन जैसी साधना क्यों व्यर्थ है?

जैसे एक मशीन में कुछ डालते हैं और वह बिना सोचे-समझे एक जैसा ही उत्पाद निकालती है, वैसे ही अगर हम बिना सोच-विचार के बस साधना करते जा रहे हैं, तो वह सही साधना नहीं है। सच्ची साधना का मतलब है चलते रहने के साथ-साथ यह सोचना कि हमारी वृत्तियाँ कहाँ केंद्रित हैं, हमारा मन कितना शांत है, और हम कितना प्रभु के करीब आए हैं

रामायण का चिंतन और कामनाओं से मुक्ति

रामायण का चिंतन व्यक्ति को उच्च स्तर पर ले जाता है। सोचिए ज्यादातर लोगों का मन कामना (इच्छाओं) में डूबा रहता है। "काम" का मतलब सिर्फ शारीरिक विचार नहीं, बल्कि हर तरह की इच्छाएं होती हैं। रामायण हमें कामना के विचारों से हटाकर राम के चिंतन में लगाती है। यही इसका सबसे बड़ा लाभ है।

इन दिनों हम जानकी जी द्वारा हनुमान जी को दिया गया उपदेश सुन रहे हैं। जानकी जी ने कहा:

"रामं विजानहि परमं ब्रह्म सच्चिदानंदमयं"

अर्थात, राम परम ब्रह्म हैं, आनंद स्वरूप हैं, और सबको मुक्त करने वाले हैं।
हनुमान जी को उपदेश इसलिए दिया गया क्योंकि उन्होंने प्रपन्नता यानी सम्पूर्ण समर्पण किया था।

प्रपन्न व्यक्ति पर गुरु, महात्मा, ऋषि और स्वयं भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं।
वाल्मीकि रामायण में एक जगह किसी जिज्ञासु ने भगवान से प्रश्न किया —
"भगवान, जो प्रपन्न हो जाता है, उसका कल्याण आप कितनी जल्दी करते हैं? और उसे क्या करना चाहिए?"

भगवान ने कहा:

"सकृदेव प्रपन्नाय तव स्मि इति याचते, अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतम् मम"

अर्थात, जो एक बार भी पूर्ण समर्पण से कह दे — “मैं आपका हूँ”, उसे मैं समस्त प्राणियों से अभय (निर्भयता) देता हूँ। यही मेरा व्रत (संकल्प) है।

भगवान भी व्रत करते हैं — यह बात जानने योग्य है। पहले वैदिक काल में लोग व्रत लेते थे जैसे — सुबह उठना, गायत्री मंत्र जप, संध्या, दान, यज्ञ, तप आदि। ऐसे व्रत जीवन में अनुशासन लाते थे।

अगर अनुशासन बाहर से थोपा जाए, तो वह भारी लगता है, लेकिन जब अनुशासन भीतर से स्वीकार किया जाए, तो वह सहज बन जाता है।
उदाहरण के लिए: अगर आपने खुद यह नियम लिया कि मैं ब्रह्ममुहूर्त में उठूंगा, तो किसी दिन देर होने पर मन उदास हो जाता है, क्योंकि वो आपका स्वयं का व्रत था।

जब हमने वह श्लोक पढ़ा, तो यह समझ में आया कि भगवान होकर भी भगवान व्रत लेते हैं
उनका व्रत यह है कि जब भी कोई व्यक्ति शुद्ध मन से कहे “मैं तुम्हारा हूँ”, तो भगवान उसकी पीड़ा को समझकर, उसे अभय (निर्भयता) देते हैं।

फिर जिज्ञासु ने पूछा: "भगवान, अगर कभी ऐसा समय आ जाए जब पूरे संसार के सभी जीव, सभी देश — अमेरिका, रूस, भारत, बांग्लादेश, सबके लोग, पशु-पक्षी भी — एक साथ कहें 'मैं आपका हूँ', तब क्या करेंगे?"

भगवान ने कहा:

"मैं सभी को अभय दूंगा। यह मेरी प्रतिज्ञा है।"

यहाँ प्रपन्न शब्द की विशेष महिमा है।
"सकृत" का मतलब होता है — केवल एक बार।
यदि कोई व्यक्ति एक बार भी पूर्ण श्रद्धा और निर्मल भाव से कह दे — “मैं तुम्हारा हूँ” — तो भगवान उसे अभय प्रदान कर देते हैं।

सोचिए — अभय (निर्भयता) दुनिया में सबसे ऊँचा आध्यात्मिक अनुभव है।
भय तब होता है जब कोई "दूसरा" होता है — शत्रु, प्रतिस्पर्धी, शासक, शोषक। लेकिन जब व्यक्ति अद्वैत (एकता) के अनुभव में स्थापित हो जाता है, तब कोई भिन्नता दिखाई नहीं देती और भय भी समाप्त हो जाता है।

वेदों की महानता यह है कि वे भिन्नता में भी अभिन्नता की खोज करते हैं।
हम द्वैत में जीते हैं लेकिन हमारी आत्मा अद्वैत (एकता) की ओर झुकती है।

भगवान कहते हैं —

जिसने मुझे एक बार भी सच्चे मन से पुकारा, मैं उसे भय से मुक्त करता हूँ। और जब कोई व्यक्ति अभयता की अवस्था तक पहुँचता है, तब चाहे मृत्यु सामने क्यों न खड़ी हो, उसकी आत्मिक निष्ठा डगमगाती नहीं।
वह समझता है कि शरीर नश्वर है लेकिन आत्मा अमर है —
और जिसे आत्मा की अमरता पर विश्वास है, उसे कोई भय नहीं डरा सकता।

और प्रवचनों के लिए देखें: Bharat Mata Pravachan Collection
जुड़ें हमारे आध्यात्मिक यूट्यूब चैनल से: Bharat Mata Online YouTube
सम्पूर्ण आध्यात्मिक संग्रह: BharatMata.online