जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी रक्षा करता है | Swami Satyamitranand ji Maharaj | Pravachan
स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज का आध्यात्मिक संदेश
भारत माता चैनल की इस प्रस्तुति में स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज आध्यात्म रामायण का सार प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि वर्तमान समय में धर्म के प्रति आस्था कम होती जा रही है। लोग सांसारिक सुखों में इतने व्यस्त हो गए हैं कि उन्हें धर्म, अध्यात्म और मोक्ष जैसे विषयों की ओर ध्यान देने का समय ही नहीं मिलता। लेकिन यह सत्य है कि धर्म की रक्षा करने वाला व्यक्ति स्वयं भी सुरक्षित रहता है – जैसा कि कहा गया है, "धर्मो रक्षति रक्षितः।"
भगवान श्रीराम – धर्म के मूर्त रूप
भगवान श्रीराम धर्म के मूर्त रूप हैं। उनका जीवन और कार्य हमें सिखाते हैं कि सत्य, कर्तव्य और मर्यादा का पालन कैसे किया जाए। अध्यात्म रामायण जैसे ग्रंथों का पठन-मनन हमें आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है और हमारे जीवन को सही दिशा देता है। यह केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक साधना है, जिससे आत्मा पवित्र होती है।
आत्मा के बंधन और मोक्ष की प्राप्ति
हमारे जीवन में जो भी बंधन हैं – पाप, पुण्य, मोह या वासनाएं – वे सभी आत्मा को संसार के चक्र में बाँधते हैं। पाप हमें दुःख देता है, और पुण्य हमें सुख, लेकिन इनसे ऊपर उठकर मोक्ष की प्राप्ति ही जीवन का अंतिम उद्देश्य होना चाहिए। यह तभी संभव है जब हम अपने मन, वाणी और कर्म को शुद्ध करें और ईश्वर की भक्ति करें।
श्रीराम का आदर्श चरित्र
श्रीराम का चरित्र हमें बताता है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी धर्म का पालन करना चाहिए। वे आदर्श पुत्र, आदर्श राजा और आदर्श पति के रूप में एक सम्पूर्ण जीवन जीते हैं। उनकी कथा केवल आदर्शों की बात नहीं करती, बल्कि एक मार्ग दिखाती है जिसे चलकर हम भी आत्मिक उन्नति कर सकते हैं।
विज्ञान और अध्यात्म: दोनों का संतुलन
आज विज्ञान चाँद और मंगल तक पहुँच चुका है, लेकिन यदि अध्यात्म से दूरी बनी रही तो यह प्रगति अधूरी रह जाएगी। जैसे अंतरिक्ष में यात्रा करना एक वैज्ञानिक उपलब्धि है, वैसे ही आत्मा से परमात्मा की यात्रा एक आध्यात्मिक उपलब्धि है। यह यात्रा तप, भक्ति, साधना और गुरु के मार्गदर्शन से ही पूरी होती है।
गीता का योग संदेश
गीता ज्ञान श्रृंखला में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि योगी बनो। योग केवल शरीर की क्रिया नहीं, बल्कि मन, आत्मा और ब्रह्म के मिलन की प्रक्रिया है। ज्ञान, भक्ति और निष्काम कर्म – ये तीनों रास्ते मोक्ष की ओर ले जाते हैं।
मानव जीवन का उद्देश्य: ईश्वर प्राप्ति
यदि मनुष्य केवल खाने, सोने और काम करने में जीवन बिता दे, तो वह पशु समान है। लेकिन अगर वह अपने जीवन को ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में लगाता है, तो वह दिव्यता को प्राप्त करता है। इसलिए श्रीराम के आदर्शों को अपनाकर हमें अपने जीवन को धर्ममय और अर्थपूर्ण बनाना चाहिए।