गीता के माध्यम से जानिए: ईश्वर किसे कहते हैं | Swami Satyamitranand Ji Maharaj | Bhagwad Geeta
भारत माता की इस प्रस्तुति मे स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज बताते हैं कि श्रीमद्भगवद्गीता एक ऐसा दिव्य ग्रंथ है, जो जीवन के हर मोड़ पर हमें मार्गदर्शन करता है। यह केवल युद्ध भूमि का संवाद नहीं, बल्कि मनुष्य के अंतर्मन में चल रहे संघर्षों का समाधान है। इस वीडियो प्रवचन में गीता के छठे अध्याय के उन श्लोकों की व्याख्या की गई है, जो ‘जितात्मा’ (स्वयं पर विजय प्राप्त करने वाला) और ‘प्रशांतस’ (मन से शांत व्यक्ति) बनने की प्रेरणा देते हैं।
अर्जुन को दिए गए उपदेश: हर मनुष्य के लिए अमूल्य सीख
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जो उपदेश देते हैं, वह केवल एक योद्धा के लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए है जो जीवन के तनाव, विपरीत परिस्थितियों और मानसिक द्वंदों से जूझ रहा है। "शीतोष्ण सुख दुखेषु तथा मानापमानयोः" — यह वाक्य हमें सिखाता है कि सर्दी-गर्मी, सुख-दुख, मान-अपमान जैसे जीवन के द्वंद निरंतर चलते रहेंगे। लेकिन जो व्यक्ति अपने मन और इंद्रियों को जीत लेता है, वही वास्तव में शांत और स्थिर जीवन जी सकता है।
आत्मविजय का मार्ग: संयम और अंतरतम शांति
प्रवचन में बताया गया है कि आत्मविजय का मार्ग केवल संयम से होकर गुजरता है। हमारी बाहरी इंद्रियाँ — कर्मेंद्रियाँ — क्रियाएं करती हैं, लेकिन उनकी प्रेरणा हमारे भीतर बैठा मन देता है। इसलिए भगवान कहते हैं कि केवल बाहरी नियंत्रण नहीं, बल्कि अंतरतम शांति भी आवश्यक है। और यह शांति तब मिलती है जब हम परमात्मा के साथ बार-बार जुड़ने का अभ्यास करते हैं।
एक सुंदर कथा के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन लीला का उल्लेख भी इस प्रवचन में हुआ है। यह केवल चमत्कार की कहानी नहीं, बल्कि स्वदेशी चेतना, आत्मनिर्भरता और साहस की प्रेरणा देती है। इंद्र जैसे शक्तिशाली देवता के भय से ब्रजवासियों को मुक्ति दिलाने के लिए श्रीकृष्ण ने जो गोवर्धन पर्वत उठाया, वह आत्मबल और श्रद्धा का प्रतीक है।
योगी का स्वरूप: सतत आत्मचिंतन और अभ्यास
श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं — "योगी युंजीत सततम् आत्मानं रहसि स्थितः"। अर्थात एक सच्चा योगी वह है, जो नियमित रूप से एकांत में बैठकर, बिना किसी आशा और संग्रह की भावना के, केवल परमात्मा से जुड़ने का प्रयत्न करे। प्रवचन में इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि हर व्यक्ति चाहे वह गृहस्थ हो या सन्यासी, प्रतिदिन केवल 15 मिनट अपने आप से जुड़ने का प्रयास करे। इस थोड़े से समय में अपने जीवन के सारे साधनों (भोजन, वस्त्र, धन, संबंध) से परे हटकर केवल साध्य — परमात्मा — का चिंतन करें।
यह प्रवचन न केवल गीता की शिक्षाओं को जीवन के व्यावहारिक संदर्भ में प्रस्तुत करता है, बल्कि योग के वास्तविक अर्थ और महत्व को भी स्पष्ट करता है। साधन (resources) कभी स्थायी नहीं होते, पर साध्य (goal) यदि परमात्मा है, तो उससे जुड़ा व्यक्ति कभी दुखी नहीं होता।
योग केवल आसनों और प्राणायामों तक सीमित नहीं, बल्कि अपने मन, इंद्रियों और विचारों का संयम है। यह प्रवचन सिखाता है कि योग की शुरुआत आपके अपने घर में, एक छोटे से स्वच्छ स्थान से होती है। वहीं बैठकर मन को एकाग्र कर, आसन पर स्थिर होकर, अपने भीतर की यात्रा शुरू की जा सकती है।
यदि आप अपने जीवन में शांति, संतुलन और आत्मबल चाहते हैं, तो यह वीडियो आपके लिए एक अमूल्य मार्गदर्शक बन सकता है। और अधिक जानने के लिए भारत माता की वेबसाइट या प्रवचन कैटेगरी देखें।