गीता ज्ञान यज्ञ श्री हरिहर मरुती धाम भाग 6 | Geeta Gyan Yag Sree Harihar Maruti Dhaam Part 6
जब-जब मैं उपासना के क्षणों मे परमात्मा के चरणों मे बैठता हूँ, तब-तब मेरी यही प्रार्थना रहती है की परमात्मा मेरे राष्ट्र को सर्वविधि समृद्ध एवं सम्पन्न बना दें। यह कथन है स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज का, जिन्होंने हरिद्वार के भारतमाता मंदिर की स्थापना की।
स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी का जीवन परिचय
पथ-प्रदर्शक, अध्यात्म-चेतना के प्रतीक, तपो और ब्रह्मनिष्ठ, पद्मभूषण से सम्मानित महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी का जन्म 19 सितंबर 1932 को आगरा में हुआ।
- उनका परिवार मूलतः उत्तर प्रदेश के सीतापुर का निवासी था।
- स्वामी जी बचपन से ही अध्ययनशील, चिंतनशील और सेवा में तत्पर रहते थे।
- धर्म, संस्कृति, समाज और विश्व कल्याण के प्रति उनकी सेवाओं को पद्मभूषण सम्मान से अलंकृत किया गया।
स्वामी जी का प्रवचन: जीवन के विषाद से संवाद तक
स्वामी जी ने अपने एक प्रवचन मे कहा था की कभी कभी जीवन के पथ पर जब विषाद रुपी कंटक आ जाता है तब मनुष्य उन्माद में भटक जाता है| ऐसे स्थिति में किंकर्तव्यविमुढ़ता कर्म की शक्ति का हरण कर लेती है और प्रमाद मनुष्य को दिग्भ्रमित कर देता है| श्रीमद्भगवद्गीता के संदेश का अनुपालन करते हुए जीवन को परमात्मा का आश्रय लेना चाहिए।
महाभारत की रणभूमि में श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन भी इसी भंवर में फँस गए थे, जो वर्तमान में भी संसार में देखने को मिल जाता है| और जिस प्रकार अर्जुन को श्रीमद्भागवद्गीता द्वारा अपने कर्त्तव्य का बोध हुआ था, उसी प्रकार गीता आज के समय में भी अत्यंत आवश्यक सन्देश प्रदान करती है| विषाद, उन्माद, प्रमाद और इन सबसे उत्पन्न विवाद से बचना है तो संवाद की रचना अनिवार्य है, क्यूंकि संवाद से विवाद पूर्णतः नष्ट हो जाएगा| परमात्मा के साथ संवाद करने के पश्चात अर्जुन के मन में विवाद का स्थान ही ना रहा, और संवाद ने धन्यवाद की रचना की| श्रीमद्भगवद्गीता इसी धन्यवाद की परंपरा की स्थापना का सन्देश प्रदान करती है, जिससे मानवमात्र का कल्याण हो सके| परमात्मा का आश्रय हर संकट नष्ट कर देता है, इसीलिए जीवन में विषाद होने पर केवल परमात्मा से संवाद ही मनुष्य को उबार सकता है|
स्वामी जी का जीवन दृष्टिकोण: जीवन को सरिता मानना
जीवन को सरिता के समान वर्णित करते हुए स्वामी जी कहते हैं की जीवन सरिता के समान ही प्रवाहमान रहता है, जिसका उद्भव होता है, एवं जीवनकाल के पश्चात् अवसान भी होता है | जिस प्रकार सरिता ऊँचाई तक जाती है, और फिर नीचे की ओर चली जाती है, उसी प्रकार जीवन भी उन्नति एवं अवनति के चक्र में चलायमान रहता है | अतः जीवन रुपी सरिता में कभी भी सब कुछ समान नहीं रहता | केवल ईश्वरीय भक्ति रुपी प्रसाद ही अटल एवं अलौकिक सत्य है और इस सत्य को आत्मसात करने से और सत्कर्म करने से ही चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करने के पश्चात् मानव जीवन की प्राप्ति हो सकती है | उपनिषद के अनुसार असत्य आचरण से युक्त मनुष्य का जीवन अंधकारमय हो जाता है और इस संसार से अवसान के पश्चात भी उन्हें केवल अंधकार की ही प्राप्ति होती है | जिस मार्ग पर चलने के लिए बुद्धि कहे, किन्तु मन और आकर्षण बुद्धि के विपरीत ही रहें, ऐसे क्षणों में यदि बुद्धि को पराजित करके आकर्षण विजय प्राप्त करता है.. तो यही क्षण मानव जीवन के आत्महत्या के क्षण होते हैं| इन क्षणों की निरंतर वृद्धि ही मानव के पतन का कारण बनती है और अपयश के कारक के रूप में सन्मार्ग की बाधा बन जाती है|
स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी का प्रभाव और प्रेरणा
स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज के समस्त संदेश और उपदेश आज भी हमें प्रेरणा प्रदान करते हैं।
हर क्षण उनके विचार हमें राष्ट्र, धर्म और समाज के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देते हैं।
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