गीता के माध्यम से जानिए भय को कैसे भगाए | Swami Satyamitranand Giri Ji Maharaj | Pravachan
इस प्रेरणादायक प्रस्तुति में स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज भारत की आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गहराइयों को उजागर करते हुए बताते हैं कि महाभारत केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव सभ्यता का दर्पण है। जैसा कि महाराज कहते हैं— “संसार में जो कुछ विद्यमान है, वह महाभारत में मिलता है, और जो महाभारत में नहीं, वह भारत और विश्व में कहीं नहीं।”
भारत माता के और प्रेरणादायक प्रवचन यहाँ पढ़ें:
Pravachan Category
इतिहासकार भी इस सत्य की पुष्टि करते हैं कि जब विश्व का बड़ा भाग सभ्यता के प्रारंभिक चरण में था, तब भारत ज्ञान, संस्कृति, और आध्यात्मिकता के शिखर पर था। लेकिन सामाजिक भूलों और संगठन की कमी ने इस उज्ज्वल इतिहास को धूमिल कर दिया, जिसके कारण भारत लंबी अवधि तक पराधीनता में रहा।
महाराज इस प्रवचन में उन महान शहीदों को नमन करते हैं जिन्होंने खिलते हुए फूलों की भाँति अपने प्राण राष्ट्र को समर्पित कर दिए। उनका कहना है कि इन बलिदानों की ऊर्जा ने अनगिनत लोगों को प्रेरित किया और इसी प्रेरणा से राष्ट्र स्वतंत्र हुआ।
इस भाग में “डर कैसे मिटाएँ” (fear removal) और “भय क्यों लगता है” जैसे आध्यात्मिक प्रश्न भी सहज रूप से जुड़ते हैं—क्योंकि राष्ट्र की स्वतंत्रता की तरह, मनुष्य की आत्मिक स्वतंत्रता भी अनिवार्य है।
आत्मिक स्वतंत्रता, निर्भयता और भागवत कथा का महत्व
महाराज स्पष्ट करते हैं कि राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रताएँ तभी सार्थक हैं जब मनुष्य का मन भी स्वतंत्र हो। यदि मन बंधनों और भय में जी रहा है, तो बाहरी स्वतंत्रता भी बंधन का रूप ले लेती है।
इसीलिए सत्संग, भागवत कथा, और आध्यात्मिक मार्ग मनुष्य को भीतर से मुक्त करने का कार्य करते हैं।
आध्यात्मिक जीवन का गहन अर्थ समझने हेतु यह लेख पढ़ें:
जीवन का वास्तविक फल क्या है
महाराज सिकंदर और एक भारतीय महात्मा का प्रसंग सुनाते हैं। महात्मा ने बताया कि सिकंदर की तलवार केवल शरीर को काट सकती है—आत्मा को नहीं। आत्मा शाश्वत, अविनाशी और अनादि है; शरीर केवल वस्त्र है जो बदलते रहते हैं।
यह प्रसंग मनुष्य को सीख देता है कि—
डर शरीर का विषय है, आत्मा का नहीं।
इसलिए “मन का डर कैसे दूर करें” का उत्तर आध्यात्मिक ज्ञान में ही छिपा है।
महाराज कहते हैं कि भागवत कथा का बड़े लाभों में से एक लाभ यह है कि यह मनुष्य के भीतर निर्भयता का संचार करती है—जैसे भगवान राम हर परिस्थिति में निर्भय रहते थे।
गीता भी कहती है कि दैवी गुणों में प्रथम गुण ‘अभय’—निर्भयता है। यही कारण है कि आध्यात्मिक मार्ग “डर भगाने के आध्यात्मिक तरीके” के रूप में कार्य करता है।
Bharat Mata चैनल पर ऐसे और प्रवचन सुनें:
YouTube – Bharat Mata Online
भय का जन्म, संकल्पों की शक्ति और आंतरिक मुक्ति का मार्ग
महाराज बताते हैं कि भय और अपराध भावना तब जन्म लेते हैं जब मनुष्य यह भूल जाता है कि परमात्मा सर्वव्यापक है और हर क्षण संसार की गति पर दृष्टि रखे हुए है।
बाहरी कानून केवल कर्मों को देखता है, परंतु पाप का जन्म मन में होता है।
गीता समझाती है कि एक नकारात्मक संकल्प पहले काम को जन्म देता है, फिर क्रोध, फिर मोह, और अंततः विनाश तक पहुँचा देता है। इसलिए यह समझना आवश्यक है कि—
डिप्रेशन में डर क्यों लगता है, भय क्यों बढ़ता है, और संकल्पों का क्या महत्व है।
इस कथा के दो मुख्य लाभ हैं:
-
मनुष्य में निर्भयता का उदय होता है
-
संकल्पों को शुद्ध करने की कला सीखता है
इन दोनों के माध्यम से व्यक्ति “डर कैसे मिटाएँ”, “भय क्यों लगता है”, और “हनुमान जी से भय-मुक्ति कैसे मिले” जैसे सभी आध्यात्मिक उत्तर पा लेता है।
यह प्रस्तुति भारतीय ज्ञान परंपरा का गौरव पुनर्स्थापित करती है और मनुष्य को आंतरिक स्वतंत्रता, साहस और आत्मबोध की दिशा में ले जाती है।
Bharat Mata के आध्यात्मिक परिवार से जुड़ें:
WhatsApp Channel: https://www.whatsapp.com/channel/0029VaUEnDp30LKR0Vor9D1k
Instagram: https://www.instagram.com/bharatmataonline/
Website Home Page: https://bharatmata.online/