बिना गुरु के ज्ञान नहीं मिलता - Swami Satyamitranand Giri Ji Maharaj | Adhyatam Ramayan | Pravachan
इस प्रेरणादायी प्रवचन में स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज यह समझाते हैं कि सच्चिदानंद परमात्मा ही परम आनंद स्वरूप हैं। वे कहते हैं कि मनुष्य सदा सुख की खोज में रहता है, लेकिन उसकी सबसे बड़ी भूल यह है कि वह क्षणिक विषयों और भोगों में आनंद खोजने की कोशिश करता है। यह आनंद स्थायी नहीं होता, केवल मन का भ्रम होता है। इसी भ्रम में डूबा रहना ही मानव की सबसे बड़ी मूढ़ता है।
“दूसरे” का भाव ही दुख का कारण है
गुरुजी बताते हैं कि वेदांत दर्शन के अनुसार संसार की सभी लड़ाइयों, ईर्ष्या और कलह का मूल कारण “दूसरे” का भाव है। जब तक मनुष्य के भीतर “मैं” और “तू” का भेद बना रहता है, तब तक दुख बना रहता है। जहां यह भेद मिट जाता है, वहां अद्वैत का अनुभव होता है — वहां व्यक्ति को हर जगह अपना ही स्वरूप दिखने लगता है और मन अपने आप शांत हो जाता है।
भोगों में फँसकर मनुष्य स्वयं को ही हानि पहुँचाता है
गुरुजी इस सत्य को एक सुंदर उदाहरण से समझाते हैं — जैसे एक गिद्ध दर्पण में अपने ही प्रतिबिंब को देखकर यह सोचता है कि सामने कोई दूसरा पक्षी है और बार-बार उसे मारने की कोशिश करता है। ऐसा करते-करते उसकी अपनी चोंच टूट जाती है।
इसी तरह मनुष्य भी विषयों और भोगों में इतना उलझ जाता है कि अंततः खुद को ही हानि पहुँचाता है।
वे एक वास्तविक घटना का उल्लेख करते हैं — एक व्यक्ति जिसने गुटखा और मसाले का व्यापार शुरू किया, उसी के पुत्र को अत्यधिक सेवन के कारण कैंसर हो गया। जिस वस्तु से उन्होंने करोड़ों कमाए, वही वस्तु उनके अपने घर का विनाश कर गई।
यह उदाहरण दिखाता है कि जब भोग की अति होती है, तो भोगी भोगों को नहीं भोगता, बल्कि भोग ही भोगी को भोग लेते हैं।
सच्चा सुख आत्मबोध और सुमति में है
गुरुजी आगे कहते हैं कि मनुष्य हमेशा यह सोचता है कि “समय आने पर साधना करेंगे, भजन करेंगे, भगवान को याद करेंगे”। लेकिन यह भ्रम है — काल कभी नहीं आता, हम ही काल के समीप जाते हैं। जीवन अनिश्चित है, इसलिए ईश्वर स्मरण और सुमति का मार्ग आज से ही अपनाना चाहिए।
यह प्रवचन हमें यह सिखाता है कि सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि आत्मबोध और सुमति में है। जो व्यक्ति इस सत्य को समझ लेता है, उसके जीवन में शांति, प्रेम और आनंद अपने आप प्रकट होने लगते हैं।