गीता के माध्यम से जानिए ज्ञान से बढ़कर कुछ श्रेष्ठ नहीं | Shrimad Bhagwat Geeta | Swami JI Pravchan

भारत माता की इस प्रस्तुति मे स्वामी सत्यामित्रानंद गिरि जी महाराज जी ऋग्वेद के माध्यम से वर्णित करते हैं की,

'आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः'

एक संस्कृत श्लोक है जिसका अर्थ है, 'हमें सर्वत्र सभी ओर से कल्याणकारी विचार मिले'। इस श्लोक में भलाई और सकारात्मकता की कामना की जाती है, ताकि हम सभी अपने जीवन में उज्ज्वल और कल्याणकारी विचारों से परिपूर्ण हों।

स्वामी जी के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति संसार की भौतिकताओं में इतना खो जाता है कि ईश्वर की उपस्थिति को भूल जाता है, तो वह व्यक्ति असली अर्थ में 'मनुष्य' नहीं है। उनकी दृष्टि में, असली मानवता और समृद्धि ज्ञान में निहित है। वे मानते हैं कि इस संसार में ज्ञान ही सबसे बड़ा धन है, और यही वास्तविक सुख और समृद्धि का आधार है।

स्वामी जी के विचार हमें यह सिखाते हैं कि भौतिक सुखों के पीछे भागने की बजाय, अगर हम ज्ञान और आत्मसाक्षात्कार की ओर ध्यान केंद्रित करें, तो हम वास्तविक रूप से सुखी और समृद्ध हो सकते हैं। ज्ञान केवल बौद्धिकता नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन की गहराई और सत्यता को समझने में मदद करता है।

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