गीता के माध्यम से जानिए कैसे करें निस्वार्थ कर्म? | स्वामी सत्यमित्रानंद जी महाराज | Geeta Pravachan

भगवान श्री कृष्ण का दिव्य स्वरूप

भारत माता की इस प्रेरणादायक प्रस्तुति में स्वामी सत्यामित्रानंद गिरि जी महाराज ने गीता के माध्यम से वर्णित किया है की कैसे निस्वार्थ कर्म करें और साथ ही यह भी बताया है की भगवद गीता का प्रत्येक श्लोक गहरे दर्शन से जुड़ा हुआ है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान करने की प्रक्रिया के बारे में बताया। इस विशिष्ट अध्याय में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तुझे मेरा असली रूप देखने के लिए अपनी चर्म चक्षुओं को त्याग कर दिव्य दृष्टि प्राप्त करनी पड़ेगी। भगवान का यह दिव्य रूप वह रूप है जो हर जगह विद्यमान है, जिसे सामान्य दृष्टि से देखना संभव नहीं होता।

भक्ति, कर्म और ज्ञान का महत्व

अर्जुन ने पहले भगवान के अनेक रूपों को देखा था, जैसे कि रासलीला करने वाले कृष्ण, गोवर्धन धारी, और युध्द के मैदान में सारथी के रूप में कृष्ण। लेकिन जब भगवान ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि दी, तो अर्जुन ने देखा कि श्री कृष्ण का रूप सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है, वह प्रत्येक तत्व में समाहित हैं—वायु में, अग्नि में, जल में, हर वस्तु में वह दिखाई पड़ते हैं। यह एक गहरी अनुभूति है, जो अर्जुन को भगवान के दिव्य स्वरूप का दर्शन कराती है।
भगवान ने अर्जुन को यह सिखाया कि संसार की वास्तविकता को समझने के लिए और भगवान के साथ एकता स्थापित करने के लिए हमें अपने कर्तव्यों को निस्वार्थ भाव से, बिना किसी आसक्ति के करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि भक्ति, कर्म और ज्ञान के द्वारा ही व्यक्ति को सच्चे मार्ग पर चलने का अवसर मिलता है।

स्वामी सत्यामित्रानंद जी का संदेश

यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि किसी भी कर्म को करने का उद्देश्य केवल भगवान के प्रति श्रद्धा और समर्पण होना चाहिए, न कि उसके फल की इच्छा से। जब हम अपने कर्मों को भगवान को अर्पित करके करते हैं, तो हम संसार से मुक्त होते हैं और एक दिव्य दृष्टि प्राप्त करते हैं, जो हमें संसार और आत्मा के वास्तविक स्वरूप को समझने में मदद करती है।
आखिरकार, भगवान ने अर्जुन को यह दिव्य दृष्टि दी, जिससे उसे भगवान के असली रूप का दर्शन हुआ। यह प्रक्रिया केवल एक विशेष साधना और भक्ति से ही संभव हो पाती है। भगवान का यह रूप वह है जो न केवल अर्जुन ने देखा, बल्कि यह सभी भक्तों के लिए एक मार्गदर्शन है कि भक्ति, तपस्या और निस्वार्थ कर्म ही हमें परमात्मा के समीप ले जाते हैं।

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